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मंगलवार, 23 जुलाई 2019

कार्यशाला

कार्यशाला
सुनीता शानू
वो मुझे इस तरह मनाता है
रूठ जाऊँ तो रूठ जाता है
संजीव सलिल 
मैं अगर झट न मान जाऊँ तो 
काँच जैसे वो टूट जाता है 

२.६.२०१६
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