फुलबगिया
कनबतियाँ करता स्वर्ग का फूल गुलमोहर
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
०
लाल-पीले फूलोंवाले गुलमोहर को सोलहवीं शताब्दी में पुर्तगालियों ने मेडागास्कर में सबसे पहले देखा था। अठारहवीं शताब्दी में फ्रेंच किटीस के गवर्नर काउंटी डी प़ोएंशी ने इसका नाम बदल कर अपने नाम से मिलता-जुलता नाम पोइंशियाना रख दिया। बाद में यह सेंट किटीस व नेवीस का राष्ट्रीय फूल भी स्वीकृत किया गया। इसको रॉयल पोइंशियाना के अतिरिक्त फ्लेम ट्री के नाम से भी जाना जाता है। फ्रांसीसियों ने संभवत: गुलमोहर का सबसे अधिक आकर्षक नाम' स्वर्ग का फूल' दिया। यह पेड़ युगांडा, नाइजीरिया, श्री लंका, मेक्सिको, आस्ट्रेलिया तथा अमेरिका में फ्लोरिडा, ब्राजील तथा यूरोप में भी खूब पाया जाता है। मेडागास्कर जहाँ से इस पेड़ का विकास हुआ पर अब वहाँ यह लुप्तप्राय है। इसकी मूल प्रजाति संरक्षित वृक्षों की सूची में शामिल है। गुलमोहर के फूल मकरंद के अच्छे स्रोत हैं। गर्मियों में गुलमोहर के पेड़ पर नाममात्र पत्तियाँ और असंख्य फूल होते हैं।
भारत में गुलमोहर का इतिहास करीब दो सौ वर्ष पुराना है। संस्कृत में इसका नाम 'राज-आभरण' है, जिसका अर्थ राजसी आभूषणों से सजा हुआ वृक्ष है। गुलमोहर के फूलों से श्रीकृष्ण भगवान की प्रतिमा के मुकुट का श्रृंगार किया जाता है। इसलिए संस्कृत में इसे 'कृष्ण चूड़' कहते हैं। यह भारत के गरम तथा नमी वाले स्थानों में सब जगह पाया जाता है। गुलमोहर के फूल मकरंद के अच्छे स्रोत हैं। शहद की मक्खियाँ फूलों पर खूब मँडराती हैं। मकरंद के साथ पराग भी इन्हें इन फूलों से प्राप्त होता है। फूलों से परागीकरण मुख्यतया पक्षियों द्वारा होता है। सूखी कठोर भूमि पर खड़े पसरी हुई शाखाओं वाले गुलमोहर पर पहला फूल निकलने के एक सप्ताह के भीतर ही पूरा वृक्ष गाढ़े लाल नारंगी, पीले रंग के अंगारों जैसे फूलों से भर जाता है। सौंदर्य वृद्धि के लिए पार्क, बगीचे और सड़क के किनारे इसे लगाया जाता है। शहद की मक्खियाँ फूलों पर खूब मँडराती हैं। मकरंद के साथ पराग भी इन्हें इन फूलों से प्राप्त होता है।
गुलमोहर के फूलों के खिलने का मौसम अलग अलग देशों में अलग-अलग होता है। दक्षिणी फ्लोरिडा में यह जून के मौसम में खिलता है तो कैरेबियन देशों में मई से सितम्बर के बीच। भारत और मध्यपूर्व में यह अप्रैल-जून के मध्य फूल देता है। आस्ट्रेलिया में इसके खिलने का मौसम दिसम्बर से फरवरी है, जब इसको पर्याप्त मात्रा में गरमी मिलती है। उत्तरी मेरीयाना द्वीप पर यह मार्च से जून के बीच खिलता है। गुलमोहर की फली का रंग हरा होता है जबकि बीज भूरे रंग के बहुत सख्त होते हैं। कई जगहों पर इसे ईधन के काम में भी लाया जाता है। जब हवाएँ चलती हैं तो इनकी आवाज़ झुनझुने की तरह आती है, तब ऐसा लगता है जैसे कोई बातें कर रहा है इसीलिए इसका एक नाम "औरत की जीभ" भी है।