नवगीत
आओ! तनिक बदलें
*
प्रिय! मिलन, सहकार के
नवगीत कुछ रच लें।
*
सिर्फ स्यापा ही नहीं,
मुस्कान भी सच है।
दर्द-पीड़ा है अगर, मृदु
हास भी सच है।।
है विसंगति अगर तो
संगति छिपी उसमें-
सम्हल कर चलते चलें,
लड़कर नहीं फसलें।।
समय है बदलाव का,
आओ! तनिक बदलें।
प्रिय! मिलन, सहकार के
नवगीत कुछ रच लें।
*
बैठ ए. सी. में अगर
लू लिख रहे झूठी।
समझ लें हिम्मत किसी की
पढ़ इसे टूटी।
कौन दोषी कवि कहो
पूछे कलम तुझसे?
रोकते क्यों हौसले
नव गीत में मचलें?
पार कर सरहद न ग़ज़लें
गीत में धँस लें।।
प्रिय! मिलन, सहकार के
नवगीत कुछ रच लें।
*
व्यंग्य में, लघुकथा में,
क्यों सच न भाता है?
हो रुदाली मात्र कविता,
क्यों सुहाता है?
मनुज के उत्थान का सुख
भोगते हो तुम-
चाहते दुःख मात्र लिखकर
देश को ठग लें।
हैं न काबिल जो वही
हर बात का यश लें।
प्रिय! मिलन, सहकार के
नवगीत कुछ रच लें।
*
१६-१२-२०१८
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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गुरुवार, 17 दिसंबर 2020
नवगीत आओ! तनिक बदलें
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आचार्य संजीव वर्मा सलिल
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