कुल पेज दृश्य

बुधवार, 11 दिसंबर 2024

दिसंबर ११, राम,शिव, दोहा, लघुकथा, दृष्टान्त अलंकार, नवगीत, सॉनेट, संतोष

सलिल सृजन दिसंबर ११
*
दोहा सलिला
*
राम लोक मंगल करें, सिया लोक कल्याण।
सिया-राम मिल फूँकते, जनगण-मन में प्राण।।
*
श्रद्धा शिवा ह्रदय बसें, शिव विश्वास अनंत।
मिले शिवा-शिव आस हर, करते पूर्ण दिगंत।।
*
निज अंत: सुख हेतु ही, करें राम गुणगान।
शिव शंका का अंत कर, दें चाहा वरदान।।
*
ताप त्रयी से मुक्ति दें, शिव जग-जनक विराट।
धरें हलाहल कंठ में, जिसकी कहीं न काट।।
*
सत्य बसा उर या नहीं, प्रभु पल में लें देख।
करें कृपा हर भक्त पर, कहीं न सीमा रेख।।
*
हनुमत बल के धाम हैं, तनिक नहीं अभिमान।
निगुण-सगुण श्री राम हैं, सकल गुणों की खान।।
*
ऊष्म-शीत संगम परम, शिव जी जग-आराध्य।
शिवा मातु शक्ति अगम, सुगम सभी को साध्य।।
*
है सरोज शत गुण लिए, कौशल अनुपम प्राप्त।
देव-देवियों को सदा, प्रिय है शदल आप्त।।
*
नमन करें कैलाश को, जहाँ शिवा-शिव साथ।
बस श्रद्धा विश्वास उर, वंदन लें- नत माथ।।
*
नारी महिमावान है, सकल गुणों की खान।
नदी सदृश जाती जहाँ, दे पाती वरदान।।
*
वंदनीय नारी वही, जो माने मर्याद।
दंडनीय केवल तभी, जब तोड़े मर्याद।।
*
अवगुण आठ न हों अगर, तब ही नारी इष्ट।
अवगुण का बाहुल्य ही, करता रहा अनिष्ट।।
*
मानस में है समाहित, सत्चिंतन का सार।
मानव मूल्यों के बिना, है साहित्य असार।।
११.१२.२०२२
***
सॉनेट
संतोष
*
है संतोष कृपा शारद की बरस रही हम सबके ऊपर।
हो संतोष अगर कुछ सार्थक गह-कह पाएँ।।
जड़ें जमीं में जमा, उड़ें, आएँ नभ छूकर।
सत-शिव-सुंदर भाव तनिक तो हम तह पाएँ।।
मानव हैं माया-मद-मोह, न ममता छूटे।
इन्सां हैं ईश्वर के निकट तनिक हो पाएँ।
जोड़ें परोपकार की पूँजी, काल न लूटे।।
दीनबंधु बन नर में ही नारायण पाएँ।।
काया-माया-छाया नश्वर मगर सत्य भी।
राग और वैराग्य समन्वय शुभ कर गाएँ।
ईश्वर की करुणा, मनुष्य के हृदय बसेगी।
जब तब ही हम ज्यों की त्यों चादर धर पाएँ।।
सरला विमला मति दे शारद!, सफल साधना।
तभी जीव संजीव हो सके, साज साध ना।।
११-१२-२०२१
***
शिवमय दोहे
*
डिम-डिम डमरू-नाद है, शिव-तात्विक उद्घोष.
अशुभ भूल, शुभ ध्वनि सुनें, नाद अनाहद कोष.
.
डमरू के दो शंकु हैं, सत्-तम का संयोग.
डोर-छोर श्वासास है, नाद वियोगित योग.
.
डमरू अधर टँगा रहे, नभ-भू मध्य विचार.
निराधार-आधार हैं, शिव जी परम उदार.
.
डमरू नाग त्रिशूल शशि, बाघ-चर्म रुद्राक्ष.
वृषभ गंग गणपति उमा कार्तिक भस्म शिवाक्ष.
.
तेरह तत्व त्रयोदशी, कभी न भूलें भक्त.
कर प्रदोष व्रत, दोष से मुक्त, रहें अनुरक्त.
.
शिव विराग-अनुराग हैं, क्रोधी परम प्रशांत.
कांता कांति अजर शिवा, नमन अमर शिव कांत.
.
गौरी-काली एक हैं, गौरा-काला एक.
जो बतलाए सत्य यह्, वही राह है नेक.
११-१२-२०१९
***
कुण्डलिया
कार्य शाला
*
तन की मनहर बाँसुरी, मन का मधुरिम राग।
नैनों से मुखरित हुआ, प्रियतम का अनुराग।। -मिथिलेश बड़गैयाँ
प्रियतम का अनुराग, सलिल सम प्रवहित होता।
श्वास-श्वास में प्रवह, सतत नव आशा बोता।।
जान रहे मिथिलेश, चाह सिय-रघुवर-मन की।
तज सिंहासन राह, गहेंगे हँसकर वन की।। - संजीव
११.१२.२०१८
***
दोहा दुनिया
*
आलम आलमगीर की, मर्जी का मोहताज
मेरे-तेरे बीच में, उसका क्या है काज?
*
नयन मूँद देखूं उसे, जो छीने सुख-चैन
गुम हो जाता क्यों कहो, ज्यों ही खोलूँ नैन
*
पल-पल बीते बरस सा, अपने लगते गैर
खुद को भूला माँगता, मन तेरी ही खैर
*
साया भी अपना नहीं, दे न तिमिर में साथ
अपना जीते जी नहीं, 'सलिल' छोड़ता हाथ
*
रहे हाथ में हाथ तो, उन्नत होता माथ
खुद से आँखे चुराता, मन तू अगर न साथ
११-१२-२०१६
***
गीत
समय के संतूर पर
सरगम सुहानी
बज रही.
आँख उठ-मिल-झुक अजाने
आँख से मिल
लज रही.
*
सुधि समंदर में समाई लहर सी
शांत हो, उत्ताल-घूर्मित गव्हर सी
गिरि शिखर चढ़ सर्पिणी फुंकारती-
शांत स्नेहिल सुधा पहले प्रहर सी
मगन मन मंदाकिनी
कैलाश प्रवहित
सज रही.
मुदित नभ निरखे, न कह
पाए कि कैसी
धज रही?
*
विधि-प्रकृति के अनाहद चिर रास सी
हरि-रमा के पुरातन परिहास सी
दिग्दिन्तित रवि-उषा की लालिमा
शिव-शिवा के सनातन विश्वास सी
लरजती रतनार प्रकृति
चुप कहो क्या
भज रही.
साध कोई अजानी
जिसको न श्वासा
तज रही.
*
पवन छेड़े, सिहर कलियाँ संकुचित
मेघ सीचें नेह, बेलें पल्ल्वित
उमड़ नदियाँ लड़ रहीं निज कूल से-
दमक दामिनी गरजकर होती ज्वलित
द्रोह टेरे पर न निष्ठा-
राधिका तज
ब्रज रही.
मोह-मर्यादा दुकूलों
बीच फहरित
ध्वज रही.
***
अलंकार सलिला ४०
दृष्टान्त अलंकार
अलंकार दृष्टान्त को जानें, लें आनंद
*
अलंकार दृष्टान्त को, जानें-लें आनंद|
भाव बिम्ब-प्रतिबिम्ब का, पा सार्थक हो छंद||
जब पहले एक बात कहकर फिर उससे मिलती-जुलती दूसरी बात, पहली बात पहली बात के उदाहरण के रूप में कही जाये अथवा दो वाक्यों में बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव हो तब वहाँ दृष्टान्त अलंकार होता है|
जहाँ उपमेय और उपमान दोनों ही सामान्य या दोनों ही विशेष वाक्य होते हैं और उनमें बिम्ब - प्रतिबिम्ब भाव हो तो दृष्टांत अलंकार होता है|
दृष्टान्त में दो वाक्य होते हैं, एक उपमेय वाक्य, दूसरा उपमान वाक्यदोनों का धर्म एक नहीं होता पर एक समान होता है|
उदाहरण:
१. सिव औरंगहि जिति सकै, और न राजा-राव|
हत्थी-मत्थ पर सिंह बिनु, आन न घालै घाव||
यहाँ पहले एक बात कही गयी है कि शिवाजी ही औरंगजेब को जीत सकते हैं अन्य राजा - राव नहीं| फिर उदाहरण के रूप में पहली बात से मिलती-जुलती दूसरी बात कही गयी है कि सिंह के अतिरिक्त और कोई हाथी के माथे पर घाव नहीं कर सकता|
२. सुख-दुःख के मधुर मिलन से, यह जीवन हो परिपूरन|
फिर घन में ओझल हो शशि, फिर शशि में ओझल हो घन||
३. पगीं प्रेम नन्द लाल के, हमें न भावत भोग|
मधुप राजपद पाइ कै, भीख न माँगत लोग||
४. निरखि रूप नन्दलाल को, दृगनि रुचे नहीं आन|
तज पीयूख कोऊ करत, कटु औषधि को पान||
५. भरतहिं होय न राजमद, विधि-हरि-हर पद पाइ|
कबहुँ कि काँजी-सीकरनि, छीर-सिन्धु बिलगाइ||
६. कन-कन जोरे मन जुरै, खाबत निबरै रोग|
बूँद-बूँद तें घट भरे, टपकत रीतो होय||
७. जपत एक हरि नाम के, पातक कोटि बिलाहिं|
लघु चिंगारी एक तें, घास-ढेर जरि जाहिं||
८. सठ सुधरहिं सत संगति पाई|
पारस परसि कु-धातु सुहाई||
९. धनी गेह में श्री जाती है, कभी न जाती निर्धन-घर में|
सागर में गंगा मिलती है, कभी न मिलती सूखे सर में||
१०. स्नेह - 'सलिल' में स्नान कर, मिटता द्वेष - कलेश|
सत्संगति में कब रही, किंचित दुविधा शेष||
११. तिमिर मिटा / भास्कर मुस्कुराया / बिन उजाला / चाँद सँग चाँदनी / को करार न आया| - ताँका
टिप्पणी:
१. दृष्टान्त में अर्थान्तरन्यास की तरह सामान्य बात का विशेष बात द्वारा या विशेष बात का सामान्य बात द्वारा समर्थन नहीं होता| इसमें एक बात सामान्य और दूसरी बात विशेष न होकर दोनों बातें विशेष होती हैं|
२. दृष्टान्त में प्रतिवस्तूपमा की भाँति दोनों बातों का धर्म एक नहीं होता अपितु मिलता-जुलता होने पर भी भिन्न-भिन्न होता है|
११-१२-२०१५
***
नवगीत
ठेंगे पर कानून
*
मलिका - राजकुँवर कहते हैं
ठेंगे पर कानून
संसद ठप कर लोकतंत्र का
हाय! कर रहे खून
*
जनगण - मन ने जिन्हें चुना
उनको न करें स्वीकार
कैसी सहनशीलता इनकी?
जनता दे दुत्कार
न्यायालय पर अविश्वास कर
बढ़ा रहे तकरार
चाह यही है सजा रहे
कैसे भी हो दरबार
जिसने चुना, न चिंता उसकी
जो भूखा दो जून
मलिका - राजकुँवर कहते हैं
ठेंगे पर कानून
संसद ठप कर लोकतंत्र का
हाय! कर रहे खून
*
सरहद पर ही नहीं
सडक पर भी फैला आतंक
ले चरखे की आड़
सँपोले मार रहे हैं डंक
जूते उठवाते औरों से
फिर भी हैं निश्शंक
भरें तिजोरी निज,जमाई की
करें देश को रंक
स्वार्थों की भट्टी में पल - पल
रहे लोक को भून
मलिका - राजकुँवर कहते हैं
ठेंगे पर कानून
संसद ठप कर लोकतंत्र का
हाय! कर रहे खून
*
परदेशी से करें प्रार्थना
आ, बदलो सरकार
नेताजी को बिना मौत ही
दें कागज़ पर मार
संविधान को मान द्रौपदी
चाहें चीर उतार
दु:शासन - दुर्योधन की फिर
हो अंधी सरकार
मृग मरीचिका में जीते
जैसे इन बिन सब सून
मलिका - राजकुँवर कहते हैं
ठेंगे पर कानून
संसद ठप कर लोकतंत्र का
हाय! कर रहे खून
११-१२-२०१५
***
लघुकथा -
समरसता
*
भृत्यों, सफाईकर्मियों और चौकीदारों द्वारा वेतन वृद्धि की माँग मंत्रिमंडल ने आर्थिक संसाधनों के अभाव में ठुकरा दी।
कुछ दिनों बाद जनप्रतिनिधियों ने प्रशासनिक अधिकारियों की कार्य कुशलता की प्रशंसा कर अपने वेतन भत्ते कई गुना अधिक बढ़ा लिये।
अगली बैठक में अभियंताओं और प्राध्यापकों पर हो रहे व्यय को अनावश्यक मानते हुए सेवा निवृत्ति से रिक्त पदों पर नियुक्तियाँ न कर दैनिक वेतन के आधार पर कार्य कराने का निर्णय सर्व सम्मति से लिया गया और स्थापित हो गयी समरसता।
७-१२-२०१५
***
नवगीत:
जिजीविषा अंकुर की
पत्थर का भी दिल
दहला देती है
*
धरती धरती धीरज
बनी अहल्या गुमसुम
बंजर-पड़ती लोग कहें
ताने दे-देकर
सिसकी सुनता समय
मौन देता है अवसर
हरियाती है कोख
धरा हो जाती सक्षम
तब तक जलती धूप
झेलकर घाव आप
सहला लेती है
*
जग करता उपहास
मारती ताने दुनिया
पल्लव ध्यान न देते
कोशिश शाखा बढ़ती
द्वैत भुला अद्वैत राह पर
चिड़िया चढ़ती
रचती अपनी सृष्टि आप
बन अद्भुत गुनिया
हार न माने कभी
ज़िंदगी खुद को खुद
बहला लेती है
*
छाती फाड़ पत्थरों की
बहता है पानी
विद्रोहों का बीज
उठाता शीश, न झुकता
तंत्र शिला सा निठुर
लगे जब निष्ठुर चुकता
याद दिलाना तभी
जरूरी उसको नानी
जन-पीड़ा बन रोष
दिशाओं को भी तब
दहला देती है
११-१२-२०१४
***
लघुकथा:
जंगल में जनतंत्र
*
जंगल में चुनाव होनेवाले थे।
मंत्री कौए जी एक जंगी आमसभा में सरकारी अमले द्वारा जुटाई गयी भीड़ के आगे भाषण दे रहे थे।- ' जंगल में मंगल के लिए आपस का दंगल बंद कर एक साथ मिलकर उन्नति की रह पर कदम रखिये। सिर्फ़ अपना नहीं सबका भला सोचिये।'
' मंत्री जी! लाइसेंस दिलाने के लिए धन्यवाद। आपके कागज़ घर पर दे आया हूँ। ' भाषण के बाद चतुर सियार ने बताया। मंत्री जी खुश हुए।
तभी उल्लू ने आकर कहा- 'अब तो बहुत धांसू बोलने लगे हैं। हाऊसिंग सोसायटी वाले मामले को दबाने के लिए रखी' और एक लिफाफा उन्हें सबकी नज़र बचाकर दे दिया।
विभिन्न महकमों के अफसरों उस अपना-अपना हिस्सा मंत्री जी के निजी सचिव गीध को देते हुए कामों की जानकारी मंत्री जी को दी।
राष्ट्रवादी मंत्री जी मिले उपहारों और लिफाफों को देखते हुए सोच रहे थे - 'जंगल में जनतंत्र जिंदाबाद। '
११-१२-२०१३

