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सोमवार, 1 जुलाई 2013

doha salila : pratinidhi dohe 2- purnima barman, sharjah






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pratinidhi doha kosh 2-  

purnima barman, sharjah  

प्रतिनिधि दोहा कोष:2

 इस स्तम्भ के अंतर्गत आप पढ़ चुके हैं श्री नवीन सी. चतुर्वेदी के दोहे। आज अवगाहन कीजिए पूर्णिमा रचित दोहा सलिला में :       
    
पूर्णिमा बर्मन, शारजाह  
नाम- पूर्णिमा वर्मन

माता- श्रीमती सरोज प्रभा वर्मन।

पिता- श्री आदित्यकुमार वर्मन।

पति- श्री प्रवीण सक्सेना।

जन्मतिथि व स्थान- २७ जून १९५५ पीलीभीत, उत्तर प्रदेश, भारत।

शिक्षा-         साहित्य में स्नातकोत्तर उपाधि, स्वातंत्र्योत्तर संस्कृत साहित्य पर शोध, पत्रकारिता और वेब डिजाइनिंग में डिप्लोमा।
प्रकाशित साहित्य- दो कविता संग्रह 'पूर्वा' और 'वक्त के साथ'।

संपर्क: पी.ओ.बाक्स- 25450, शारजाह, यू.ए.ई. चलभाष- 0509857675।
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दोहे-


होली के दोहे (नौ दोहे)


रंग-रंग राधा हुई, कान्हा हुए गुलाल
वृंदावन होली हुआ, सखियाँ रचें धमाल

होली राधा श्याम की, और न होली कोय

जो मन राँचे श्याम रंग, रंग चढ़े ना कोय


नंदग्राम की भीड़ में, गुमे नंद के लाल

सारी माया एक है, क्या मोहन क्या ग्वाल                    



आसमान टेसू हुआ, धरती सब पुखराज



मन सारा केसर हुआ, तन सारा ऋतुराज

बार-बार का टोंकना, बार-बार मनुहार

धूम-धुलेंडी गाँवभर, आँगनभर त्योहार


फागुन बैठा देहरी, कोठे चढ़ा गुलाल

होली टप्पा दादरा, चैती सब चौपाल


सरसों पीली चूनरी, कहे हवा संग छंद

नयी धूप में खुल रहे, मन के बाजूबंद


महानगर की व्यस्तता, मौसम घोले भंग

इक दिन की आवारगी, छुट्टी होली रंग


अंजुरी में भरपूर हों, सदा रूप रस गंध

जीवन में अठखेलियाँ, करती रहे सुगंध


गरमी के दोहे (पाँच दोहे)















       


गरमी ने खटका दिये, फिर वैशाखी द्वार
विष की बुझी कटार सी, चलने लगी बयार


छाँह लुकी बेबस हुई, आँख दिखाये जेठ
प्रियतम गुलमोहर हुए, देख जेठ की हेठ


भठ्ठी जैसा आँगना, जलते हुए दलान

खस से भीगी कोठरी, रखे बिजैना मान


मौसम के बाज़ार में, धूप दोपहर ताप

लू में गिरें टिकोरियाँ, ज्यों घोड़े की टाप
                                                                                                    नीम उदासी दोपहर, कच्ची अमिया धूप                                           
देह -द्वार अन्होंरियाँ लगीं फटकने सूप


बरसाती दोहे (बारह दोहे)



भादों आया देख कर, हुई सुहानी शाम

मौसम भी लिखने, लगा पत्तों पर पैगाम



चादर ओढ़ी सुरमई, छोड़ सिंदूरी गाम

बात-बात में बढ़ गई, बारिश से पहचान



गलियारे पानी भरे, आँगन भरे फुहार

सावन बरसा झूम के, भादों बही बयार



छम-छम बाजे पायली, रूके नहीं बरसात

हरी मलमली चूनरी, तितली चूड़ा सात



बादल में मादल बजे, नभ गूँजे संतूर

मन में बिच्छू सा चुभे, घर है कितनी दूर



कच्ची-पक्की मेड़ पर, बस छाते का साथ

हवा मनचली खींचती, पकड़-पकड़ कर हाथ



बरसी बरखा झूम के, सबके मिटे मलाल

खेतों में हलचल बढ़ी, खाली हैं चौपाल



गड़ गड़ बाजी बादरी, भिगो गई दालान

खट्टे मन मीठे हुए, क्या जामुन क्या आम

     

