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शुक्रवार, 30 जून 2017

muktak

मुक्तक:
फसल हो मोगरा चंपा चमेली जुही केसर की
फसल रौंदे न कोई उठी हो तलवार नाहर की
अहिंसा-शांति का आशय न कायरता हुआ करता
चढ़ा सर शत्रु के कदमों पे भारत माँ की प्रेयर की
*
फसल हो समझदारी, भाईचारे, स्नेह, साहस की
फसल हो गौतमी परित्याग, सुजाता के पायस की
फसल हो स्वच्छता, मेहनत, नए निर्माण की निश-दिन
फसल संघर्ष की अरि दल को भूनें गोलियाँ अनगिन
***

bhojpuri haiku

भोजपुरी हाइकु:
संजीव
*
आपन बोली
आ ओकर सुभाव
मैया क लोरी.
*
खूबी-खामी के
कवनो लोकभासा
पहचानल.
*
तिरिया जन्म
दमन आ शोषण
चक्की पिसात.
*
बामनवाद
कुक्कुरन के राज
खोखलापन.
*
छटपटात
अउरत-दलित
सदियन से.
*
राग अलापे
हरियल दूब प
मन-माफिक.
*
गहरी जड़
देहात के जीवन
मोह-ममता.
*
३०-६-२०१४

dandkala chhand


छंद सलिला:
दण्डकला छंद
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति लाक्षणिक, प्रति चरण मात्रा ३२ मात्रा, यति १०-८-८-६, पदांत लघुगुरु, चौकल में पयोधर (लघु गुरु लघु / जगण) निषेध. श्री विभोर जी के अनुसार १, २, ४ तुक समान, तीसरी तुक शेष तीन से भिन्न हो. 
.
लक्षण छंद: 
यति दण्डकला दस / आठ आठ छह / लघु गुरु सदैव / पदांत हो 
जाति लाक्षणिक गिन / रखें हर पंक्ति / बत्तिस मात्रा / सुखांत हो
.
उदाहरण: 
१. 
कल कल कल प्रवहित / नर्तित प्रमुदित / रेवा मैया / मन बसिए 
निर्मल जलधारा / भय-दुःख हारा / शीतल छैयां / दे हँसिये 
कूदे पर्वत से / छप-छपाक् से / जलप्रपात रच / हँस नचिये  
चुप मंथर गति बह / पीर-व्यथा दह / सत-शिव-सुंदर / नित कहिए
*
२. 
'बुन्देलखंडपति / यवननाथ अरि / अभिनन्दन असि / साधक हे! 
बल-वीर्य पराक्रम / विजय-वरण क्षम / रण-जेता अरि / नाशक हे! 
जय जय छत्रसाल / योद्धा-मराल / शत वंदन नर / नाहर हे! 
थी जाती बाजी / लाकर बाजी / जीती माँ आ/राधक हे!
*
३. 
संध्या मन मोहे / गाल गुलाबी / चाल शराबी / ज्यों हिरणी  
शशि देख झूमता / लपक चूमता / सिहर उठे वह / नव घरनी 
कुण्डी खड़काये / ननद दुपहरी / सास निशा खाँ/से दहला
देवर तारागण / ससुर आसमां / पांसे फेंकें / मन बहला  
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टीप: पहले उदाहरण में चारों पंक्तियों में पदांत साम्य है. दूसरे उदाहरण में तीसरी पंक्ति के पदांत में आंशिक भिन्नता है. तीसरे उदाहरण में २-२ पंक्तियों में पदांत साम्य है. 
मेरे मात में इससे छंद परिवर्तन नहीं होता चूंकि कुल मात्रा संख्या तथा यति नियम समान हैं. 
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(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दण्डकला, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदन,मदनावतारी, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुद्ध ध्वनि, शुभगति, शोभन, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)

navgeet

नवगीत
तुलसी
*
तुलसी को
अपदस्थ कर गयी
आकर नागफनी।
सहिष्णुता का
पौधा सूखा
घर-घर तनातनी।
*
सदा सुहागन मुरझाई है
खुशियाँ दूर हुईं।
सम्बन्धों की नदियाँ सूखीं
या फिर पूर हुईं।
आसों-श्वासों में
आपस में
बातें नहीं बनी।
तुलसी को
अपदस्थ कर गयी
आकर नागफनी।
*
जुही-चमेली पर
चंपा ने
क्या जादू फेरा।
मगरमस्त संग
'लिव इन' में
हैं कैद, कसा घेरा।
चार दिनों में
म्यारी टूटी
लकड़ी रही घुनी।
तुलसी को
अपदस्थ कर गयी
आकर नागफनी।
*
झुके न कोई तो कैसे
हो तालमेल मुमकिन।
बर्तन रहें खटकते फिर भी
गा-नाचें ता-धिन।
तृप्ति चाहते
प्यासों ने ध्वनि
कलकल नहीं सुनी।
तुलसी को
अपदस्थ कर गयी
आकर नागफनी।
३-६-२०१६
***

