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मंगलवार, 18 फ़रवरी 2014

chhand salila: chandika chhand -sanjiv

छंद सलिला:
चंडिका छंद
संजीव
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दो पदी, चार चरणीय, १३ मात्राओं के मात्रिक चंडिका छंद में चरणान्त में गुरु-लघु-गुरु का विधान है.
 

लक्षण छंद:
१. तेरह मात्री चंडिका, वसु-गति सम जगवन्दिता 
   गुरु लघु गुरु चरणान्त हो, श्वास-श्वास हो नंदिता 

२. वसु-गति आठ व पाँच हो, रगण चरण के अंत में 
   रखें चंडिका छंद में, ज्ञान रहे ज्यों संत में 

उदाहरण:

१. त्रयोदशी! हर आपदा, देती राहत संपदा
   श्रम करिये बिन धैर्य खो, नव आशा की फस्ल बो 

२. जगवाणी है भारती,
विश्व उतारे आरती
   ज्ञान-दान जो भी करे, शारद भव से तारती

३. नेह नर्मदा में नहा, राग द्वेष दुःख दें बहा 
   विनत नमन कर मात को, तम तज वरो उजास को 

४. तीन न तेरह में रहे,
जो मिथ्या चुगली कहे
   मौन भाव सुख-दुःख सहे, कमल पुष्प सम हँस बहे

(अब तक प्रस्तुत छंद: अग्र, अचल, अचल धृति, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, एकावली, कीर्ति, घनाक्षरी, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, नित, निधि, प्रदोष, प्रेमा, बाला, मधुभार, माया, माला, ऋद्धि, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शिव, शुभगति, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हंसी)
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