मुक्तिका
*
जो है अपना, वही पराया है? १८
ठेंगा सबने हमें बताया है १८
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वक्त पर याद किया शिद्दत से १७
बाद में झट हमें भुलाया है
*
पाक दामन जो कह रहा खुदको
पंक में वह मिला नहाया है
*
जोड़ लीं दौलतें ज़माने ने
अंत में संग कुछ न पाया है
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श्वास चलती रहे संजीव तभी
पाठ सच ने यही पढ़ाया है
***
१०-१२-२०१६
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
गुरुवार, 10 दिसंबर 2020
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आचार्य संजीव वर्मा सलिल
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