***

मंगलवार, 10 दिसंबर 2024

भवानी प्रसाद तिवारी

संस्कारधानी के जननायक भवानी प्रसाद तिवारी

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
        स्वतन्त्रता संग्राम सत्याग्रही भवानी प्रसाद तिवारी (१३ फरवरी, १९१२ सागर - १३ दिसंबर १९७७ जबलपुर) प्रभावशाली वक्ता, विख्यात साहित्यकार, सजग शिक्षाविद एवं जनप्रिय राजनेता थे। आपके पिता श्री विनायक राव साहित्यभूषण जी थे। आपका जन्म भले ही सागर में हुआ परन्तु आपकी कर्मभूमि जबलपुर नगर रहा। मात्र १८ वर्ष की उम्र में वर्ष १९३० से आप राष्ट्रीय आन्दोलन में सक्रिय होकर पहली बार जेल गए। नमक सत्याग्रह १९३०, सविनय अवज्ञा आंदोलन १९३२, व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन १९४० तथा भारत छोड़ो आंदोलन १९४२ में सक्रिय भागीदारी कार आपने अपने जीवन के साढ़े तीन वर्ष जेल में ही व्यतीत किए। भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान भवानीप्रसाद तिवारी जी ने जबलपुर नगर में होने वाले जुलूसों, सभाओं का नेतृत्व करने के साथ तिलक भूमि तलैया में सिग्नल कोर के विरुद्ध विद्रोह की अगुवाई की। त्रिपुरी अधिवेशन १९३९ में सक्रियतापूर्वक भाग लेने के लिए आपने हितकारिणी स्कूल से शिक्षक पद की नौकरी से त्यागपत्र दे दिया।आप तिलक भूमि तलैया में हुए तीन दिवसीय अनशन में भी शामिल रहे।

