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रविवार, 21 फ़रवरी 2021

पाती आभा सक्सेना

पाती 
आभा सक्सेना
*
‘सलिल’ जी से हुआ है जब से वार्तालाप
कविता लिखनी आ गयी आया मात्रा नाप
आया मात्रा नाप साथ में गिनती सीखी
कविता मन को रूचि लग रही सखी सरीखी
कह आभा मुस्काय लगे अब छंद सरल है
मेरी कविता में छाई अब गन्ध ‘सलिल’ है
*
२१-२-२०१५ 

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