गीतिका
तितलियाँ
संजीव 'सलिल'
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यादों की बारात तितलियाँ.
कुदरत की सौगात तितलियाँ..
बिरले जिनके कद्रदान हैं.
दर्द भरे नग्मात तितलियाँ..
नाच रहीं हैं ये बिटियों सी
शोख-जवां ज़ज्बात तितलियाँ..
बद से बदतर होते जाते.
जो, हैं वे हालात तितलियाँ..
कली-कली का रस लेती पर
करें न धोखा-घात तितलियाँ..
हिल-मिल रहतीं नहीं जानतीं
क्या हैं शाह औ' मात तितलियाँ..
'सलिल' भरोसा कर ले इन पर
हुईं न आदम-जात तितलियाँ..
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Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
6 टिप्पणियां:
सुन्दर गीतिका है सलिल जी .
उर्मिलेश शंखधार की कविता 'लड़कियां' की एकदम याद आ गई .
महेश चन्द्र द्विवेदी
सलिल जी,
मतला मौज़ू, मकता वजनी
ग़ज़ल बहुत सुंदर, ज्यों सजनी.
--ख़लिश
सुन्दर गीतिका !
- प्रतिभा.
संजीव जी,
गीतिका सुन्दर लगी.
सादर
राकेश
सुंदर गीतिका!
नया वर्ष हो सबको शुभ!
जाओ बीते वर्ष
नए वर्ष की नई सुबह में
महके हृदय तुम्हारा!
बहुत सुन्दर रचना...नववर्ष की शुभकामना
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