        सम्मोहक व्यक्तित्व के धनी तिवारी जी १९३६ से १९४७ तक जबलपुर नगर कांग्रेस के लगातार ११ वर्षो तक अध्यक्ष रहे। तिवारी जी ने स्वतन्त्रता सेनानी होते हुए भी साहित्यकार, पत्रकार, सम्पादक तथा शिक्षाविद के रूप में कीर्तिमान स्थापित किए। तिवारी जी जबलपुर एवं सागर विश्वविद्यालय की कार्यकारिणी के सदस्य रहे। संस्कारधानी जबलपुर नगर के प्रथम महापौर निर्वाचित होने के साथ आपने ७ बार (१९५२ से १९५३ तथा १९५५ से १९५८ तथा १९६१) महापौर होने का अद्भुत कीर्तिमान स्थापित किया जो अब तक अभंग है। आप १९६४ से लगातार २ बार राज्यसभा सांसद निर्वाचित हुए। ये उपलब्धियाँ अत्यंत महत्वपूर्ण इसलिए हैं कि इसी दौर में जबलपुर में कॉंग्रेस दल में माखन लाल चतुर्वेदी, ब्योहार राजेन्द्र सिंह, सुभद्रा कुमारी चौहान, सेठ गोविंद दास, द्वारिका प्रसाद मिश्र, कुंजी लाल दुबे जैसे  प्रखर और लोकप्रिय नेता सक्रिय थे और आपने सशक्त और साधन संपन्न कॉंग्रेस द्वारा आदर्शों की पूर्ति न होते देखकर प्रजा सोशलिस्ट पार्टी (प्रसोपा) जैसे साधनहीन दल में रहकर ये सफलताएँ पाईं। 

        सांसद के रूप में भवानी प्रसाद तिवारी जी ने अपने क्षेत्र की समस्याओं को राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में उठाया, सुझाव दिए, रेलवे बोर्ड तथा रेल मंत्री के मध्य सम्यक सामंजस्य की आवश्यकता प्रतिपादित की तथा नीतिगत त्रुटियों और अकारण विलंब को इंगित किया। उनके द्वारा की गई एक चर्चा रेलवे बजट १ जून १९७१ के पृष्ठ १६१ से १६८ पर पढ़ी जा सकती है। इसमें तिवारी जी ने जबलपुर-गोंदिया नैरो गेज को ब्रॉड गेज में बदलने की आवश्यकता तथा उसके लाभ पर प्रकाश डालते हुए इसे तत्काल कियान्वित करने पर बल दिया था। सरकारों की अदूरदृष्टि के कारण अब ब्रॉड गेज हो जाने पर भी इस पर यातायात अत्यल्प है।  

        भवानी प्रसाद तिवारी जी को यशस्वी  पत्रकार के रूप में प्रहरी समाचार पत्र के प्रकाशन तथा साहित्यकार के रूप में गीतांजलि के अनुगायन ने देशव्यापी प्रसिद्धि दिलाई। छायावादी काव्यशिल्प और भाव-भंगिमा पर सामाजिक संवेदना और राष्ट्रीय प्रवृत्ति को आपने वरीयता दी। प्रहरी पत्रिका ने हिंदी भाषा और साहित्य की महती सेवा की। मत-मतांतरों की चिंता किए बिना तिवारी जी ने केशव पाठक, रामानुज लाल श्रीवास्तव, सुभद्रा कुमारी चौहान, लक्ष्मण सिंह चौहान, नर्मदा प्रसाद खरे, हरिशंकर परसाई, रामेश्वर प्रसाद गुरु आदि की रचनाओं को प्रहरी में प्रमुखता से प्रकाशित करने में कभी कोताही नहीं की।    

            १९३८ में भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयनित होने पर भी उसे छोड़कर स्वतंत्रता सत्याग्रह में कूद पड़नेवाले कारावास में सुविख्यात समाजवादी  नेता (बाद में १९५२ व १९६२ में प्रसोपा तथा १९७७ में होशंगाबाद से जनता दल के सांसद) हरि विष्णु कामथ (१३ जुलाई १९०७ - १९८२) की प्रेरणा से आपने गीतांजलि का श्रेष्ठ अनुगायन किया। गीतांजलि के अंग्रेजी काव्यानुवाद से प्रेरित तिवारी जी द्वारा किये गए अनुगायन में मूल गीतांजलि के अनुरूप अनुक्रम भावगत समानता को देखते हुए स्वयं गुरुदेव ने इसे गीतांजलि का अनुवाद मात्र न मानकर सर्वथा मौलिक कृति निरूपित करते हुए तिवारी जी को आशीषित किया। कुछ पंक्तियों का आनंद लीजिए- 

‘दिखते हैं प्रभु कहीं,
यहाँ नहीं यहाँ नहीं,
फिर कहाँ? अरे वहाँ,
जहाँ कि वह किसान दीन,
वसनहीन तन मलीन,
जोतता कड़ी जमीन,
प्रभु वहीं कि जहाँ पर
वह मजूर करता है
चोटों से पत्थर को चूर’

        काव्य संग्रहों- 'प्राण पूजा' और ‘प्राण धारा’,  शोक गीत संग्रह 'तुम कहाँ चले गए’, संस्मरणात्मक निबंध संग्रह ‘जब यादें उभर आतीं हैं’,  जीवनी ‘गांधी जी की कहानी’, कथात्मक एवं समीक्षा संग्रह 'कथा वार्ता' तथा  ‘प्रहरी’ पत्रिका में प्रकाशित स्तंभों के संग्रहों ‘हाथों के मुख से’, ‘संजय के पत्र’ और ‘हमारी तुमसे और तुम्हारी हमसे’आदि के माध्यम से तिवारी जी अपनी असाधारण कारयित्री प्रतिभा के हस्ताक्षर समय-ग्रंथ पर किए। सागर विश्वविद्यालय द्वारा आपको डी. लिट. (मानद) उपाधि से विभूषित कर धन्य हुआ। महामहिम राष्ट्रपति जी द्वारा आपको १९७२ में 'पद्म श्री' अलंकरण से अलंकृत किया गया। 

        स्त्री-शिक्षा के समर्थक तिवारी जी ने अपनी पुत्रियों को उच्च शिक्षा प्राप्ति का हर अवसर उपलब्ध कराया। समाजवादी सिद्धांतों का पालन करते हुए आपने अपने पुत्र सतीश का अन्तर्जातीय विवाह सुप्रसिद्ध साहित्यकार-समीक्षक-संपादक रामानुजलाल श्रीवास्तव 'ऊँट बिलहरीवी की प्रतिभाशाली छोटी बेटी अनामिका से कराया। आपने महाकौशल शिक्षा प्रसार समिति का गठनकर  बिदाम बाई कन्या शाला तथा चंचल बाई महिला माहा विद्यालय की स्थापना की। वे सच्चे जननायक थे। वे महापौर रहे या सांसद, वे आम जन के लिए हमेशा उपलब्ध रह सकें इसलिए उन्होंने अपने आवास के चारों ओर दीवाल न बनवाकर पौधों तथा लताओं की बागड़ लगवाई थी। महापौर के नाते मिली कार का उपयोग वे केवल सरकारी कार्य के लिए करते तथा निजी कार्य हेतु साइकिल से जाते थे। जनता से संवाद स्थापित करने में वे निष्णात थे। १९५७ में दलबंदी के कारण वे महापौर का चुनाव हार गए। इससे आमजन इतना रुष्ट हुए कि विजयी प्रत्याशी के जुलूस को ही रोक लिया। किसी तरह बात न बनी तो पुलिस अधिकारी ने आपको समस्या से अवगत कराया। आपने व्यक्तिगत जय-पराजय की चिंता किए बिना तत्काल विवाद स्थल पर पहुँचकर भीड़ को शांत करा दिया। 

