तेवरी:
संजीव 'सलिल'
हुए प्यास से सब बेहाल.
सूखे कुएँ नदी सर ताल..
गौ माता को दिया निकाल.
श्वान रहे गोदी में पाल..
चमक-दमक ही हुई वरेण्य.
त्याज्य सादगी की है चाल..
शंकाएँ लीलें विश्वास.
नचा रहे नातों के व्याल..
कमियाँ दूर करेगा कौन?
बने बहाने हैं जब ढाल..
सुन न सके मौन कभी आप.
बजा रहे आज व्यर्थ गाल..
उत्तर मिलते नहीं 'सलिल'.
अनसुलझे नित नए सवाल..
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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शुक्रवार, 8 जनवरी 2010
तेवरी: हुए प्यास से सब बेहाल. --संजीव 'सलिल'
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-acharya sanjiv 'salil',
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6 टिप्पणियां:
aapke kafia kee ridam wah subhan allaah
बच्चा कभी पधारो हमरे ब्लॉग पे
बढ़िया प्रवाहमय गीत!!
सुन्दर गीत!
वाह!
सुन्दर गीत, बधाई सलिल जी को, नमन उनकी कलम को.
नमन सभी को दे रहे, जो मुझको उत्साह.
गुण ग्राहकता को नमन, दिल से रही सराह..
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