सलिल सृजन अगस्त ८,
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सॉनेट
संसद
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यह संसद है लोकतंत्र की,
सत्य देखना यहाँ मना है,
झलक नहीं है जन-गण मन की,
अहंकार का शीश तना है।
यह संसद है प्रजातंत्र की,
सत्य बोलना यहाँ मना है,
जय जुमलों के महामंत्र की,
दलबंदी कोहरा घना है।
यह संसद है भ्रष्ट तंत्र की,
सुनना-कहना सत्य मना है,
जगह नहीं जन की बातों को,
सत्ता पाना लक्ष्य बना है।
तंत्र न यह जन-गण-मन सुनता।
यंत्र स्वार्थ के सपने बुनता।।
८-८-२०२३
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सॉनेट
मीरा
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दुख में सुख मीरा की प्रीत
मिले फूल को पत्थर मीत
सिसक रहे चुप होकर गीत
समय न बदले काहे रीत
मीरा कभी न हुई अतीत
लगे हार भी उसको जीत
दुनियादारी कहे अनीत
वह गुंजाती हरि के गीत
मीरा किंचित हुई न भीत
जन्म-जन्म से हरि की क्रीत
मिलन हेतु नित रहे अधीत
आत्म हुई परमात्म प्रणीत
मीरा को है वही सुनीत
जग कहता है जिसे कुरीत
८-८-२०२२
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चिकित्सा सलिला
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नुस्खे
मधुमेह रोगी (डाईबेटिक पेशेंट) की चोट जल्दी ठीक ही नही हो तो धीरे धीरे गैंग्रीन (अंग का सड़ जाना) में बदल जाती है अंत में वह अंग काटना पड़ता है। गैंग्रीन माने अंग का सड़ जाना, जहाँ पे नए कोशिका विकसित नही होते। न तो मांस में और न ही हड्डी में और सब पुराने कोशिका मरते चले जाते हैं। Osteomyelitis में भी कोशिका कभी पुनर्जीवित नही होती, जिस हिस्से में हो वहाँ बहुत बड़ा घाव हो जाता है और वो ऐसा सड़ता है कि काटने केअलावा और कोई दूसरा उपाय नही रहता।
एक औषधि है जो गैंग्रीन को भी ठीक करती है और Osteomyelitis (अस्थिमज्जा का प्रदाह) को भी ठीक करती है।इसे आप अपने घर में तैयार कर सकते हैं। औषधि है देशी गाय का मूत्र (आठ परत सूती कपड़े में छानकर) , हल्दी और गेंदे का फूल। पीले या नारंगी गेंदे के फुल की पंखुरियाँ निकालकर उसमें हल्दी मिला दें फिर गाय मूत्र में डालकर उसकी चटनी बना लें। यह चटनी घाव पर दिन में दो बार लगा कर उसके ऊपर रुई रखकर पट्टी बाँधिए। चटनी लगाने के पहले घाव को छाने हुए जो मूत्र से ही धो लें। डेटोल आदि का प्रयोग मत करिए।
यह बहुत प्रभावशाली है। इस औषधि को हमेशा ताजा बनाकर लगाना है। किसी भी प्रकार का ज़ख्म जो किसी भी औषधि से ठीक नही हो रहा है तो यह औषधि आजमाइए। गीला सोराइसिस जिसमेँ खून भी निकलता है, पस भी निकलता है उसको यह औषधि पूर्णरूप से ठीक कर देती है। दुर्घटनाजनित घाव पर इसे अलगते ही रक्त स्राव रुक जाता है। ऑपरेशन के घाव के लिए भी यह उत्तम औषधि है। गीले एक्जीमा में यह औषधि बहुत काम करती है, जले हुए जखम में भी लाभप्रद है।