        राजनीति में बढ़ते परिवारवाद जनित समस्या का पूर्वानुमान करते हुए आपने अपनी सुशिक्षित तथा योग्य संतानों (पुत्र सतीश तथा ५ पुत्रियों गीता, चित्रा दुबे, आभा दुबे, प्रतिभा शर्मा, मंगला शर्मा) में से किसी को राजनीति में प्रवेश नहीं करने दिया। कालक्रम में चित्रा चिकित्सक, आभा शिक्षिका तथा पुत्रवधू डॉ. अनामिका तिवारी (मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़ के प्रथम तथा भारत की प्रख्यात पादप विज्ञानी, पूर्व प्राध्यापक ज. ला. नेहरू कृषि विश्व विद्यालय जबलपुर) ने आपकी गौरवपूर्ण विरासत को सम्हाला तथा प्रकाशित करने का भागीरथ प्रयास किया है। मेरा सौभाग्य है कि मुझे अनामिका जी द्वारा भवानीप्रसाद तिवारी जी की स्मृति में स्थापित प्रथम साहित्य श्री सम्मान प्राप्त हुआ है। प्रस्तुत है तिवारी जी की एक रचना आभा जी के सौजन्य से -

आम पर मंजरी
भवानी प्रसाद तिवारी
*




घने आम पर मंजरी आ गई .....
शिशिर का ठिठुरता हुआ कारवां
गया लाद कर शीत पाला कहाँ
गगन पर उगा एक सूरज नया
धरा पर उठा फूल सारा जहां
अभागिन वसनहीनता खुश कि लो
नई धूप आ गात सहला गई ........
नए पात आए पुरातन झड़े
लता बेल द्रुम में नए रस भरे
चहक का महक का समा बँध गया
नए रंग ....धानी गुलाबी हरे
प्रकृति के खिलौने कि जो रंग गई
मनुज के कि दुख दर्द बहला गई ........
पवन चूम कलियाँ चटकने लगीं
किशोरी अलिनियाँ हटकने लगीं
रसानंद ,मकरंद ,मधुगंध में
रंगीली तितलियाँ भटकने लगीं
मलय-वात का एक झोंका चला
सुनहली फसल और लहरा गई ........

'सादा जीवन उच्च विचार' को पल पल जीनेवाले भवानी प्रसाद तिवारी जी अपनी मिसाल आप थे। जबलपुर नगर निगम प्रांगण में आपकी मानवकार प्रतिमा स्थापित की जाए तथा डाक-तार विभाग द्वारा डाक टिकिट निकाला जाए तो राजनेताओं को जनोन्मुखी राजनीति करने तथा आम लोगों को आदर्शपरक जीवन जीने की तथा स्त्री अधिकारों के पक्षधरों को ठोस कार्य करने की प्रेरणा मिलेगी। 
***

दिसंबर १०, कपास, सोरठे, पूर्णिका, सॉनेट, मुक्तक, लघुकथा, दोहा, बुंदेली, नारी

सलिल सृजन दिसंबर १०
*
एक दोहा
आँख दिखाई; भीत हो, गया डॉक्टर भाग।
चाह रहाअनुराग पर, पाई जलती आग।।
***
कपासी सोरठे
करते रहें प्रयास, हिम्मत मत हारें कभी।
कहता धवल कपास, जोश होश संतोष रख।।
रखता तन-मन श्वेत, काली माटी में उपज।
परहित ही अभिप्रेत, है कपास को धन्य वह।।
देख सके तो देख, बीज बीज बीजक सदृश।
करे कर्म का लेख, निरासक्त रह संत सम।।
खली-बिनौले पा पले, गौ माता दे दूध।
कुटिया को ईंधन मिले, शाखाओं से खूब।।
कहता विहँस कपास, होना कभी उदास मत।
रख अधरों पर हास, सुख-दुख को सम जान सह।।
१०.१२.२०२४
०००
पूर्णिका
स्नेहमय उद्गार शत शत।
हृदय से आभार शत शत।।

