सदोका पंचक
*
ई कविता में
करते काव्य स्नान
कवि-कवयित्रियाँ .
सार्थक होता
जन्म निरख कर
दिव्य भाव छवियाँ।
*
ममता मिले
मन-कुसुम खिले,
सदोका-बगिया में।
क्षण में दिखी
छवि सस्मित मिले
कवि की डलिया में।
*
न नौ नगद
न तेरह उधार,
लोन ले, हो फरार।
मस्तियाँ कर
किसी से मत डर
जिंदगी है बहार।
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धूप बिखरी
कनकाभित छवि
वसुंधरा निखरी।
पंछी चहके
हुलस, न बहके
सुनयना सँवरी।
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श्लोक गुंजित
मन भाव विभोर,
पूज्य माखनचोर।
उठा हर्षित
सक्रिय नीरव भी
क्यों हो रहा शोर?
***
२२-२-२०१८
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