सरस्वती वंदना : २
संजीव 'सलिल'
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हे हंसवाहिनी!, ज्ञानदायिनी!!
अम्ब विमल मति दे...
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जग सिरमौर बने माँ भारत.
सुख-सौभाग्य करे नित स्वागत.
नव बल-विक्रम दे...
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साहस-शील ह्रदय में भर दे.
जीवन त्याग-तपोमय कर दे.
स्वाभिमान भर दे...
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लव-कुश, ध्रुव-प्रह्लाद हम बनें.
मानवता का त्रास-तम हरें.
स्वार्थ विहँस तज दें...
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दुर्गा, सीता, गार्गी, राधा.
घर-घर हों, काटें हर बाधा.
सुख-समृद्धि सरसे...
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नेह-प्रेम की सुरसरि पावन.
स्वर्गोपम हो राष्ट्र सुहावन.
'सलिल' निरख हरषे...
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दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com/
3 टिप्पणियां:
डॉ. मनोज मिश्र ने आपकी पोस्ट " सरस्वती वंदना : २ -संजीव 'सलिल' " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
अति सुंदर .
डॉ. मनोज मिश्र
Kusum Thakur ने आपकी पोस्ट " सरस्वती वंदना : २ -संजीव 'सलिल' " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
बहुत ही अच्छी लगी , यह सरस्वती वन्दना .
Kusum Thakur
सरस्वती वंदना संजीव 'सलिल'
आदरणीय आचार्य जी
अति सुन्दर !
निराला जी याद आ गये - वर दे वीणा वादिनी.... वर दे !
सादर
प्रताप
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