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हाथ, पैर और तलुओं की जलन
हाथ-पैर, तलुओं और शरीर में जलन की शिकायत हो तो ५ कच्चे बेल के फलों के गूदे को २५० मिली लीटर नारियल तेल में एक सप्ताह तक डुबाये रखने के बाद में छानकर जलन देने वाले शारीरिक हिस्सों पर मालिश करनी चाहिए, अतिशीघ्र जलन की शिकायत दूर हो जाएगी।
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दस्त - डायरिया
नींबू का रस निकालने के बाद छिलके छाँव में रखकर सुखा लें। कच्चे हरे केले का छिल्का उतारकर बारीक-बारीक टुकड़े करें और इसे भी छाँव में सुखा लें। केले में स्टार्च और नीबू के छिल्कों मे सबसे ज्यादा मात्रा में पेक्टिन होता है। दोनों अच्छी तरह सूख जाएँ तो समान मात्रा लेकर बारीक पीस लें या मिक्सर में एक साथ ग्राइंड कर लें। यह चूर्ण दस्त और डायरिया का अचूक इलाज है। दो-दो घंटे के अंतराल से १ चम्मच चूर्ण खाइये। शीघ्र आराम मिलता है।
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शब्द सलिला : तमाशा
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हिंदी तमाशा - संस्कृत, पुल्लिंग, संज्ञा, मन को प्रसन्न करने वाला दृश्य; मनोरंजक दृश्य, वह खेल जिससे मनोरंजन होता है, अद्भुत व्यापार या कार्य; अनोखी बात, खेलकूद, हँसी आदि की कोई घटना, ।
मराठी तमाशा -
महाराष्ट्र की एक लोककला, लोक नाट्य, निर्लज्जता भरा काम या व्यवहार या उलटी-पुलटी हरकत, खेल का प्रदर्शन, वह दृश्य जिसके देखने से मनोरंजन हो, मन को प्रसन्न करने वाला दृश्य।
सैर, तफ़रीह, दीदार, लुत्फ़, वाज़ीगरों या मदारियों का खेल, नाटक, अजूबापन, हँसी-मज़ाक, भाँड़ों या बहुरूपियों की नक़ल या स्वाँग।
तमाशाई - अरबी, फ़ारसी, विशेषण = तमाशा देखनेवाला।
तमाशाकुनां - अरबी, फ़ारसी, विशेषण = सैर से दिल बहलाता हुआ।
तमाशाखानम - अरबी, तुर्की, स्त्रीलिंग, = हँसने-हँसानेवाली महिला।
तमाशागर - अरबी, फ़ारसी, विशेषण = तमाशा करनेवाला, कौतुकी।
तमाशागाह - अरबी, फ़ारसी, स्त्रीलिंग = वहजगह जहाँ तमाशा होता है, लीलागृह, कौतुकागार, क्रीड़ास्थल।
तमाशाबीं - अरबी, फ़ारसी, विशेषण = तमाशा देखनेवाला, कौतुकदर्शी।
तमाश गीर / बीन हिंदी पुल्लिंग = तमाशा देखनेवाला, कौतुकदर्शी, अय्याश।
तमाशबीनी हिंदी पुल्लिंग = अय्याशी।
English Tamasha - noun, spectacle, pageant, show, entertainment, exhibition, amusement.