गुलमोहर एक सुगंन्धित पुष्प है। प्रकृति ने गुलमोहर को बहुत ही सुव्यवस्थित तरीक़े से बनाया है, इसके हरे रंग की फर्न जैसी झिलमिलाती पत्तियों के बीच बड़े-बड़े गुच्छों में खिले फूल इस तरीक़े से शाखाओं पर सजते है कि इसे विश्व के सुंदरतम वृक्षों में से एक माना गया है। गुलमोहर का फूल आकार में लगभग १३ सेमी का होता है। इसमें पाँच पंखुड़ियाँ होती हैं। चार पंखुड़ियाँ तो आकार और रंग में समान होती हैं पर पाँचवी थोड़ी लंबी होती है और उस पर पीले सफ़ेद धब्बे भी होते हैं। फूलों का रंग सभी को अपनी ओर खींचता है मियामी में तो गुलमोहर को इतना पसंद किया जाता है कि वे लोग अपना वार्षिक पर्व भी तभी मनाते है जब गुलमोहर के पेड़ में फूल आते हैं। होली के रंग बनाने में गुलमोहर फूलों का प्रयोग किया जाता है।
औषधीय प्रयोग
गुलमोहर की छाल और बीजों का आयुर्वेदिक महत्त्व भी हैं। इसके फूल एंटीबैक्टीरियल, एंटीफंगल, एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटीमाइरियल, एंटीमाइक्रोबियल, एंटीऑक्सिडेंट, कार्डियो-प्रोटेक्टिव, गैस्ट्रो-प्रोटेक्टिव और घाव भरने के औषधीय गुण से युक्त होते हैं। गुलमोहर की पत्तियों में अतिसार-रोधी, हेपेटोप्रोटेक्शन, फ्लेवोनोइड्स और एंटी डायबिटिक गुण मौजूद होते हैं। इसके इस्तेमाल से गठिया, बवासीर जैसी बीमारियों समेत स्किन और बालों से जुड़ी कई समस्याएं भी दूर की जाती हैं। गुलमोहर के पत्तों का इस्तेमाल बालों की समस्या में बहुत फायदेमंद माना जाता है। गुलमोहर के तने की छाल में खून को बहने से रोकने के गुण, मूत्र और सूजन से जुड़ी समस्याओं को खत्म करने के गुण पाए जाते हैं। सिरदर्द और हाजमे के लिए आदिवासी लोग इसकी छाल का प्रयोग करते हैं। मधुमेह की आयुर्वेदिक दवाओं में भी गुलमोहर के बीजों को अन्य जड़ी-बूटियों के साथ मिला कर भी उपयोग किया जाता है। गुलमोहर की छाल का उपयोग मलेरिया की दवा में भी किया जाता है।
१. गुलमोहर फूल को सुखाकर इसका चूर्ण २ से ४ ग्राम चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर खाने से पीरियड्स के दौरान होने वाले दर्द (Menstrual Cramp) और इससे जुड़ी अन्य समस्याओं में फायदा होगा।
२. बाल झड़ने की समस्या में गुलमोहर की पत्तियों को सुखा-पीसकर चूर्ण गर्म पानी में मिलाकर खोपड़ी (स्कैल्प्स) पर हफ्ते में दो बार लगाएं। ३. पेचिश, दस्त या डायरिया हो तो गुलमोहर के तने की छाल का २ ग्राम चूर्ण डायरिया की समस्या में खाएँ। बहुत फायदा मिलता है।
४. पीले गुलमोहर के पत्ते पीसकर गठिया-दर्द वाली जगह पर लगाने तथा पत्तों का का काढ़ा बनाकर उसका भाप देने से आराम मिलता है।
५. बवासीर (Piles) होने पर गुलमोहर के पत्ते दूध के साथ पीसकर मस्सों पर लगाने से आराम मिलता है।
गुलमोहर पर दोहे
०
गुल मोहर हो गई है, रुपया टका समान।
गुलमोहर खिलखिल करे, खिलखिल दे मुस्कान।।
०
हो जब गुल मो हर कहीं, दिखे आप ही आप।
मैं-तू बिसरे हम बनें, सके उजाला व्याप।।
०
हो न लाल-पीला कभी, रहे हमेशा शांत।
खिले लाल-पीला रहे, गुलमोहर अक्लांत।।
०
वर्षा ठंडी ग्रीष्म सह, रहता है चुपचाप।
संत सदृश धीरज धरे, इसने लिए न पाप।।
०
नहीं नहाता कुम्भ क्यों?, गुलमोहर निष्पाप।
छाँह-पुष्प दे पुण्य कर, छोड़े सब पर छाप।।
१८.२.२०२५
०००गुलमोहर बहुत याद आया
दिशा विद्यार्थी
.
