द्विपदियाँ
अनजान
संजीव
*
अनजान
दुनिया को जानने की ज़िद करता रहा मगर
मैं अपने आप ही से अनजान रह गया.
*
दंगे-फसाद कर रहे वे जान-बूझकर
मौला भला किया मुझे अनजान ही रखा
*
जानवर अनजान हैं बुराई से 'सलिल'
इंसान जान कर बुराई पालता मिला
*
यूं तो नुमाइंदे हैं वे आम के मगर
हैं आम से अनजान खुद को ख़ास कह रहे
*
अनजान अपने आप से वह शख्स रह गया
जिसने उमर गुज़ार दी औरों की फ़िक्र में
*
अनजान
संजीव
*
अनजान
दुनिया को जानने की ज़िद करता रहा मगर
मैं अपने आप ही से अनजान रह गया.
*
दंगे-फसाद कर रहे वे जान-बूझकर
मौला भला किया मुझे अनजान ही रखा
*
जानवर अनजान हैं बुराई से 'सलिल'
इंसान जान कर बुराई पालता मिला
*
यूं तो नुमाइंदे हैं वे आम के मगर
हैं आम से अनजान खुद को ख़ास कह रहे
*
अनजान अपने आप से वह शख्स रह गया
जिसने उमर गुज़ार दी औरों की फ़िक्र में
*
1 टिप्पणी:
Mahipal Tomar, yahoogroups.com ekavita
संजीव जी , ये द्विपदियाँ जोरदार हैं पर किसी किसी में अंतर्विरोध भी है ।
सादर ,
महिपाल
द्विपदियाँ
अनजान
संजीव
*
अनजान
दुनिया को जानने की ज़िद करता रहा मगर
मैं अपने आप ही से अनजान रह गया. ( बढ़िया )
*
दंगे-फसाद कर रहे वे जान-बूझकर
मौला भला किया मुझे अनजान ही रखा ( बढ़िया )
*
जानवर अनजान हैं बुराई से 'सलिल'
इंसान जान कर बुराई पालता मिला (सुन्दर )
*
यूं तो नुमाइंदे हैं वे आम के मगर
हैं आम से अनजान खुद को ख़ास कह रहे
*
अनजान अपने आप से वह शख्स रह गया
जिसने उमर गुज़ार दी औरों की फ़िक्र में (ऐसे औलिया को सलाम )
एक टिप्पणी भेजें