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रविवार, 21 फ़रवरी 2021

गीत : सबको हक है जीने का

गीत :
सबको हक है जीने का  
संजीव 'सलिल'

सबको हक है जीने का,
चुल्लू-चुल्लू पीने का.....
*
जिसने पाई श्वास यहाँ,
उसने पाई प्यास यहाँ.
चाह रचा ले रास यहाँ.
हर दिन हो मधुमास यहाँ.
आह न हो, हो हास यहाँ.
आम नहीं हो खास यहाँ.

जो चाहा वह पा जाना
है सौभाग्य नगीने का.....
*
कोई अधूरी आस न हो,
स्वप्न काल का ग्रास न हो.
मनुआ कभी उदास न हो,
जीवन में कुछ त्रास न हो.
विपदा का आभास न हो.
असफल भला प्रयास न हो.

तट के पार उतरना तो
है अधिकार सफीने का.....
*
तम है सघन, उजास बने.
लक्ष्य कदम का ग्रास बने.
ईश्वर का आवास बने.
गुल की मदिर सुवास बने.
राई, फाग हुलास बने.
खास न खासमखास बने.

ज्यों की त्यों चादर रख दें
फन सीखें हम सीने का.....
******
२१-२-२०१० 

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