आज फिर गुलमोहर बहुत याद आया
गली का शोर, घर का आँगन याद आया।
छुट्टी के दिन,चाचा की कुल्फी,
नीले आकाश का पतंन्गों से सतरंगी हो जाना
माँ के बुलाने पर पांच मिनट कह घंटों खेलना
रेट के टीलों पर नंगे पैर चढ़ जाना याद आया
आज फिर गुलमोहर याद आया
नानी का लाड़, बाबा का मनुहार
सावन के झूले,राखी का त्यौहार
सखियों की ठिठोली,मेहँदी चूड़ी के बाज़ार
थोड़ा सा रूठने पर सबका मनाना याद आया
आज फिर गुलमोहर याद आया।
यूँ तो बचपन बहुत पीछे छूट गया
काँधे पर बास्ते का बोझ बदल गया
दोने की चाट,बेफिक्र मौज
बीता ज़माना हो गया
चलो फिर से जी आएं बचपन
मन को गुड़िया का ब्याह रचाना याद आया
आज फिर गुलमोहर बहुत याद आया।
०००
मैं बनूँगा गुलमोहर
सुशोभित
.
अच्छा सुनो,
यदि प्रेम हो,
तो संकोच न करना।
कह देना नि:शंक :
'मैं प्रेम में हूँ!'
मुझसे न कह सको तो
कह देना किसी दरख़्त से
या मुझी को मान लेना,
अमलतास का एक पेड़।
कह देना
क्योंकि कहना ज़रूरी होता है
होने से एक रत्ती अधिक
एक सूत ज़्यादह
होना यूँ तो मुकम्मल है पर नाकाफ़ी
मुकम्मल काफ़ी भी हो
ये ज़रूरी तो नहीं!
अपने को पूरे से ज़्यादह बनाना
अपने होने को कहना
कहने के चंद्रमा से उसे आलोकना
दीठ को देना एक दीपती हुई दूरी
थोड़ा दूर तलक व्यापना।
क्योंकि सबसे अकेला वो होता है
जो होता है अकेला अपने प्यार के साथ
उसे कह देना यूँ कि तारे तक आ जाएँ उसकी ज़द में
सुदूर से भी परे झपकाते पलकें
अपने अकेलेपन को एक बेछोर पसार देना
क्योंकि और अकेला हो जाना बेहतर है
केवल अकेला होने से!
मत रखना दुविधा
कह देना कि प्यार है
मुझसे न कह सको तो
कह देना किसी दरख़्त से
या मुझी को मान लेना
चिनार का एक पेड़!
ये एक दस्तूर है कि राज़दार बनें दरख़्त
और ठहरें रहें ख़ामोश हज़ार आवाज़ों और तरानों के साथ
के ये एक रवायत है।
तुम्हारी आँखों में
परिंदों की विकल वापसी से भरी साँझ है
उनके लिए मैं बनूँगा नीड़
तुम्हारे कानों के नीले छल्ले
नदियों की नींद में काँपते हैं
उनके लिए मैं बनूँगा लहर
जब प्रेम में होओगी तुम और
कहना चाहोगी अपना होना
मैं बनूँगा गुलमोहर।
०००
गुलमोहर - प्रेम और जीवन का
निशु माथुर
.
