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बुधवार, 4 मार्च 2015

chhand salila: kundaliyaa -sanjiv

कुण्डलिया छंद
संजीव
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१. कुण्डलिनी छंद ६ पंक्तियों का छंद है जिसमें एक दोहा और एक रोला छंद  होते हैं.
२. दोहा का अंतिम चरण रोल का प्रथम चरण होता है.
३. दोहा का आरंभिक शब्द, शब्दांश, शब्द समूह या पूरा चरण रोला के अंत में प्रयुक्त होता है.
४. दोहा अर्ध सम मात्रिक  छंद है अर्थात इसके आधे-आधे हिस्सों में समान मात्राएँ  होती हैं.
अ. दोहा में २ पंक्तियाँ होती हैं, प्रत्येक के २ चरणों में १३+११=२४ मात्राएँ होती हैं. दोनों पंक्तियों में विषम (पहले, तीसरे) चरण में १३ मात्राएँ तथा सम (दूसरे, चौथे) चरण में ११ मात्राएँ होती हैं.
आ. दोहा के विषम चरण के आदि में जगण (जभान, लघुगुरुलघु जैसे अनाथ) वर्जित होता है. शुभ शब्द जैसे विराट अथवा दो शब्दों में जगण जैसे रमा रमण वर्जित नहीं होते. 
इ. दोहा के विषम चरण का अंत  रगण (राजभा गुरुलघुगुरु जैसे भारती) या नगण (नसल लघुलघुलघु जैसे सलिल) से होना चाहिए. 
ई. दोहा के सम चरण के अंत में गुरुलघु (जैसे ईश) होना आवश्यक है.
उ. दोहा के लघु-गुरु मात्राओं की संख्या के आधार पर २३ प्रकार होते हैं.
उदाहरण: समय-समय की बात है, समय-समय का फेर
               जहाँ देर है वहीं है, सच मानो अंधेर 
५.  दोहा अर्ध सम मात्रिक  छंद है अर्थात इसके आधे-आधे हिस्सों में समान मात्राएँ  होती हैं.
क. रोला में  ४ पंक्तियाँ होती हैं, प्रत्येक के २ चरणों में ११+१३=२४ मात्राएँ होती हैं. दोनों पंक्तियों में विषम (पहले, तीसरे, पाँचवे, सातवें) चरण में ११  मात्राएँ तथा सम (दूसरे, चौथे, छठवें, आठवें) चरण में १३ मात्राएँ होती हैं.
का. रोला के विषम चरण के अंत में गुरुलघु (जैसे ईश) होना आवश्यक है.
कि. रोला के सम चरण के आदि में जगण (जभान, लघुगुरुलघु जैसे अनाथ) वर्जित होता है. शुभ शब्द जैसे विराट अथवा दो शब्दों में जगण जैसे रमा रमण वर्जित नहीं होते.
की. रोल के सम चरण का अंत  रगण (राजभा गुरुलघुगुरु जैसे भारती) या नगण (नसल लघुलघुलघु जैसे सलिल) से होना चाहिए.
उदाहरण: सच मानो अंधेर, मचा संसद में हुल्लड़
               हर सांसद को भाँग, पिला दो भर-भर कुल्हड़
               भाँग चढ़े मतभेद, दूर हो करें न संशय
               नाचें गायें झूम, सियासत भूल हर समय
६. कुण्डलिया:
                      समय-समय की बात है, समय-समय का फेर
                      जहाँ देर है वहीं है, सच मानो अंधेर
                      सच मानो अंधेर, मचा संसद में हुल्लड़
                      हर सांसद को भाँग, पिला दो भर-भर कुल्हड़
                      भाँग चढ़े मतभेद, दूर हो करें न संशय
                      नाचें गायें झूम, सियासत भूल हर समय
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