स्वर्ण चम्पा
स्वर्ण चम्पा से सुवासित बाग
सोनपरियाँ झुलसतीं ले आग
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ज्योत्सना आकर रही है छेड़
जगाती है संत में अनुराग
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फागुनी हैं हवाएँ मदमस्त
रंग ले आईं लगाएँ दाग
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उषा किरणें लिपटतीं ले मोह
जलन से काला हुआ है काग
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शीत छेदे बदन, मारे तीर
सिहरता ज्यों डँस रहा हो नाग
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दामिनी हो कामिनी गिरती
बिन दिए कंधा रही है दाग
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कर 'सलिल' में स्नान हो शीतल
नर्मदा को नमन कर झट जाग
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स्वर्ण चम्पा एक शानदार फूल है। इसकी तेज सुगंध पेड़ से २० मीटर दूर तक अनुभव की जा सकती है।इसकी स्वर्गिक सुगन्ध एक बार अनुभव हो तो आप अपने आसपास चौक कर देखने लगते हैं कि यह किधर से आ रही है। इसी मनमोहक सुगंध के कारण इसे अगरबत्ती और इत्र बनाने में उपयोग किया जाता है। यह सुगंध इसके फूल को सुखा देने के बाद भी बनी रहती है। इसका पेड़ बड़ा होता है। आकर्षित करने वाला सुगंध होने के कारण लोग निचली डालियों से फूल तोड़ने से स्वयं को नहीं रोक पाते। इसकी डालियाँ बहुत ही ठनकी होती हैं, प्रायः टूट जाती हैं। इसीलिए निचली डालियाँ प्रायः समाप्त हो जाती हैं, ऊँची डालियों में लगे फूल ही अपनी सुगंध बिखेरते रहते हैं।
यह फूल पीला होता है जैसे कि सोना। सोना को संस्कृत में स्वर्ण कहते हैं। चम्पा मैगनोलिया वर्ग के कई प्रकार के फूलों को कहते हैं जिन्हें चम्पा के आगे अलग-अलग उपसर्ग लगा कर पुकारते हैं। इसीलिए इस फूल को स्वर्ण-चम्पा नाम दिया गया है। कुछ अन्य प्रकार के फूलों को कठ-चंपा, कटेली चंपा आदि नाम से भी पुकारा जाता है।
स्वर्ण चम्पा को हिमालयन चम्पा के नाम से भी जाना जाता है। यह मूल रूप में दक्षिण पूर्वी एशिया का पेड़ है जो नमी वाली मिट्टी और धूप को पसन्द करता है। देसी पेड़ होने के कारण इसका उल्लेख कुछ हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है। मंदिर परिसर में भी यह पेड़ लगाया जाता है। स्वर्ण चम्पा और बकुल के पेड़ों को मंदिर मुख्य द्वार के दोनों ओर लगाने का प्रचलन है। आवासीय परिसरों के मुख्य द्वार के पास स्वर्ण चम्पा वृक्ष लगाया जाता है।
स्वर्ण चम्पा का वृक्ष
स्वर्ण चम्पा श्री गणेश, शिव जी, श्री विष्णु और देवी लक्ष्मी को अर्पित किया जाता है। कुछ लोग कहते हैं कि चम्पा और केवड़े के फूल शिव को अर्पित नहीं किये जाते जिसके लिए कुछ लोकगाथाओं का उदहारण दिया जाता है। केवड़े के फूल के बारे में यह सही हो सकता है परन्तु चम्पा के लिए यह सत्य नहीं है। आदिशंकराचार्य द्वारा रचित "शिवमानस पूजा" में लिखा है,
"जाती चम्पक बिल्वपत्र रचितं पुष्पं च धूपं तथा
दीपं देव दयानिधे पशुपते हृत्कल्पितम गृह्यताम |"
अर्थात - हे दयालु पशुपति महादेव ! हृदय में कल्पना कर जूही, चम्पा, बेलपत्र, फूल और धूप -दीप आपको समर्पित करता हूँ। कृपया, ग्रहण कीजिए।
इससे स्पष्ट है कि चम्पा के फूल शिव को अर्पित किये जाते हैं | एक अन्य लोकगाथा जो महाभारत के समकालीन है के अनुसार ओड़िसा के बरुण पर्वत के समीप कुंती ने महादेव को एक लाख स्वर्ण चम्पा फूल अर्पित किये थे इस अभिलाषा से कि महाभारत युद्ध में उनके पुत्रों की विजय हो। अर्थात शिव को यह पुष्प प्रिय है। यह फूल माता लक्ष्मी को भी अर्पित किया जाता है। वस्तुतः स्वर्ण चम्पा देवी लक्ष्मी का प्रतिनिधित्व करता है। पीले पुष्प गणेश और विष्णु को पसन्द हैं। अतः, यह फूल इन दोनो देवताओं को भी चढ़ाया जाता है। फूलों का मौसम समाप्त होने के बाद इनमे फल लगते हैं जो न्यूनाधिक रूप में अंगूर के गुच्छे जैसे होते हैं।
सोन चंपा (स्वर्ण चंपा) का पौधा गमले में लगाने की विधि:
सामग्री: सोन चंपा का पौधा (छोटा या बड़ा), मिट्टी का मिश्रण (६०% रेतीली मिट्टी, ३०% वर्मी कम्पोस्ट, १०% गोबर की खाद), गमला (पौधे के आकार से थोड़ा बड़ा), पानी, कंकड़ या बजरी (जल निकासी के लिए)।
विधि: गमले में जल निकासी छेदों की जाँच करें। यदि छेद छोटे हैं या पर्याप्त नहीं हैं तो उन्हें बड़ा करें। गमले के तल में कंकड़ या बजरी की एक परत बिछाएँ। यह जल निकासी में सुधार करने में मदद करेगा और जड़ सड़न को रोकेगा। मिट्टी के मिश्रण को गमले में आधा भरें। पौधे को गमले के केंद्र में रखें। बजरी मिट्टी के मिश्रण से पौधे को भरें। मिट्टी को हल्के से दबाएँ ताकि पौधा मजबूती से टिक जाए। पौधे को अच्छी तरह से पानी दें। गमले को ऐसी जगह पर रखें जहाँ उसे प्रत्यक्ष सूर्य की रोशनी मिले। मिट्टी को सूखने पर नियमित रूप से पानी दें। हर २-३ महीने में पौधे को खाद दें।
सोन चंपा को थोड़ी अम्लीय मिट्टी पसंद है। आप मिट्टी की अम्लता को कम करने के लिए थोड़ा नींबू का रस या सिरका पानी में मिला सकते हैं। गर्मियों में पौधे को अधिक पानी दें, और सर्दियों में कम। सुनिश्चित करें कि गमले में जल निकासी छेद हैं। मुरझाए हुए या पीले पत्तों को नियमित रूप से हटा दें। यदि आप पौधे को घर के अंदर रखते हैं, तो उसे एक नम ट्रे पर रखें। सोन चंपा एक सुंदर और सुगंधित फूल वाला पौधा है।
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