शर्मनाक :
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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शुक्रवार, 12 जुलाई 2013
शर्मनाक :
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आचार्य संजीव वर्मा सलिल
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1 टिप्पणी:
munshiravi@gmail.com
सलिल जी
पढ़ कर बहुत दुख हुआ. शायद देशप्रेम पर जान क़ुर्बान करने वालों का भारत में यही भविष्य है। हम देशप्रेम व राष्ट्रवाद को भी हिन्दू या मुस्लिम राष्ट्रवाद में विभाजित कर रहे हैं. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि हमारे मुरार में, जब हम तर्पण हुआ करते थे(शायद मित्र महिपाल जी को याद हो), एक मूत्रालय हुआ करता था जनसंपर्क अब क़ब्ज़ा कर एक पूजाग्रह बन गया है, जहाँ बहुत से भक्त अर्चना करते हैं आजकल।
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