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शनिवार, 2 मार्च 2013

मुक्तिका: मैंने भी खेली होली संजीव 'सलिल'

विचित्र किन्तु सत्य :
मुक्तिका:
मैंने भी खेली होली
संजीव 'सलिल'

Photo
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फगुनौटी का चढ़ गया, कैसा मदिर खुमार।
मन के संग तन भी रँगा, झूम मना त्योहार।।

मुग्ध मयूरी पर करूँ, हँसकर जान निसार।
हम मानव तो हैं नहीं, जो बिसरा दें प्यार।।

विष-विषधर का भय नहीं, पल में कर संहार।
अमृतवाही संत सम, करते पर उपकार।।

विषधर-सुत-वाहन बने, नील गगन-श्रृंगार।
पंख नोचते निठुर जन, कैसा अत्याचार??
****

12 टिप्‍पणियां:

Mahipal Tomar ने कहा…

Mahipal Tomar द्वारा yahoogroups.com

कला , कृति , प्रकृति , ' सौन्दर्य ' समाहित , अनूठे भाव समेटे
यह ' मुक्तिका ', सत्यम ,शिवम् ,सुन्दरम को साक्षात लपेटे ।
बधाई , ' सलिल ' जी ।
सादर ,
महिपाल

kusum sinha ने कहा…

kusum sinha

priy sanjiv ji
aapki sundar rachnao ki jitni bhi tarif karun kam hai aapki vidwta ko mera shat shat naman bhagwan se meri prarthana hai ki aap sada swasth rahen sukhi rahen aur khub likhen
kusum

sanjiv verma 'salil' ने कहा…

माननीय
आपका शुभाशीष पाकर धन्य हुआ. मैं विद्वान नहीं विधार्थी मात्र हूँ. आप उदारता से उत्साहवर्धन करती हैं, यह आपका औदार्य है. ह्रदय से आभारी हूँ.

sanjiv verma 'salil' ने कहा…

आदरेय
आपकी उदारता, सहृदयता तथा परखी नजर को नमन.

Om Prakash Tiwari ने कहा…

Om Prakash Tiwari
ekavita


मुग्ध मयूरी पर करूँ, हँसकर जान निसार।
हम मानव तो हैं नहीं, जो बिसरा दें प्यार।।

वाह! क्या पंक्ति है। पूरी कविता सुंदर है। बधाई।

सादर

ओमप्रकाश तिवारी
Om Prakash Tiwari
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Pranava Bharti ने कहा…

Pranava Bharti द्वारा yahoogroups.com


आप कहें जो बात वो, सदा श्रेष्टतम होय,
मैं तो नतमस्तक सदा ,और क्या कहूँ तोय ?

सादर
प्रणव

kusumvir@gmail.com ने कहा…

- kusumvir@gmail.com

मन को छूती हुई कविता लिखी है आपने आ0 सलिल जी l
बहुत बधाई l
सादर,
कुसुम वीर

Pranava Bharti ने कहा…

Pranava Bharti

सदा खुमारी में रहें,यही तो है आनन्द,
पूजा-अर्चन है यही,जीवन का मकरंद ॥
सादर
प्रणव

sanjiv verma 'salil' ने कहा…

सत्संगति से ही मिले, अविनाशी मकरंद .
कृपा प्रणव की पा सलिल, जीवन हो आनंद

- amitasharma2000@yahoo.com ने कहा…

- amitasharma2000@yahoo.com

फगुनौटी का चढ़ गया, कैसा मदिर खुमार।
मन के संग तन भी रँगा, झूम मना त्योहार।

क्या छटा ,क्या समाँ बाँधा ?
बहुत सुंदर

अमिता

sanjiv verma 'salil' ने कहा…

अमिता शारद की कृपा, अमिता काव्य निनाद.
'सलिल' करे रस साधना, पाकर कृपा प्रसाद..

santosh kumar ने कहा…

ksantosh_45@yahoo.co.in द्वारा yahoogroups.com

आ० सलिल जी
वाह बहुत खूब। चार दोहों में ही अति आनंद आ गया।
यह दोहा तो मन को अति भाया -
विषधर-सुत-वाहन बने, नील गगन-श्रृंगार।
पंख नोचते निठुर जन, कैसा अत्याचार??
****

बधाइयाँ।
सन्तोष कुमार सिंह