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काव्य पंक्तियाँ / अशआर
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दोहे - संजीव वर्मा 'सलिल'
कौन तमाशा कर रहा, देख रहा है कौन
पूछ आईने से लिया, उत्तर पाया मौन
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आप तमाशागर करे, यहाँ तमाशा रोज
किसे तमाशाई कहें, करिये आकर खोज
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मंदिर-मस्जिद हो गए, हाय! तमाशागाह
हैरत में भगवान है, मुश्किल में अल्लाह
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आप तमाशागर हैं, आप तमाशागीर
करें तमाशा; बाप की, संसद है जागीर
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तमाशा देख रहे थे जो डूबने का मिरे
मिरी तलाश में निकले हैं कश्तियाँ ले कर - अज्ञात
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चाहता है इस जहां में गर बहिश्त
जा तमाशा देख उस रुख़्सार का - वली मोहम्मद वली
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इश्क़ और अक़्ल में हुई है शर्त
जीत और हार का तमाशा है - सिराज औरंगाबादी
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है मश्क़-ए-सुख़न जारी चक्की की मशक़्क़त भी
इक तुर्फ़ा तमाशा है 'हसरत' की तबीअत भी - हसरत मोहानी
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कभी उनका नहीं आना ख़बर के ज़ैल में था
मगर अब उनका आना ही तमाशा हो गया है -अरशद कमाल
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शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमाशा है
जिस डाल पे बैठे हो वो टूट भी सकती है -बशीर बद्र
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जो कुछ निगाह में है हक़ीक़त में वो नहीं
जो तेरे सामने है तमाशा कुछ और है - आफ़ताब हुसैन
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ये मोहब्बत है इसे देख तमाशा न बना
मुझ से मिलना है तो मिल हद्द-ए-अदब से आगे - ज़करिय़ा शाज़
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ज़िंदगी टूट के बिखरी है सर-ए-राह अभी
हादिसा कहिए इसे या कि तमाशा कहिए - दाऊद मोहसिन
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हमारे इश्क़ में रुस्वा हुए तुम
मगर हम तो तमाशा हो गए हैं - अतहर नफ़ीस
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तब्अ तेरी अजब तमाशा है
गाह तोला है गाह माशा है - शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
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जलाल-ए-पादशाही हो कि जमहूरी तमाशा हो
जुदा हो दीं सियासत से तो रह जाती है चंगेज़ी - अल्लामा इक़बाल
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ये मेरे गिर्द तमाशा है आँख खुलने तक
मैं ख़्वाब में तो हूँ लेकिन ख़याल भी है मुझे - मुनीर नियाज़ी
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वहशत में भी मिन्नत-कश-ए-सहरा नहीं होते
कुछ लोग बिखर कर भी तमाशा नहीं होते - ज़ेहरा निगाह
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हक़ीक़त को तमाशे से जुदा करने की ख़ातिर
उठा कर बारहा पर्दा गिराना पड़ गया है - मुस्तफ़ा शहाब
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ग़म अपने ही अश्कों का ख़रीदा हुआ है
दिल अपनी ही हालत का तमाशाई है देखो - ज़ेहरा निगाह
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रोती हुई एक भीड़ मिरे गिर्द खड़ी थी
शायद ये तमाशा मिरे हँसने के लिए था - मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
८-८-२०२०
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नवगीत:
अब भी बहनें
बाँध रही हैं राखी
लायीं मिठाई भी
*
उन्हें पता है उनकी रक्षा
भाई नहीं कर पायेगा
अगर करे तो बेबस खुद भी
अपनी जान गँवायेगा
विधवा भौजी-माँ कलपेगी
बच्चे होंगे बिलख अनाथ-
अख़बारों में छप अपराधी