बादल की अठखेलियाँ, बारिश का उत्पात

ऐसा दोनों का मिलन, सूखे को दी मात



ताल-तलैया भर गये, झरनों की भरमार

मन-खिड़की से झाँकता, हरा-भरा व्यापार।



हरी नीम से झर रही, मीठी-मीठी धूप,

सावन की तनहाई में, काटे कटे न ऊब



छप्पर पिछले बरस का, इस मौसम की धार,

मन ही मन इस दर्द का, हर पल चढ़े उधार


फागुन के दोहे (दस दोहे)




ऐसी दौड़ी फगुनहट, ढाणी चौक फलाँग

फागुन आया खेत में, भर फसलों की माँग



आम बौरता आँगना, कोयल चढ़ी अटार

चंग द्वार दे दादरा, मौसम हुआ बहार



दूब फूल की गुदगुदी, बतरस चढ़ी मिठास

मुलके दादी भामरी, मौसम को है आस



वर गेहूँ बाली सजा, खड़ी फ़सल बारात

सुग्गा छेड़े पी कहाँ, सरसों पीली गात



ऋतु के मोखे सब खड़े, पाने को सौगात

मानक बाँटे छाँटकर, टेसू ढाक पलाश



ढीठ छोरियाँ तितलियाँ, रोकें राह वसंत

धरती सब क्यारी हुई, अम्बर हुआ पतंग



मौसम के मतदान में, हुआ अराजक काम

पतझर में घायल हुए, निरे पात पैगाम



दबा बनारस पान को, पीक दई यौं डार

चैत गुनगुनी दोपहर, गुलमोहर कचनार



सजे माँडने आँगने, होली के त्योहार

बुरी बलायें जल मरें, शगुन सजाये द्वार



मन-आँगन कुंकुम रचे, गाल अबीर गुलाल

लाली फागुन माह की, बढ़े साल दर साल



उदास गाँव (छह दोहे)


कहते-कहते रुक गयी, पीपलवाली छाँव

क्यों उदास होने लगे, उत्सववाले गाँव



आसमान में भर गयी, कर्फ्यूवाली धूप

सहमा-सहमा सा लगे, गुलमोहर का रूप



सोनेवाली बज रही, दोपहरी की झाँझ

अमलतास पर झूलता, मौन अगोरे साँझ



दिन पछाँह की हेठियाँ, लू लश्कर के साथ

चाँदीवाला मन लिये, रात फेरती हाथ



धूल-धूल होता रहा, पगडंडी का नेह

मृगतृष्णा गढ़ती रही, सड़कोंवाली देह



शहरों में बसने लगे, सुविधावाले लोग

माटीवाले प्यार में, लिखा रहा बस जोग



हुरियारों की भीड़ (दस दोहे)


 
भोर जली होली सखी, दिन भर रंग फुहार
टेसू की अठखेलियाँ, पूर गयीं घर-द्वार


जोश, -जश्न, -पिचकारियाँ,  -अंबर उड़ा गुलाल
हुरियारों -की -भीड़ में, जमने लगा धमाल


शहर रंग से भर गया, चेहरों पर उल्लास
गली-गली में टोलियाँ, बाँटें हास-हुलास


हवा-हवा केसर उड़ा, टेसू बरसा देह
बातों में किलकारियाँ, मन में मीठा नेह


ढोलक से मिलने लगे,--चौताले के बोल
कंठों में खिलने लगे, राग बसंत हिंदोल


मंद पवन में-उड़ रहे, होलीवाले छंद
ठुमरी,-टप्पा,,-दादरा, -हारमोनियम, -चंग


नदी चल पड़ी रंग की, थामे सबका हाथ
जिसको रंग पसंद हो, चले हमारे साथ


घर-घर में तैयारियाँ, ठंडाई पकवान
दर-देहरी पर रौनकें, सजे-धजे मेहमान


होली की दीवानगी, फगुआ का संदेश
ढाई आखर-प्रेम के, द्वेष बचे ना शेष


मन के तारों पर बजे, सदा सुरीली मीड़
शहरों में सजती रहे,--हुरियारों -की -भीड़

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