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रविवार, 27 दिसंबर 2009

गीत/प्रति गीत: अब पहले सी बात न होगी/फिर पहले सी बातें होंगी मानोशी चटर्जी/संजीव 'सलिल'

गीत




मानोशी चटर्जी



अब पहले सी बात न होगी

उम्र की वह सौग़ात न होगी



खिलना खिल-खिल हँसना,

झिलमिल तारों के संग आँख-मिचौली

दौड़म भागी, खींचातानी

लड़ना रोना, हँसी-ठिठोली

सच्चे-झूठे किस्सों के संग

दादी की वह रात न होगी

उम्र की वह सौग़ात न होगी



खुले आसमां के नीचे होती थी

सरगो़शी में बातें

सन्नाटा पी कर बेसुध जब

हो जाती थी बेकल रातें

धीमे-धीमे जलती थी जो,

बिना हवा सुलगती थी जो

फिर से आग जला भी लें गर

अब पहले सी बात न होगी

उम्र की वह सौग़ात न होगी



अटक गये कुछ पल सूई पर,

समय ठगा सा टंगा रह गया

जीवन लाठी टेक के चलते-चलते

ठिठक के खड़ा रह गया

बूढ़ी झुर्री टेढ़ी काया

सर पर रख कर भारी टुकनी

सांझ के सूरज की देहरी पर

पहले सी बरसात न होगी

उम्र की वह सौग़ात न होगी



************



प्रति गीत:



फिर पहले सी बातें होंगी



संजीव 'सलिल'

*

दिल में अगर हौसला हो तो,

फिर पहले सी बातें होंगी...

*

कहा किसी ने- 'नहीं लौटता

पुनः नदी में बहता पानी'.

पर नाविक आता है तट पर

बार-बार ले नई कहानी..

हर युग में दादी होती है,

होते हैं पोती और पोते.

समय देखता लाड-प्यार के

रिश्तों में दुःख-पीड़ा खोते.

नयी कहानी, नयी रवानी,

सुखमय सारी रातें होंगी.

दिल में अगर हौसला हो तो,

फिर पहले सी बातें होंगी...

*

सखा-सहेली अब भी मिलते,

छिड़ते किस्से, दिल भी खिलते.

रूठ मनाना, बात बनाना.

आँख दिखाना, हँस मुस्काना.

समय नदी के दूर तटों पर-

यादों की बारातें होंगी.

दिल में अगर हौसला हो तो,

फिर पहले सी बातें होंगी...

*

तन बूढा हो साथ समय के,

मन जवान रख देव प्रलय के.

'सलिल'-श्वास रस-खान, न रीते-

हो विदेह सुन गान विलय के.

ढाई आखर की सरगम सुन

कहीं न शह या मातें होंगी.

दिल में अगर हौसला हो तो,

फिर पहले सी बातें होंगी...

*

3 टिप्‍पणियां:

श्रीप्रकाश ने कहा…

shriprakash shukla ✆ ekavita

wgcdrsps@gmail.com
आदरणीय सलिल जी,
बहुत ही मन मोहक प्रेरणा देती हुयी सशक्त रचना

बधाई स्वीकार करें

सादर

श्रीप्रकाश

nadeem_sharma ने कहा…

nadeem_sharma@yahoo.com - Ekavita

सुन्दर!

sur5ender Bhutani ने कहा…

मानोशी जी ,
एक सुंदर रचना के लिए बधाई हो
काफी गहरी बात आप ने सरलता के
साथ कह दी l
नव वर्ष मंगलमय हो l
सस्नेह,
सुरेन्दर