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शुक्रवार, 4 दिसंबर 2020

मुक्तक, दोहा सलिला

एक मुक्तक:
दे रहे हो तो सारे गम दे दो
चाह इतनी है आँखें नम दे दो
होंठ हँसते रहें हमेशा ही
लो उजाले, दो मुझे तम दे दो
*
दोहा सलिला
*
अगर कहानी की तरह, कहें आप इतिहास
भूलेगा कोई नहीं, कभी न पाए त्रास
*
कही समस्या तो नहीं, समझ शिकायत मीत
किया भरोसा किसी ने, खरा उतर है रीत
*
जन्म-मरण पर वश नहीं, कब हो है अज्ञात
जिएँ जिंदगी किस तरह, अपने वश में तात
*
भूलना सबको नहीं तू, भूल निज पहचान
याद रख मिट्टी-जड़ें निज, तभी तू इंसान
*

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