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शनिवार, 13 जुलाई 2013

muktika: --sanjiv

मुक्तिका :
संजीव
*
खूब आरक्षण दिया है, खूब बाँटी राहतें.
झुग्गियों में जो बसे, सुधरी नहीं उनकी गतें..
*
सडक पर ले पादुका अभिषेक करतीं बेटियां
शोहदों की सुधरती ही नहीं फिर भी हरकतें
*
थक गए उपदेश देकर, संत मुल्ला पादरी.
सुन रहे प्रवचन मगर, छोड़ें नहीं श्रोता लतें.
* ​
बदनीयत होकर ज़माना खुश न अब तक हो सका
नेक नीयत से 'सलिल' ने पाई हरदम बरकतें.
*
नींव में पड़ता नहीं चुपचाप रहकर यदि 'सलिल'
कहें तो किस तरह  मिलतीं सर छिपाने को छतें.
*

5 टिप्‍पणियां:

kusum vir ने कहा…

Kusum Vir via yahoogroups.com


सडक पर ले पादुका अभिषेक करतीं बेटियां
शोहदों की सुधरती ही नहीं फिर भी हरकतें

थक गए उपदेश देकर, संत मुल्ला पादरी.
सुन रहे प्रवचन मगर, छोड़ें नहीं श्रोता लतें.

आचार्य जी I
क्या बात ! क्या बात ! क्या बात !
कितनी सामयिक, सटीक और यथार्थ बात कही है आपने I
कृपया सराहना स्वीकारें I
सादर,
कुसुम वीर

Indira Sharma ने कहा…

Indira Sharma via yahoogroups.compindira77@gmail.com


आदरणीय संजीव जी ,मुक्तिकाएँ लिखनें में तो आप माहिर हैं ,अपने में पूर्ण और मनभावनी लगती हैं| सराहना स्वीकार करें |
इंदिरा

pranav bharti ने कहा…

Pranava Bharti via yahoogroups.com


वाह ! क्या बात है !!!!!
सुंदर
प्रणव

Shishir Sarabhai ने कहा…



संजीव जी,
सच बहुत प्यारी मुक्तिकएं

साधुवाद,
शिशिर

deepti gupta ने कहा…




लाजवाब मुक्तिकाएँ , प्रतिष्ठित कवि की कलम से !

नमन !
सादर,
दीप्ति