सितंबर १८
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युगीय गीत
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हो रही खंडित ईकाई प्रभु बचाए
पूर्ण कंपित, अंश डँसता मुस्कुराए
०
एक पर निष्ठा नहीं रह गई बाकी
दो न अनगिन को पिलाए सुरा साकी
बाँह में इक, चाह में दुई, देख तीजी-
बहक मन ने खोज चौथी राह ताकी
आ प्रपंचन पाँचवी घर-घट दिखाए
हो रही खंडित ईकाई प्रभु बचाए
०
दूध छठ का छठी को लख याद आए
सातवीं आ दिवस में तारे दिखाए
आठवीं ने खड़ी कर दी खाट पल में-
नाश करने आई नौवीं पथ भुलाए
देह दुर्गज दहाई को शून्य पाए
हो रही खंडित ईकाई प्रभु बचाए
०
घटा-जोड़ा जो नहीं कुछ हाथ आया
गुणा गुण का भाग दे अवगुण बनाया
भिन्न ने अभिन्न हो अवमूल्यन कर-
नीति को बेदाम कर बेदम कराया
वरण कर बदनाम का अंधे कहाए
हो रही खंडित ईकाई प्रभु बचाए
०
पीढ़ियों की सीढ़ियों की नींव खोई
माँग जा बाजार में बेजार रोई
पूर्ति को मंहगाई ने बंधक बनाया-
मूलधन की नाव ब्याजों ने डुबोई
पूंजियों ने प्राण श्रम के नोच खाए
हो रही खंडित ईकाई प्रभु बचाए
०
अर्थ ने न्योता अनर्थों को अजाने
पुजारी रख पूज्य गिरवी लगा खाने
वर्गमूलों पर करें आघात घातें-
वक्फ की दौलत लगा मुल्ला उड़ाने
पादरी को ननों का सौंदर्य भाए
हो रही खंडित ईकाई प्रभु बचाए
०
सियासत ने सिया-सत को खो दिया है
आग घर में लगाता जलता दिया है
शारदा को लक्ष्मी नीलाम करती-
प्रेयसी-हाथों छला जाता पिया है
नाव में पतवार बच, नौका डुबाए
हो रही खंडित ईकाई प्रभु बचाए
०
दस दिशाओं से तिमिर ने हमें घेरा
आठ प्रहरों से दुखी संध्या-सवेरा
बजा बारह बारहों महिने ठठाते-
हुआ बेघर घर, लगे भूतों का डेरा
न्याय को अन्याय नीलामी चढ़ाए
हो रही खंडित ईकाई प्रभु बचाए
१८.९.२०२५
०००
हिंदी की तस्वीर
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हिंदी की तस्वीर के, अनगिन उजले पक्ष
जो बोलें वह लिख-पढ़ें, आम लोग, कवि दक्ष
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हिदी की तस्वीर में, भारत एकाकार
फूट डाल कर राज की, अंग्रेजी आधार
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हिंदी की तस्वीर में, सरस सार्थक छंद
जितने उतने हैं कहाँ, नित्य रचें कविवृंद
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हिंदी की तस्वीर या, पूरा भारत देश
हर बोली मिलती गले, है आनंद अशेष
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हिंदी की तस्वीर में, भरिए अभिनव रंग
उनकी बात न कीजिए, जो खुद ही भदरंग
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हिंदी की तस्वीर पर अंग्रेजी का फेम
नौकरशाही मढ़ रही, नहीं चाहती क्षेम
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हिंदी की तस्वीर में, गाँव-शहर हैं एक
संस्कार-साहित्य मिल, मूल्य जी रहे नेक
१८.९.२०१६
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:अलंकार चर्चा ०९ :
यमक अलंकार
भिन्न अर्थ में शब्द की, हों आवृत्ति अनेक
अलंकार है यमक यह, कहते सुधि सविवेक
पंक्तियों में एक शब्द की एकाधिक आवृत्ति अलग-अलग अर्थों में होने पर यमक अलंकार होता है. यमक अलंकार के अनेक प्रकार होते हैं.
अ. दुहराये गये शब्द के पूर्ण- आधार पर यमक अलंकार के ३ प्रकार १. अभंगपद, २. सभंगपद ३. खंडपद हैं.
आ. दुहराये गये शब्द या शब्दांश के सार्थक या निरर्थक होने के आधार पर यमक अलंकार के ४ भेद १.सार्थक-सार्थक, २. सार्थक-निरर्थक, ३.निरर्थक-सार्थक तथा ४.निरर्थक-निरर्थक होते हैं.
इ. दुहराये गये शब्दों की संख्या अर्थ के आधार पर भी वर्गीकरण किया जा सकता है.
उदाहरण :
१. झलके पद बनजात से, झलके पद बनजात
अहह दई जलजात से, नैननि सें जल जात -राम सहाय
प्रथम पंक्ति में 'झलके' के दो अर्थ 'दिखना' और 'छाला' तथा 'बनजात' के दो अर्थ 'पुष्प' तथा 'वन गमन' हैं. यहाँ अभंगपद यमक अलंकार है.
द्वितीय पंक्ति में 'जलजात' के दो अर्थ 'कमल-पुष्प' और 'अश्रु- पात' हैं. यहाँ सभंग यमक अलंकार है.
२. कनक कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय
या खाये बौराय नर, वा पाये बौराय
कनक = धतूरा, सोना -अभंगपद यमक
३. या मुरली मुरलीधर की, अधरान धरी अधरा न धरैहौं
मुरली = बाँसुरी, मुरलीधर = कृष्ण, मुरली की आवृत्ति -खंडपद यमक
अधरान = पर, अधरा न = अधर में नहीं - सभंगपद यमक
४. मूरति मधुर मनोहर देखी
भयेउ विदेह विदेह विसेखी -अभंगपद यमक, तुलसीदास
विदेह = राजा जनक, देह की सुधि भूला हुआ.
५. कुमोदिनी मानस-मोदिनी कहीं
यहाँ 'मोदिनी' का यमक है. पहला मोदिनी 'कुमोदिनी' शब्द का अंश है, दूसरा स्वतंत्र शब्द (अर्थ प्रसन्नता देने वाली) है.
६. विदारता था तरु कोविदार को
यमक हेतु प्रयुक्त 'विदार' शब्दांश आप में अर्थहीन है किन्तु पहले 'विदारता' तथा बाद में 'कोविदार' प्रयुक्त हुआ है.
७. आयो सखी! सावन, विरह सरसावन, लग्यो है बरसावन चहुँ ओर से
पहली बार 'सावन' स्वतंत्र तथा दूसरी और तीसरी बार शब्दांश है.
८. फिर तुम तम में मैं प्रियतम में हो जावें द्रुत अंतर्ध्यान
'तम' पहली बार स्वतंत्र, दूसरी बार शब्दांश.
९. यों परदे की इज्जत परदेशी के हाथ बिकानी थी
'परदे' पहली बार स्वतंत्र, दूसरी बार शब्दांश.
१०. घटना घटना ठीक है, अघट न घटना ठीक
घट-घट चकित लख, घट-जुड़ जाना लीक
११. वाम मार्ग अपना रहे, जो उनसे विधि वाम
वाम हस्त पर वाम दल, 'सलिल' वाम परिणाम
वाम = तांत्रिक पंथ, विपरीत, बाँया हाथ, साम्यवादी, उल्टा
१२. नाग चढ़ा जब नाग पर, नाग उठा फुँफकार
नाग नाग को नागता, नाग न मारे हार
नाग = हाथी, पर्वत, सर्प, बादल, पर्वत, लाँघता, जनजाति
जबलपुर, १८-९-२०१५
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