सहज जमानत पायेगा
मानवतावादी-वकील मिल
मुक्त करा घर भर लेंगे
दूरदर्शनी चैनल पर
अपराधी आ मुस्कायेगा
बहनें कहाँ भूलती
हैं भाई का स्नेह
कलाई भी
अब भी बहनें
बाँध रही हैं राखी
लायीं मिठाई भी
*
दुनिया का बाज़ार बड़ा है
पुरा संस्कृति का यह देश
विश्व गुरु को रोज पढ़ाते
आतंकी घुस पाठ विशेष
छप्पन इंची चौड़ी छाती
अच्छे दिन ले आयी है
सैनिक अनशन पर बैठे
पर शर्म न आयी अब तक लेश
सैद्धांतिक सहमति पर
अफसर कुंडलि मारे बैठे हैं
नेता जी खुश विजय-पर्व पर
सैनिक नोचें अपने केश
बहनें दुबली हुई
फ़िक्र से, भूखा
सैनिक भाई भी
अब भी बहनें
बाँध रही हैं राखी
लायीं मिठाई भी
*
व्यथा न सुनता कोई
नौ-नौ आँसू रुला रही है प्याज
भरी तिजोरी तेजडियों की
चंदा दे, लूटें कर राज
केर-बेर का संग, बना
सरकार दोष दें पिछलों को
वादों को जुमला कह भूले
जनगण-मन पर गिरती गाज
प्रोफाइल है हाई, शादियाँ
पाँच करें बेटी मारें
मस्ती मौज मजा पाने को
बेच रहे हैं धनपति लाज
बने माफिया खुद
जनप्रतिनिधि,
संसद लख शर्माई भी
अब भी बहनें
बाँध रही हैं राखी
लायीं मिठाई भी
*
लघु कथा
काल्पनिक सुख
*
'दीदी! चलो बाँधो राखी' भाई की आवाज़ सुनते ही उछल पडी वह। बचपन से ही दोनों राखी के दिन खूब मस्ती करते, लड़ते का कोई न कोई कारण खोज लेते और फिर रूठने-मनाने का दौर।
'तू इतनी देर से आ रहा है? शर्म नहीं आती, जानता है मैं राखी बाँधे बिना कुछ खाती-पीती नहीं। फिर भी जल्दी नहीं आ सकता।'
"क्यों आऊँ जल्दी? किसने कहा है तुझे न खाने को? मोटी हो रही है तो डाइटिंग कर रही है, मुझ पर अहसान क्यों थोपती है?"
'मैं और मोटी? मुझे मिस स्लिम का खिताब मिला और तू मोटी कहता है.... रुक जरा बताती हूँ.'... वह मारने दौड़ती और भाई यह जा, वह जा, दोनों की धाम-चौकड़ी से परेशान होने का अभिनय करती माँ डांटती भी और मुस्कुराती भी।
उसे थकता-रुकता-हारता देख भाई खुद ही पकड़ में आ जाता और कान पकड़ते हुई माफ़ी माँगने लगता। वह भी शाहाना अंदाज़ में कहती- 'जाओ माफ़ किया, तुम भी क्या याद रखोगे?'
'अरे! हम भूले ही कहाँ हैं जो याद रखें और माफी किस बात की दे दी?' पति ने उसे जगाकर बाँहों में भरते हुए शरारत से कहा 'बताओ तो ताकि फिर से करूँ वह गलती'...
"हटो भी तुम्हें कुछ और सूझता ही नहीं'' कहती, पति को ठेलती उठ पड़ी वह। कैसे कहती कि अनजाने ही छीन गया है उसका काल्पनिक सुख।
८-८-२०१७
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मुक्तक
मधु रहे गोपाल बरसा वेणु वादन कर युगों से
हम बधिर सुन ही न पाते, घिरे हैं छलिया ठगों से
कहाँ नटनागर मिलेगा,पूछते रणछोड़ से क्यों?
बढ़ चलें सब भूल तो ही पा सकें नन्हें पगों से
*
रंज ना कर मुक्ति की चर्चा न होती बंधनों में
कभी खुशियों ने जगह पाई तनिक क्या क्रन्दनों में?
जो जिए हैं सृजन में सच्चाई के निज स्वर मिलाने
'सलिल' मिलती है जगह उनको न किंचित वंदनों में
8-8-2017
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दोहा सलिलाः
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प्राची पर आभा दिखी, हुआ तिमिर का अन्त
अन्तर्मन जागृत करें, सन्त बन सकें सन्त
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आशा पर आकाश है, कहते हैं सब लोग
आशा जीवन श्वास है, ईश्वर हो न वियोग
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जो न उषा को चाह्ता, उसके फूटे भाग
कौन सुबह आकर कहे, उससे जल्दी जाग
*
लाल-गुलाबी जब दिखें, मनुआ प्राची-गाल
सेज छोड़कर नमन कर, फेर कर्म की माल
*
गाल टमाटर की तरह, अब न बोलना आप
प्रेयसि के नखरे बढ़ें, प्रेमी पाये शाप.
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प्याज कुमारी से करे, युवा टमाटर प्यार
किसके ज्यादा भाव हैं?, हुई मुई तकरार
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८.८.२०१४
दोहा सलिला:
अलंकारों के रंग-राखी के संग
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राखी ने राखी सदा, बहनों की मर्याद.
