दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
गुरुवार, 22 अप्रैल 2010
कुछ मुक्तक : --संजीव 'सलिल'
कुछ मुक्तक
संजीव 'सलिल'
*
मनमानी को जनमत वही बताते हैं.
जो सत्ता को स्वार्थों हेतु भुनाते हैं.
'सलिल' मौन रह करते अपना काम रहो-
सूर्य-चन्द्र क्या निज उपकार जताते हैं?
*
दोस्तों की आजमाइश क्यों करें?
मौत से पहले ही बोलो क्यों मरें..
नाम के ही हैं. मगर हैं साथ जो-
'सलिल' उनके बिन अकेले क्यों रहें?.
*
मौत से पहले कहो हम क्यों मरें?
जी लिए हैं बहुत डर, अब क्यों डरें?
आओ! मधुशाला में तुम भी संग पियो-
तृप्त होकर जग को तरें, हम तरें..
*
दोस्तों की आजमाइश तब करें.
जबकि हो मालूम कि वे हैं खरे..
परखकर खोटों को क्या मिल जायेगा?
खाली से बेहतर है जेबें हों भरे..
*
दोस्तों की आजमाइश वे करें.
जो कसौटी पर रहें खुद भी खरे..
'सलिल' खुद तो वफ़ा के मानी समझ-
बेवफाई से रहा क्या तू परे?
*
क्या पाया क्या खोया लगा हिसाब जरा.
काँटें गिरे न लेकिन सदा गुलाब झरा.
तेरी जेब भरी तो यही बताती है-
तूने बाँटा नहीं, मिला जो जोड़ धरा.
*
चिप्पियाँ Labels:
-acharya sanjiv 'salil',
/samyik hindi kavya,
chatushpadee,
chaupade,
Hindi quadrilets,
muktak
आचार्य संजीव वर्मा सलिल
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
2 टिप्पणियां:
दोस्तों की आजमाइश वे करें.
जो कसौटी पर रहें खुद भी खरे..
'सलिल' खुद तो वफ़ा के मानी समझ-
बेवफाई से रहा क्या तू परे?
* बहुत सुन्दर मुक्तक.
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
एक टिप्पणी भेजें