भाव सलिला नर्मदा सी
नित प्रवाहित धार शत शत।।

पूर्ण होता नहीं मानव
पूर्णिका उद्गार शत शत।।

तम गरल लो कण्ठ में धर।
पूर्णिमा गलहार शत शत।।

शीश पर शशि सुशोभित है।
भुज भुजंग सिँगार शत शत।।

मोह-माया मुग्ध मन में
मधुर मूक सितार शत शत।।

कहे माटी नभ समुद भी।
दे 'सलिल' पर वार शत शत।।
१०.१२.२०२४
०००
सॉनेट
बुद्धू
लौट के बुद्धू घर को आए
जेब भरी थी, अब है खाली
फिर भी मस्त बजाते ताली
मन में मन भर सुधियाँ लाए
रमता जोगी बहता पानी
जैसे जहँ-तहँ अटके-भटके
जग-जीवन के देखे लटके
बनते चतुर करी नादानी
पर्वत पोखर झरने मंदिर
माटी घाटी नदियाँ सुंदर
मिटते पंछी रोते तरुवर
बलशाली विकास का दानव
कर विनाश दिखलाता लाघव
खुद को खुद ही ठगते मानव
११-१२-२०२२
७॰४७,जबलपुर
•••
मुक्तक सलिला:
नारी अबला हो या सबला, बला न उसको मानो रे
दो-दो मात्रा नर से भारी, नर से बेहतर जानो रे
जड़ हो बीज धरा निज रस से, सिंचन कर जीवन देती-
प्रगटे नारी से, नारी में हो विलीन तर-तारो रे
*
उषा दुपहरी संध्या रजनी जहाँ देखिए नारी है
शारद रमा शक्ति नारी ही नर नाहर पर भारी है
श्वास-आस मति-गति कविता की नारी ही चिंगारी हैं-
नर होता होता है लेकिन नारी तो अग्यारी है
*
नेकी-बदी रूप नारी के, धूप-छाँव भी नारी है
गति-यति पगडंडी मंज़िल में नारी की छवि न्यारी है
कृपा, क्षमा, ममता, करुणा, माया, काया या चैन बिना
जननी, बहिना, सखी, भार्या, भौजी, बिटिया प्यारी है
१०-१२-२०१९
***
तीन काल खंड तीन लघुकथाएँ :
१. जंगल में जनतंत्र
जंगल में चुनाव होनेवाले थे।
मंत्री कौए जी एक जंगी आमसभा में सरकारी अमले द्वारा जुटाई गयी भीड़ के आगे भाषण दे रहे थे।- ' जंगल में मंगल के लिए आपस का दंगल बंद कर एक साथ मिलकर उन्नति की रह पर कदम रखिये। सिर्फ़ अपना नहीं सबका भला सोचिये।'
' मंत्री जी! लाइसेंस दिलाने के लिए धन्यवाद। आपके कागज़ घर पर दे आया हूँ। ' भाषण के बाद चतुर सियार ने बताया। मंत्री जी खुश हुए।
तभी उल्लू ने आकर कहा- 'अब तो बहुत धाँसू बोलने लगे हैं। हाऊसिंग सोसायटी वाले मामले को दबाने के लिएरखिए' और एक लिफाफा उन्हें सबकी नज़र बचाकर दे दिया।
विभिन्न महकमों के अफसरों उस अपना-अपना हिस्सा मंत्री जी के निजी सचिव गीध को देते हुए कामों की जानकारी मंत्री जी को दी।समाजवादी विचार धारा के मंत्री जी मिले उपहारों और लिफाफों को देखते हुए सोच रहे थे - 'जंगल में जनतंत्र जिंदाबाद। '
१९९४
***
२. समरसता
*
भृत्यों, सफाईकर्मियों और चौकीदारों द्वारा वेतन वृद्धि की माँग मंत्रिमंडल ने आर्थिक संसाधनों के अभाव में ठुकरा दी।
कुछ दिनों बाद जनप्रतिनिधियों ने प्रशासनिक अधिकारियों की कार्य कुशलता की प्रशंसा कर अपने वेतन भत्ते कई गुना अधिक बढ़ा लिये।
अगली बैठक में अभियंताओं और प्राध्यापकों पर हो रहे व्यय को अनावश्यक मानते हुए सेवा निवृत्ति से रिक्त पदों पर नियुक्तियाँ न कर दैनिक वेतन के आधार पर कार्य कराने का निर्णय सर्व सम्मति से लिया गया और स्थापित हो गयी समरसता।
७-१२-२०१५
***
३. मी टू
वे लगातार कई दिनों से कवी की रचनाओं की प्रशंसा कर रही थीं। आरंभ में अनदेखी करने करने के बाद कवि ने शालीनतावश उत्तर देना आवश्यक समझा। अब उन्होंने कवि से कविता लिखना सिखाने का आग्रह किया। कवि जब भी भाषा के व्याकरण या पिंगल की बात करता वे अपने नए चित्र के साथ अपनी उपेक्षा और शोषण की व्यथा-कथा बताने लगतीं।
एक दिन उन्होंने कविता सीखने स्वयं आने की इच्छा व्यक्त की। कवि ने कोई उत्तर नहीं दिया। इससे नाराज होकर उन्होंने कवि पर स्त्री की अवमानना करने का आरोप जड़ दिया। कवि फिर भी मौन रहा।
ब्रम्हास्त्र का प्रयोग करते हुए उन्होंने अपने निर्वसन चित्र भेजते हुए कवि को अपने निवास पर या कवि के चाहे स्थान पर रात गुजारने का आमंत्रण देते हुए कुछ गज़लें देने की माँग कर दी, जिन्हें वे मंचों पर पढ़ सकें।
कवि ने उन्हें प्रतिबंधित कर दिया। अब वे किसी अन्य द्वारा दी गयीं ३-४ गज़लें पढ़ते हुए मंचों पर धूम मचाए हुए हैं। कवि स्तब्ध जब एक साक्षात्कार में उन्होंने 'मी टू' का शिकार होने की बात कही। कवि समय की माँग पर लिख रहा है स्त्री-विमर्श की रचनाएँ पर उसका जमीर चीख-चीख कर कह रहा है 'मी टू'।
११.१२.२०१८
***
दोहा सलिला
उदय भानु का जब हुआ, तभी ही हुआ प्रभात.
नेह नर्मदा सलिल में, क्रीड़ित हँस नवजात.
.
बुद्धि पुनीता विनीता, शिविर की जय-जय बोल.
सत्-सुंदर की कामना, मन में रहे टटोल.
.
शिव को गुप्तेश्वर कहो, या नन्दीश्वर आप.
भव-मुक्तेश्वर भी वही, क्षमा ने करते पाप.
.
चित्र गुप्त शिव का रहा, कंकर-कंकर व्याप.
शिवा प्राण बन बस रहें, हरने बाधा-ताप.
.
शिव को पल-पल नमन कर, तभी मिटेगा गर्व.
मति हो जब मिथलेश सी, स्वजन लगेंगे सर्व.
.
शिवता जिसमें गुरु वही, शेष करें पाखंड.
शिवा नहीं करतीं क्षमा, देतीं निश्चय दंड.
.
शिव भज आँखें मून्द कर, गणपति का करें ध्यान.
ममता देंगी भवानी, कार्तिकेय दें मान.
१०-१२-२०१७
...
मुक्तक
शब्दों का जादू हिंदी में अमित सृजन कर देखो ना
छन्दों की महिमा अनंत है इसको भी तुम लेखो ना
पढ़ो सीख लिख आत्मानंदित होकर सबको सुख बाँटो
मानव जीवन कि सार्थकता यही 'सलिल' अवरेखो ना
***
दोहा दुनिया
*
आलम आलमगीर की, मर्जी का मोहताज
मेरे-तेरे बीच में, उसका क्या है काज?
*
नयन मूँद देखूं उसे, जो छीने सुख-चैन
गुम हो जाता क्यों कहो, ज्यों ही खोलूँ नैन
*
पल-पल बीते बरस सा, अपने लगते गैर
खुद को भूला माँगता, मन तेरी ही खैर
*
साया भी अपना नहीं, दे न तिमिर में साथ
अपना जीते जी नहीं, 'सलिल' छोड़ता हाथ
*
रहे हाथ में हाथ तो, उन्नत होता माथ
खुद से आँखे चुराता, मन तू अगर न साथ
१०-१२-२०१६
***
सुधियों का दर्पण
विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर
नवलेखन अभियान
लघुकथा प्रकोष्ठ
लघुकथा के तत्व और लेखन प्रक्रिया विषयक अन्तरंग संगोष्ठी ११-१२-२०१६ रविवार को अपरान्ह 3 बजे से ५.३० बजे तक भंवरताल उद्यान में आयोजित है. सहभागी होकर सफल बनायें. १. कालाधन तथा २. सद्भाव शीर्षकों पर लघुकथा पर लघुकथाओं का वाचन भी होगा.
***
सामयिक गीत
ठेंगे पर कानून
*
मलिका - राजकुँवर कहते हैं
ठेंगे पर कानून
संसद ठप कर लोकतंत्र का
हाय! कर रहे खून
*
जनगण - मन ने जिन्हें चुना
उनको न करें स्वीकार
कैसी सहनशीलता इनकी?
जनता दे दुत्कार
न्यायालय पर अविश्वास कर
बढ़ा रहे तकरार
चाह यही है सजा रहे
कैसे भी हो दरबार
जिसने चुना, न चिंता उसकी
जो भूखा दो जून
मलिका - राजकुँवर कहते हैं
ठेंगे पर कानून
संसद ठप कर लोकतंत्र का
हाय! कर रहे खून
*
सरहद पर ही नहीं
सड़क पर भी फैला आतंक
ले चरखे की आड़
सँपोले मार रहे हैं डंक
जूते उठवाते औरों से
फिर भी हैं निश्शंक
भरें तिजोरी निज,जमाई की
करें देश को रंक
स्वार्थों की भट्टी में पल - पल
रहे लोक को भून
मलिका - राजकुँवर कहते हैं
ठेंगे पर कानून
संसद ठप कर लोकतंत्र का
हाय! कर रहे खून
*
परदेशी से करें प्रार्थना
आ, बदलो सरकार
नेताजी को बिना मौत ही
दें कागज़ पर मार
संविधान को मान द्रौपदी
चाहें चीर उतार
दु:शासन - दुर्योधन की फिर
हो अंधी सरकार
मृग मरीचिका में जीते
जैसे इन बिन सब सून
मलिका - राजकुँवर कहते हैं
ठेंगे पर कानून
संसद ठप कर लोकतंत्र का
हाय! कर रहे खून
***
सामयिक गीत
चालीस चोर
*
चालीस चोर - अलीबाबा
क्योें करते बंटाढार?
*
जनता माँगे
दो हिसाब
क्यों की तुमने मनमानी?
घपले पकड़े गए
आ रही याद
तुम्हें अब नानी
सजा दे रहा जनगण
नाहक क्यों करते तकरार?
चालीस चोर - अलीबाबा
क्योें करते बंटाढार?
*
जननायक से
रार कर रहे
गैरों के पड़ पैर
अपनों से
चप्पल उठवाते
कैसे होगी खैर?
असंसदीय आचरण
बनाते संसद को बाज़ार
चालीस चोर - अलीबाबा
क्योें करते बंटाढार?
*
जनता समझे
कर नौटंकी
फैलाते पाखंड
देना होगा
फिर जवाब
हो कितने भी उद्दंड
सम्हल जाओ चुक जाए न धीरज
जन गण हो बेज़ार
चालीस चोर - अलीबाबा
क्योें करते बंटाढार?
*
***
बुंदेली गीत
जनता भई पराई
*
सत्ता पा घोटाले करते
तनकऊ लाज न आई
जाँच भई खिसियाए लल्ला
जनता भई पराई
*
अपनी टेंट नें देखे कानी
औरन को दे दोस
छिपा-छिपाकर ऐब जतन से
बरसों पाले पोस
सौ चूहे खा बिल्ली हज को
चली, रिसा पछताई?
जाँच भई खिसियाए लल्ला
जनता भई पराई
*
रातों - रात करोड़पति
व्ही आई पी भए जमाई
आम आदमी जैसा जीवन
जीने -गैल भुलाई
न्यायालय की गरिमा
संसद में घुस आज भुलाई
जाँच भई खिसियाये लल्ला
जनता भई पराई
*
सहनशीलता की दुहाई दें
जो छीनें आज़ादी
अब लौं भरा न मन
जिन्ने की मनमानी बरबादी
लगा तमाचा जनता ने
दूजी सरकार बनाई
जाँच भई खिसियाए लल्ला
जनता भई पराई
१०-१२-२०१५
***
मुक्तक सलिला:
नारी अबला हो या सबला, बला न उसको मानो रे
दो-दो मात्रा नर से भारी, नर से बेहतर जानो रे
जड़ हो बीज धरा निज रस से, सिंचन कर जीवन देती-
प्रगटे नारी से, नारी में हो विलीन तर-तारो रे
*
उषा दुपहरी संध्या रजनी जहाँ देखिए नारी है
शारद रमा शक्ति नारी ही नर नाहर पर भारी है
श्वास-आस मति-गति कविता की नारी ही चिंगारी हैं-
नर होता होता है लेकिन नारी तो अग्यारी है
*
नेकी-बदी रूप नारी के, धूप-छाँव भी नारी है
गति-यति पगडंडी मंज़िल में नारी की छवि न्यारी है
कृपा, क्षमा, ममता, करुणा, माया, काया या चैन बिना
जननी, बहिना, सखी, भार्या, भौजी, बिटिया प्यारी है
१०.१२.२०१३
***