गुलमोहर के पेड़ के नीचे
भड़कीले प्यार में
हमारी इच्छाओं की एक कहानी
एक दूसरे को रंगते हुए
एक चमकीला सिंदूर
उसके लाल रंग के फैलाव के नीचे
आनंदमय आश्रय में छाया हुआ।
उसकी शाखाओं तक पहुँचते
हुए, पकड़ते
हुए, चढ़ते हुए, झूलते हुए
, पीछा करते हुए, हँसते हुए
लाल पंखुड़ियों की एक चमकदार बौछार के नीचे
दिलों और गर्मी के, प्यार और जीवन के
एक झुलसाने वाले भारतीय गर्मियों के फूल।
लपटों में, उसका जीवंत जलता हुआ मुकुट
उसकी छतरी, उत्सवी कीनू के फूलों पर इठलाती
हुई झुर्रीदार चिढ़ाती हुई पंखुड़ियाँ
एक सीधी खड़ी
सफेद रंग की विचित्र मासूमियत
के साथ जोशीले जुनून के लाल रंग से सराबोर
जश्न मनाते और उम्मीद करते हुए
हमारे, हमारे प्यार के जश्न में
बारिश का इंतजार करते हुए..
जैसे उसकी शाखाएँ काले बादलों का वादा करने के लिए ऊँची पहुँचती हैं।
मानसून के संगीत के साथ
गुलमोहर की नम पत्तियां चमकती हैं
हवा और पानी के साथ, कोमल लय में बारिश की बूंदें फिसलने से पहले
एक पल के लिए रुकती हैं नम, तृप्त धरती पर बिखरी हुई नारंगी पंखुड़ियों से चमकती हुई गुलमोहर की हमारी तरह भीगी और भीगी हुई।
०००
तुम्हारा आख़िरी प्रेमपत्र
सोनी पांडेय
.
इस मौसम भी
गुलमोहर ज़रूर खिला होगा
मैं ही मुरझा रही हूँ
तुम्हें देखना था जी भर
आँचल में भर लेना था
मन की तहों में दबा कर रखना था
कि गुलमोहर मेरी याद में
तुम्हारा आख़िरी प्रेमपत्र है
मेरी उदासियों को पढ़ सकते हो तो पढ़ लेना
इस तन्हाई में बस इतना भरम रखते हैं
गुलमोहर के झरने से पहले
ख़त्म हो जाएँगी सारी दूरियाँ
उसके लाल दहकते फूलों से लदी डालियाँ
बचाए हैं हरे पत्तों में थोड़ा-सा मेरा बचपन
वहीं कहीं चिपकी है उसकी शाख़ पर
मेरे माथे की लाल बिंदी
बाहर दहक रहा है मौसम
अंदर भरा है महमह गुलमोहर का लाल रंग
इस लाली से बचेगी दुनिया
कि गुलमोहर मेरी याद में
तुम्हारा आख़िरी प्रेमपत्र है
तुम जा रहे हो!
जाओ!
मुझे याद मत करना
मत कुरेदना भूल कर मेरी किसी बात को
हमारे बीच केवल बातें थीं सेतु
बस इस सेतु को बचाए रखना
तुम जब भी पुकारोगे
मेरी बातें थाम लेंगी तुम्हारी उँगली...
देखना वहीं कहीं गदराया मिलेगा
दहकते लाल रंग में डूबा
खिलखिलाता गुलमोहर
बचपन की भोली मुस्कान लिए
बिना किसी यातना या छल के
गा रहा होगा वह गीत
जिसे तुम गुनगुनाते थे
हँस कर थाम लेगा तुम्हारा हाथ
जब भी थक कर गिरोगे
महसूसना उसके स्पर्श में
मेरे छुवन को...
मैंने धो-सूखा कर रख लिया है
सहेज कर मन की पिटारी में
क्योंकि गुलमोहर मेरी याद में
तुम्हारा आख़िरी प्रेमपत्र है
सुनो!