संकट में भाई सदा, पहलें आयें याद..
राखी= पर्व, रखना.
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राखी की मक्कारियाँ, राखी देख लजाय.
आग लगे कलमुँही में, मुझसे सही न जाय..
राखी= अभिनेत्री, रक्षा बंधन पर्व.
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मधुरा खीर लिये हुए, बहिना लाई थाल.
किसको पहले बँधेगी, राखी मचा धमाल..
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अक्षत से अ-क्षत हुआ, भाई-बहन का नेह.
देह विदेहित हो 'सलिल', तनिक नहीं संदेह..
अक्षत = चाँवल के दाने,क्षतिहीन.
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रो ली, अब हँस दे बहिन, भाई आया द्वार.
रोली का टीका लगा, बरसा निर्मल प्यार..
रो ली= रुदन किया, तिलक करने में प्रयुक्त पदार्थ.
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बंध न सोहे खोजते, सभी मुक्ति की युक्ति.
रक्षा बंधन से कभी, कोई न चाहे मुक्ति..
बंध न = मुक्त रह, बंधन = मुक्त न रह
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हिना रचा बहिना करे, भाई से तकरार.
हार गया तू जीतकर, जीत गयी मैं हार..
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कब आएगा भाई? कब, होगी जी भर भेंट?
कुंडी खटकी द्वार पर, भाई खड़ा ले भेंट..
भेंट= मिलन, उपहार.
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मना रही बहिना मना, कहीं न कर दे सास.
जाऊँ मायके माय के, गले लगूँ है आस..
मना= मानना, रोकना.
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गले लगी बहिना कहे, हर संकट हो दूर.
नेह बर्फ सा ना गले, मन हरषे भरपूर..
गले=कंठ, पिघलना.
8-8-2014
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गीत:
कब होंगे आजाद
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कब होंगे आजाद?
कहो हम कब होंगे आजाद?....
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गए विदेशी पर देशी अंग्रेज कर रहे शासन.
भाषण देतीं सरकारें पर दे न सकीं हैं राशन..
मंत्री से संतरी तक कुटिल कुतंत्री बनकर गिद्ध-
नोच-खा रहे भारत माँ को ले चटखारे स्वाद.
कब होंगे आजाद?कहो हमकब होंगे आजाद?....
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नेता-अफसर दुर्योधन हैं, जज-वकील धृतराष्ट्र.
धमकी देता सकल राष्ट्र को खुले आम महाराष्ट्र..
आँख दिखाते सभी पड़ोसी, देख हमारी फूट-
अपने ही हाथों अपना घर करते हम बर्बाद.
कब होंगे आजाद?कहो हमकब होंगे आजाद?....
*
खाप और फतवे हैं अपने मेल-जोल में रोड़ा.
भष्टाचारी चौराहे पर खाए न जब तक कोड़ा.
तब तक वीर शहीदों के हम बन न सकेंगे वारिस-
श्रम की पूजा हो समाज में, ध्वस्त न हो मर्याद.
कब होंगे आजाद?कहो हमकब होंगे आजाद?....
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पनघट फिर आबाद हो सकें, चौपालें जीवंत.
अमराई में कोयल कूके, काग न हो श्रीमंत.
बौरा-गौरा साथ कर सकें नवभारत निर्माण-
जन न्यायालय पहुँच गाँव में विनत सुनें फ़रियाद-
कब होंगे आजाद?कहो हम कब होंगे आजाद?....
*
रीति-नीति, आचार-विचारों, भाषा का हो ज्ञान.
समझ बढ़े तो सीखें रुचिकर, धर्म प्रीति विज्ञान.
सुर न असुर, हम आदम यदि बन पायेंगे इंसान-
स्वर्ग 'सलिल' हो पायेगा तब धरती पर आबाद.
कब होंगे आजाद?कहो हम कब होंगे आजाद?....
८-९-२०१०
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