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मंगलवार, 6 अगस्त 2024

अगस्त ६, नवगीत, संसद, बाल गीत, वर्षा

सलिल सृजन अगस्त ६
*
नवगीत :
*
संसद की दीवार पर
दलबन्दी की धूल
राजनीति की पौध पर
अहंकार के शूल
*
राष्ट्रीय सरकार की
है सचमुच दरकार
स्वार्थ नदी में लोभ की
नाव बिना पतवार
हिचकोले कहती विवश
नाव दूर है कूल
लोकतंत्र की हिलाते
हाय! पहरुए चूल
*
गोली खा, सिर कटाकर
तोड़े थे कानून
क्या सोचा था लोक का
तंत्र करेगा खून?
जनप्रतिनिधि करते रहें
रोज भूल पर भूल
जनगण का हित भुलाकर
दे भेदों को तूल
*
छुरा पीठ में भोंकने
चीन लगाये घात
पाक न सुधरा आज तक
पाकर अनगिन मात
जनहित-फूल कुचल रही
अफसरशाही फूल
न्याय आँख पट्टी, रहे
ज्यों चमगादड़ झूल
*
जनहित के जंगल रहे
जनप्रतिनिधि ही काट
देश लूट उद्योगपति
खड़ी कर रहे खाट
रूल बनाने आये जो
तोड़ रहे खुद रूल
जैसे अपने वक्ष में
शस्त्र रहे निज हूल
*
भारत माता-तिरंगा
हम सबके आराध्य
सेवा-उन्नति देश की
कहें न क्यों है साध्य?
हिंदी का शतदल खिला
फेंकें नोंच बबूल
शत्रु प्रकृति के साथ
मिल कर दें नष्ट समूल
[प्रयुक्त छंद: दोहा, १३-११ समतुकांती दो पंक्तियाँ,
पंक्त्यान्त गुरु-लघु, विषम चरणारंभ जगण निषेध]
६.८.२०१५
***
बाल गीत:
बरसे पानी
*
रिमझिम रिमझिम बरसे पानी.
आओ, हम कर लें मनमानी.
बड़े नासमझ कहते हमसे
मत भीगो यह है नादानी.
वे क्या जानें बहुतई अच्छा
लगे खेलना हमको पानी.
छाते में छिप नाव बहा ले.
जब तक देख बुलाये नानी.
कितनी सुन्दर धरा लग रही,
जैसे ओढ़े चूनर धानी.
काश कहीं झूला मिल जाता,
सुनते-गाते कजरी-बानी.
'सलिल' बालपन फिर मिल पाये.
बिसराऊँ सब अकल सयानी.
६.८.२०११
***

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