मुझसे मत कहना कि तुम मेरे प्रेम में थे
ग़लती से भी मत कहना
कुछ बातें कहने के साथ ही
अपना अर्थ खो देती हैं
हमारे बीच कितना प्रेम था
सोचना और लिखना
कहना-सुनना
संभव नहीं मेरे लिए
मैंने आँचल के कोर में बाँध लिया
फागुन की गाँठ की तरह
तपती जेठ की दुपहरी में
जलती धरती की छाती पर
विरहन की हूक की तरह उठती तुम्हारी यादें
इन सन्नाटे भरे दिनों में
जब जीना दुभर हो रहा हो तन्हाई में
मैंने सीख लिया प्रेम करना ख़ुद से
पकड़ कर तुम्हारी यादों की डोर
क्योंकि गुलमोहर मेरी याद में
तुम्हारा आख़िरी प्रेमपत्र है
थोड़ा नरम
थोड़ा खट्टा... मीठा भी
तुम्हें देखते हुए
मुझे बचपन के चूरन याद आते हैं
ख़ूब गिले-शिकवे
उलाहने
तुम समझे नहीं
मैंने बताया नहीं
जाओ यहीं छोड़कर
अपनी बातों की तासीर
जब तुमने कहा कि
मैं तुम्हारे दिल में रहती हूँ
बस इतना बहुत था
मैंने आँखे बंद कर लीं
सहेज लिया सब कुछ
जाओ! तुम ख़ुश रहना और बाँटते रहना
दुनिया में मेरे हिस्से का प्रेम...
जब-जब खिलेंगे गर्म मौसम में
गुलमोहर के फूल
मैं तलाश लूँगी तुम्हारे प्रेम की लाली
धरती ख़ुश हो लेती है जैसे
तमाम उलाहनों के बीच
गुलमोहर से मिलकर
मैं बचा कर रखूँगी रसोई में
हल्दी के डिब्बे में थोड़ा-सा पीलापन
हल्दी की थाप से सजी तुम्हारी गलियाँ
जब जोहती हैं बाट बसंत की
सावन को पुकारतीं हैं किसी नवब्याता बेटी की तरह
मैं जेठ की लू भरी दुपहरी से पूछती हूँ तुम्हारा पता
न जाने किस देश में है तुम्हारा ठौर
तुम जब भी लौटना
पूछ लेना गुलमोहर से मेरा पता
क्योंकि गुलमोहर मेरी याद में
तुम्हारा आख़िरी प्रेमपत्र है।
०००
गुलमोहर के प्रेमपथ पर
अभिनव पंचोली

मार्ग पर चलते हुए,
मनन-चिंतन करते हुए,
जहां तक गयी दृष्टि,
छितराए पड़े थे,
लाल फूल ही लाल फूल……..
ग्रीवा उठाकर इधर-उधर देखा,
चहुं ओर हरा और लाल,
अनंत नीला परिप्रेक्ष्य,
बीच-बीच में पुष्पवर्षा,
साधारण सड़क किसी चित्र-सी सुशोभित ।
ना मानो, तो कुछ नहीं,
हैं वही पुराने गुलमोहर,
जो बूझ सको सौन्दर्य अगर तो,
रंग लाल, रंगत अति मनोहर,
गुलमोहर हैं, गुल मोहर !
लाल फूल हैं, सुर्ख लाल!
आसक्त हो कर चमके लाल,
धूप में तपकर हुए लाल,
भक्ति में रंग गए लाल,
लहू से भी गहरे ये लाल !
चूंकि प्रभु मस्तक पर सजाये,
तो कृष्णचूड़ भी कहलाए,
आभूषणों से सुसज्जित वृक्ष को,
राज आभरण पुकारा जाये,
नाम चला लेकिन एक ही-
गुलमोहर ही जनमानस को भाए,
पुष्पित हो जब यह वृक्ष तब,
नगर विवाह-मंडप सा सज जाए।
०००
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