सोमवार, 9 दिसंबर 2024

दिसंबर ९, मुक्तक, बुंदेली, नव गीत, सॉनेट गीत, दोहा, सैनिक, कचनार, धन श्लोक

सलिल सृजन दिसंबर ९ 
*
कचनार 
बीज पर्ण जड़ छाल अरु, फूल फली निष्काम।
मानव को कचनार दे, सहता कष्ट तमाम।।
वास्तु सूत्र 
धन संचय 
        धन के दो अर्थ होते हैं, पहला योग या जोड़ना अर्थात संचय तथा दूसरा संपत्ति। अर्जित धन में से कम व्यय कार बचाए धन को संचित कर संपत्ति बनाई जाति है। इसीलिए धन-संपत्ति शब्द युग्म का प्रयोग संपन्नता हेतु किया जाता है। धन कई प्रकार का होता है। मुद्रा, जेवर, भूमि, विद्या, स्वास्थ्य, चरित्र आदि को प्रसंगानुसार धन कहा जा सकता है। अंग्रेजी उक्ति है- ''वेल्थ इस लॉस्ट नथिग इस लॉस्ट, हेल्थ इस लॉस्ट सम थिंग इस लॉस्ट, कैरेक्टर इस लॉस्ट एवरी थिंग इस लॉस्ट'' अर्थात धन खोया तो कुछ नहीं खोया, स्वास्थ्य खोया तो कुछ खोया, चरित्र खोया तो सब कुछ खोया।

        भारत में धन संबंधी धारणा निम्न श्लोकों में वर्णित हैं। इन्हें पढ़ें, समझें और परिस्थिति के अनुसार उपयोग में लाइए। व्यावहारिक धरातल पर धन-संचय, यथा समय समुचित उपयोग तथा भावी पीढ़ी के लिए छोड़ना सबका महत्व है। संचित धन की सुरक्षा और वृद्धि संबंधी वास्तु सूत्र अंत में दिए गए हैं।

अतितॄष्णा न कर्तव्या तॄष्णां नैव परित्यजेत्।
शनै: शनैश्च भोक्तव्यं स्वयं वित्तमुपार्जितम् ॥
        अत्यधिक तृष्णा (कामना) न करें, न पूरी तरह छोड़ दें। अपने श्रम से कमाए धन का उपभोग धीरे धीरे भोग करें।।

स हि भवति दरिद्रो यस्य तॄष्णा विशाला।
मनसि च परितुष्टे कोर्थवान् को दरिद्रा:॥
        वास्तव में दरिद्र वह है जिसकी कामनाएँ बड़ी हैं। जो मन से संतुष्ट है उसके लिए धनी या दरिद्र होना कोई अर्थ नहीं रखता। 

अर्थानाम् अर्जने दु:खम् अर्जितानां च रक्षणे।
आये दु:खं व्यये दु:खं धिग् अर्था: कष्टसंश्रया:॥
        पहले धन कमाने में कष्ट होता है, बाद में धन की रक्षा करने में भी कष्ट होता है। जिसधन की आय और व्यय दोनों  दुःख है,  ऐसे धन को धिक्कार है। 

वॄत्तं यत्नेन संरक्ष्येद् वित्तमेति च याति च।
अक्षीणो वित्तत: क्षीणो वृत्ततस्तु हतो हत:॥
        चरित्र की यत्नपूर्वक रक्षा करें, धन आता-जाता रहता है। धन-नाश से मनुष्य का नाश नहीं होता, चरित्र-नाश से जीवित मनुष्य भी मृत समान हो जाता है। 

नाम्भोधिरर्थितामेति सदाम्भोभिश्च पूर्यते।
आत्मा तु पात्रतां नेय: पात्रमायान्ति संपद:।।
        समुद्र कभी जल की इच्छा नहीं करता तब भी सदा जल से भर रहता है। खुद को पात्र बनाएँ सम्पति अपने आप मिलेगी।

गौरवं प्राप्यते दानात्,न तु वित्तस्य संचयात्। 
स्थिति: उच्चै: पयोदानां, पयोधीनां अध: स्थिति:॥

        दान से गौरव प्राप्त होता है, धन-संचय से नहीं।  जल देने वालेबादल ऊपर है जबकि जल-संचय करनेवाला समुद्र नीचे है। 

दातव्यं भोक्तव्यं धनं सञ्चयो न कर्तव्यः।
पश्येह मधुकरीणां सञ्चितार्थं हरन्त्यन्ये॥
        धन का दान अथवा उपभोग करें, धन-संचय न करें। मधु-मक्खी द्वारा मधु संचित मधु कोई और ही ले जाता है। 

सहसा विदधीत न क्रियाम् अविवेकः परमापदां पदम्।
वृणुते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव सम्पदः॥

        मन में एकाएक आए विचार को कार्यान्वित नहीं करना चाहिए। ऐसा बुद्धिहीन कार्य करनेवाला मुसीबत में पद जाता है।  धैर्य और विवेक से कार्य करें तो सद्गुण का संपत्ति स्वयं वरण करती है। 

दानं भोगो नाशस्तिस्रो गतयो भवन्ति वित्तस्य।
यो न ददाति न भुङ्क्ते तस्य तृतीयागतिर्भवति॥
        धन की तीन गतियाँ  दान, उपभोग तथा नाश हैं। धन का दान अथवा उपभोग न कर, संचय करने पर धन-नाश हो जाता है। 

सन्तोषामृततृप्तानां यत्सुखं शान्तचेतसाम्।
कुतस्तद्धनलुब्धानां एतश्चेतश्च धावताम्॥
        संतोष रूपी अमृत से तृप्त व्यक्ति सुखी और शांत रहता है। धन के पीछे भागनेवालों को सुख-शांति नहीं मिल सकती। 

अधमा: धनमिच्छन्ति धनं मानं च मध्यमा: ।
उत्तमा: मानमिच्छन्ति मानो हि महताम् धनम् ।।
        अधम मनुष्य केवल धन की कामना करते हैं, मध्यम कोटी के मनुष्य धन-मान दोनों चाहते हैं परन्तु उत्तम मनुष्य केवल मान चाहता है, महान व्यक्तिओ के लिए मान ही धन है।

यस्यास्ति वित्तं स वरः कुलिनः स पण्डितः स श्रुतवान् गुणज्ञः ।
स एव वक्ता स च दर्शनीयः सर्वे गुणाः काञ्चनं आश्रयन्ते ॥
        जिसके पास धन है उसे ही कुलीन, विद्वान, गुणी, विद्वान तथा सुंदर माना जाता है क्योंकि ये सभी गुण धन (स्वर्ण) द्वारा मिलते हैं।

वैद्यराज नमस्तुभ्यम् यमराज सहोदर: ।
यमस्तु हरति प्राणान् वैद्य: प्राणान् धनानि च ।।
        वैद्यराज (चिकित्सक) को प्रणाम है जो यमराज के भाई हैं। यम केवल प्राण हरते हैं किंतु वैद्य प्राण और धन दोनों हर लेता है ।

कॄपणेन समो दाता न भूतो न भविष्यति ।
अस्पॄशन्नेव वित्तानि य: परेभ्य: प्रयच्छति ।।
        कंजूस के समान दानवीर न हुआ, न होगा क्योंकि वह जीवन भर कमाया धन अन्यों के लिए छोड़ जाता है।

अर्था भवन्ति गच्छन्ति लभ्यते च पुन: पुन:।
पुन: कदापि नायाति गतं तु नवयौवनम्।।
        धन बार बार आता है, जाता है परंतु नवयौवन एक बार जाने के बाद दुबारा कभी नहीं आता।

परस्य पीडया लब्धं धर्मस्यौल्लंघेनेन च ।
आत्मावमानसंप्राप्तं न धनं तत् सुखाय वै।।
        दूसरों को दुख देकर, धर्म का उल्लंघन कर तथा अपमानित होकर कमाया हुआ धन कभी सुख नहीं देता।

नालसा: प्राप्नुवन्त्यर्थान न शठा न च मायिनः।
न च लोकरवाद्भीता यं न च शश्वत्प्रतीक्षिणः।।
        आलसी, शठ, लुटेरे, लोगों सेसे भयभीत रहनेवाले तथा अपने कर्तव्य का पालन न करनेवाले धनार्जन नहीं कर सकते। 

        उक्त श्लोकों  में कही गई बातें ठीक होते हुए भी पूरी तरह व्यवहार में नहीं लाई जा सकतीं। धन कमाने, उपयोग करने, बचाने, सुरक्षित रखने, दान देने तथा भावी पीढ़ी के लिए छोड़ने सबका महत्व है। वास्तु शास्त्र के अनुसार धन को सुरक्षित रखने तथा बढ़ाने के लिए सुझाए गए उपायों को पढ़-समझकर अपनि आवश्यकता व बुद्धि अनुसार प्रयोग करें। 

१. धन-संपत्ति लक्ष्मी माँ का प्रसाद है। इसका दुरुपयोग न करें। संचित धन व मूल्यवान रतन, गहने आदि ईशान अथवा पूर्व दिशा में रखें। हर सुबह लक्ष्मी जी का स्मरणकर संचित धन  
दोहा सलिला
करे रतजगा चंद्रमा, हो जाता तब पीत।
उषा रश्मियों से कहे, कभी न होना भीत।।
दिन करने दिनकर चला, साथ लिए आलोक।
नीलगगन रतनार लख, मुग्ध हो रहा लोक।।
९-१२-२०२२
जय जय जय कामाख्या माता।
सकर सृष्टि तेरी संतति है, सारा जग तेरे गुण गाता।
सत्य कहाँ-क्या समझ न आए, है असत्य माया फैलाए।
माटी से उपजी यह काया, माटी में वापिस मिल जाए।
भवसागर में फँसा हुआ मन, खुद ही खुद को है भरमाता।
जय जय जय कामाख्या माता।
जगत्पिता-जगजननी तारो, हर संकट हर हे हर! तारो।
सदा सुलभ हों दर्शन मैया!, हृदय विराजो मातु! उबारो।
सुख में तुम्हें भूलते, दुख में नाम तुम्हारा ही है भाता।
जय जय जय कामाख्या माता।
इस माटी में सलिल मिला दो, कूट-पीट कर दीप बना दो।
सफल साधना नव आशा हो, तुहिना- वृत्ति सदा अमला हो।
श्वास गीतिका मन्वन्तर तक, सदय शारदा हरि कमला हो।
चित्र गुप्त तव देख सकें मन, रहे हमेशा तुमको ध्याता।
जय जय जय कामाख्या माता।
संजीव
श्री कामाख्या धाम, गुवाहाटी
१५•०३, ६-१२-२०२२
●●●
गीत
नीलाभित नभ सिंदूरी हो गया किसी के नाम से।
सूर्य प्रणम्य प्रतीत हो रहे सुधिमय नम्र प्रणाम से।।
रश्मि रश्मि शाकुंतल सुषमा लिए सूर्य दुष्यंत सम।
नयन नयन से कहें-सुनें क्या; पूछो मौन दिगंत सम।।
पंछी गुंजाते शहनाई; लहरें गातीं मंगल गान-
वट पल्लव कर मंत्र-पाठ; आहुतियाँ देते संत सम।।
फुलबगिया में सँकुचाई सिय; अकथ कह गई राम से।
शाम मिली फिर मुग्धा राधा, हुलस पुलक घनश्याम से।
सूर्य प्रणम्य प्रतीत हो रहे सुधिमय नम्र प्रणाम से।
नीलाभित नभ सिंदूरी हो गया किसी के नाम से।।
ब्रह्मपुत्र नद किसको ध्याए, कल कल कल कर टेरता।
लहर लहर उत्कंठित पल पल, किसका पथ छिप हेरता।।
मेघदूत से यक्ष पठाता; व्यथा-कथा निज पाती में।
बैरागी मन को रागी चित; दसों दिशा से घेरता।।
उस अनाम को ही संबोधित; करते शत-शत नाम से।
वह आकुल मिलता है; खुद ही आकर निष्काम से।।
सूर्य प्रणम्य प्रतीत हो रहे सुधिमय नम्र प्रणाम से।
नीलाभित नभ सिंदूरी हो गया किसी के नाम से।।
किसे सुमिरता है युग युग से, लिए सुमिरनी गति-यति की।
व्यथा उमा-नंदा की कह-सुन; समय साक्ष्य दे जन-मति की।।
कहे गुवाहाटी शिव तनया गंगा से जा मिलो गले।
ब्रह्मपुत्र मंदाकिनी भेटें, लीला सरस समयपति की।।
नखत नवाशा जगा दमकते, खास बन गए आम से।
करतल ध्वनि कर मुदित शांत जन; लगते पूर्ण विराम से।।
सूर्य प्रणम्य प्रतीत हो रहे सुधिमय नम्र प्रणाम से।
नीलाभित नभ सिंदूरी हो गया किसी के नाम से।।
संजीव
६-१२-२०२२,७-५४
रॉयल डे कासा, गुवाहाटी
•••
सॉनेट - गीत
सैनिक
*
सैनिक कभी नहीं मरते हैं
*
जान हथेली पर ले जीते
चुनौतियों से टकराते हैं।
जैसे हों अपराजित चीते।।
देवोपम गरिमा पाते हैं।।
नित्य मौत से टकराते हैं।
जीते जी बनते उदाहरण।
मृत्युंजय बन जी जाते हैं।।
जूझ मौत का विहँस कर वरण।।
कीर्ति कथाएँ लोक सुनाता।
अपने दिल में करे प्रतिष्ठित।
उन्हें याद कर पुष्प चढ़ाता।।
श्रद्धा सुमन करे रो अर्पित।।
शत्रु नाम सुनकर डरते हैं।
सैनिक नहीं मरा करते हैं।।
*
सैनिक जिएँ तानकर सीना।
कठिन चुनौती हर स्वीकारें।
मार मौत को जानें जीना।।
नित आपद को अंगीकारें।।
अस्त्र-शस्त्र ले पग-पग बढ़ते।
ढाल थाम झट करते रक्षा।
लपक वक्ष पर अरि के चढ़ते।।
अरि माँगे प्राणों की भिक्षा।
हर बाधा से डटकर जूझें।
नहीं आपदाओं से डरते।
हर मुश्किल सवाल को बूझें।।
सदा देश का संकट हरते।।
होते अमर श्वास तजते हैं।
सैनिक नहीं मरा करते हैं।।
*
मत रोएँ संकल्प करें सब।
बच्चा-बच्चा बिपिन बनेगा।
मधूलिका हो हर बच्ची अब।।
हर मोर्चे पर समर ठनेगा।।
बने विरासत शौर्य-पराक्रम।
काम करें निष्काम भाव से।
याद करे दुश्मन बल-विक्रम।।
बच्चे सैनिक बनें चाव से।।
आँख आँख में डाल शत्रु की।
आँख निकाल लिया करते हैं।
जान बचाने देश-मित्र की।।
बाँह पसार दिया करते हैं।।
वीर-कथा गा कवि तरते हैं।
सैनिक नहीं मरा करते हैं।।
९-१२-२०२१
***
सूर्य चंद्र धरती गगन, रखें समन्वय खूब।
लोक तंत्र रख संतुलन, सके हर्ष में डूब।।
बोलिए भारत माँ की जय
*
सूर्य-लोक हैं केंद्र में, इन्हें साध्य लें मान।
शेष सहायक हो करें, दोनों का गुणगान।।
बोलिए भारत माँ की जय
*
चंद्र सदा रवि से ग्रहण, करता सतत उजास।
तंत्र लोक से शक्ति ले, करे लोक-हित खास।।
बोलिए भारत माँ की जय
*
धरती धरती धैर्य चुप, घूमे-चल दिन रैन।
कभी देशहित मत तजें, नहीं भिगोएँ नैन।।
बोलिए भारत माँ की जय
*
गगन बिन थके छाँह दे, कहीं न आदि न अंत।
काम करें निष्काम हम, जनहित में बन संत।।
बोलिए भारत माँ की जय
*
लोकतंत्र की शक्ति है, जनता शासक दास।
नेता-अफसर-सेठ झुक, जन को मानें खास।।
बोलिए भारत माँ की जय
***
९-१२-२०२१
नव गीत
*
भोर हुई
छाई अरुणाई
जगना तनिक न भला लगा।
*
छायद तरु
नर बना कुल्हाड़ी
खोद रहा अरमान-पहाड़ी
हुआ बस्तियों में जल-प्लावन
मनु! तूने ही बात बिगाड़ी।
अनगिन काटे जंगल तूने
अब तो पौधा नया लगा
भोर हुई
छाई अरुणाई
जगना तनिक न भला लगा
*
टेर; नहीं
गौरैया आती
पवन न गाती पुलक प्रभाती
धुआँ; धूल; कोलाहल बेहद
सौंप रहे जहरीली थाती
अय्याशी कचरे की जननी
नाता एक न नेह पगा
भोर हुई
छाई अरुणाई
जगना तनिक न भला लगा
*
रिश्तों की
रजाई थी दादी
बब्बा मोटी धूसर खादी
नाना-नानी खेत-तलैया
लगन-परिश्रम से की शादी
सुविधा; भोग-विलास मिले जब
संयम से तब किया दगा
भोर हुई
छाई अरुणाई
जगना तनिक न भला लगा
*
रखा काम से
काम काम ने
छोड़ दिया तब सिया-राम ने
रिश्ते रिसती झोपड़िया से
बेच-खरीदी करी दाम ने
नाम हुआ पद; नाम न कोई
संग रहा न हुआ सगा
भोर हुई
छाई अरुणाई
जगना तनिक न भला लगा
*
दोष तर्जनी
सबको देती
करती मोह-द्रोह की खेती
संयम; त्याग; योग अंगुलियाँ
कहें; न भूलो चिंतन खेती
भौंरा बना नचाती दुनिया
मन ने तन को 'सलिल' ठगा
भोर हुई
छाई अरुणाई
जगना तनिक न भला लगा
६-१०-२०१९
***
एक रचना
घुटना वंदन
*
घुटना वंदन कर सलिल, तभी रहे संजीव।
घुटने ने हड़ताल की, जीवित हो निर्जीव।।
जीवित हो निर्जीव, न बिस्तर से उठने दे।
गुड न रेस्ट; हो बैड, न चलने या झुकने दे।।
छौंक-बघारें छंद, न कवि जाए दम घुट ना।
घुटना वंदन करो, किसी पर रखो न घुटना।।
*
मेदांता अस्पताल दिल्ली में डॉ. यायावर के घुटना ऑपरेशन पर भेंट
९.१२.२०१८
***
मुक्तक
शिखर पर रहो सूर्य जैसे सदा तुम
हटा दो तिमिर, रौशनी दो जरा तुम
खुशी हो या गम देन है उस पिता की
जिसे चाहते हम, जिसे पूजते तुम
दोहा
पौधों, पत्तों, फूल को, निगल गया इंसान
मैं तितली निज पीर का, कैसे करूँ बखान?
*
करें वंदना शब्द की ले अक्षर के हार
सलिल-नाद सम छंद हो, जैसे मंत्रोच्चार
*
लोकतंत्र का हो रहा, भरी दुपहरी खून.
सद्भावों का निगलते, नेता भर्ता भून.
***
बुंदेली दोहा
सबखों कुरसी चाइए, बिन कुरसी जग सून.
राजनीति खा रई रे, आदर्सन खें भून.
*
मन में का? के से कहें? सुन हँस लैहें लोग.
मन की मन में ही धरी, नदी-नाव संजोग.
९-१२-२०१७
***
क्षणिका
*
बहुत सुनी औरों की
अब तो
मनमानी कुछ की जाए.
दुनिया ने परखा अब तक
अब दुनिया भी परखी जाए
*
मुक्तक
चोट खाते हैं जवांदिल, बचाते हैं और को
खुद न बदलें, बदलते हैं वे तरीके-तौर को
मर्द को कब दर्द होता, सर्द मौसम दिल गरम
आजमाते हैं हमेशा हालतों को, दौर को
***
कार्यशाला
छंद बहर दोउ एक है - ९
रगण यगण गुरु = २१२ १२२ २
सात वार्णिक उष्णिक जातीय, बारह मात्रिक आदित्य जातीय छंद
बहर- फाइलुं मुफाईलुं
*
मुक्तक
मेघ ने लुभाया है
मोर नाच-गाया है
जो सगा नहीं भाया
वह गया भुलाया है
*
मौन मौन होता है
शोर शोर बोटा है
साफ़-साफ़ बोले जो
जार-जार रोता है
*
राजनीति धंधा है
शीशहीन कंधा है
न्याय कौन कैसे दे?
क्यों प्रतीक अँधा है
*
सूर्य के उजाले हैं
सेठ के शिवाले हैं
काव्य के सभी प्रेमी
आदमी निराले हैं
*
आपने बिसरा है
या किया इशारा है?
होंठ तो नहीं बोला
नैन ने पुकारा है
*
कौन-कौन आएगा?
देश-राग गायेगा
शीश जो कटाएगा
कीर्ति खूब पायेगा
*
नवगीत
क्यों नहीं कभी देखा?
क्यों नहीं किया लेखा??
*
वायवी हुए रिश्ते
कागज़ी हुए नाते
गैर बैर पाले जो
वो रहे सदा भाते
संसदीय तूफां की
है नहीं रही रेखा?
क्यों नहीं कभी देखा?
क्यों नहीं किया लेखा??
*
लोकतंत्र पूछेगा
तंत्र क्यों दरिंदा है?
जिंदगी रही जीती
क्यों मरी न जिंदा है?
आनुशासिकी कीला
क्यों यहाँ नहीं मेखा?
क्यों नहीं कभी देखा?
क्यों नहीं किया लेखा??
*
क्यारियाँ कभी सींचें
बागबान ही भूले
फूल को किया रुस्वा
शूल को मिले झूले
मौसमी किए वादे
फायदा नहीं सदा पेखा
क्यों नहीं कभी देखा?
क्यों नहीं किया लेखा??
***
मेखा = ठोंका, पेखा = देखा
८-१२-२०१६
***
मुक्तक सलिला
*
नाग नाथ को बिदा किया तो साँप नाथ से भी बचना
दंश दिया उसने तो इसने भी सीखा केवल डँसना
दलदल दल का दल देता है जनमत को सत्ता पाकर-
लोक शक्ति नित रहे जागृत नहीं सजगता को तजना।
*
परिवर्तन की हवा बह रही इसे दिशा-गति उचित मिले
बने न अंधड़, कुसुम न जिसमें जन-आशा का 'सलिल' खिले।
मतदाता कर्तव्यों को अधिकारों पर दे वरीयता-
खुद भ्रष्टाचारी होकर नेता से कैसे करें गिले?
*
ममो सोनिया राहुल डूबे, हुई नमो की जय-जयकार
कमल संग अरविन्द न लेकिन हाल एक सा देखो यार
जनता ने दे दिया समर्थन पर न बना सकते सरकार-
कैसी जीत मिली दोनों को जिसमें प्रतिबिंबित है हार
*
वसुंधरा शिव रमन न भूलें आगे कठिन परीक्षा है
मँहगाई, कर-भार, रिश्वती चलन दे रहा शिक्षा है
दूर करो जन गण की पीड़ा, जन-प्रतिनिधि सुविधा छोडो-
मतदाता जैसा जीवन जी, सत्ता को जन से जोड़ो
८-१२-२०१३
*