गुरुवार, 29 जून 2017

muktika

समस्यापूर्ति 
प्रदत्त पंक्ति- मैं जग को दिल के दाग दिखा दूँ कैसे - बलबीर सिंह।
*
मुक्तिका:
(२२ मात्रिक महारौद्र जातीय राधिका छंद)   
मैं जग को दिल के दाग, दिखा दूँ कैसे?
अपने ही घर में आग, लगा दूँ कैसे?
*
औरों को हँसकर सजा सुना सकता हूँ  
अपनों को खुद दे सजा, सजा दूँ कैसे?
*
सेना को गाली बकूँ, सियासत कहकर 
निज सुत सेना में कहो, भिजा दूँ कैसे?
*
तेरी खिड़की में ताक-झाँक कर खुश हूँ 
अपनी खिड़की मैं तुझे दिखा दूँ कैसे?
*
 'लाइक' कर दूँ सब लिखा, जहाँ जो जिसने 
क्या-कैसे लिखना, कहाँ सिखा दूँ कैसे?
*



बुधवार, 28 जून 2017

गीत

एक रचना:
तुम
*
तुम मुस्काईं
तो ऊषा के
हुए गुलाबी गाल।
*
सूरज करता ताका-झाँकी
मन में आँकें सूरत बाँकी
नाच रहे बरगद बब्बा भी
झूम दे रहे ताल।
तुम इठलाईं
तो पनघट पे
कूकी मौन रसाल।
तुम मुस्काईं
तो ऊषा के
हुए गुलाबी गाल।
*
सद्यस्नाता बूँदें बरसें
देख बदरिया हरषे-तरसे
पवन छेड़ता श्यामल कुंतल
उलझें-सुलझे बाल।
तुम खिसियाईं
पल्लू थामे  
झिझक न करो मलाल।
तुम मुस्काईं
तो ऊषा के
हुए गुलाबी गाल।
*
बजी घंटियाँ मन मंदिर में
करी अर्चना कोकिल स्वर में
रीझ रहे नटराज उमा पर
पहना, पहनी माल।
तुम भरमाईं
तो राधा लख
नटवर हुए निहाल।
तुम मुस्काईं
तो ऊषा के
हुए गुलाबी गाल।
*
करछुल-चम्मच बाजी छुनछन
बटलोई करती है भुनभुन
लौकी हाथ लगाए हल्दी
मुकुट टमाटर लाल।  
तुम पछताईं
नमक अधिक चख
स्वेद सुशोभित भाल।
तुम मुस्काईं
तो ऊषा के
हुए गुलाबी गाल।
*
पूर्वा सँकुची कली नवेली    
हुई दुपहरी प्रखर हठीली  
संध्या सुंदर, कलरव सस्वर      
निशा नशीली चाल।  
तुम हुलसाईं
अपने सपने  
पूरे किये कमाल।
तुम मुस्काईं
तो ऊषा के
हुए गुलाबी गाल।
*



navgeet

नवगीत 
खिला मोगरा 
*
खिला मोगरा 
जब-जब, तब-तब 
याद किसी की आई।
महक उठा मन
श्वास-श्वास में
गूँज उठी शहनाई।
*
हरी-भरी कोमल पंखुड़ियाँ
आशा-डाल लचीली।
मादक चितवन कली-कली की
ज्यों घर आई नवेली।
माँ के आँचल सी सुगंध ने
दी ममता-परछाई।
खिला मोगरा
जब-जब, तब-तब
याद किसी की आई।
*
ननदी तितली ताने मारे
छेड़ें भँवरे देवर।
भौजी के अधरों पर सोहें
मुस्कानों के जेवर।
ससुर गगन ने
विहँस बहू की
की है मुँह दिखलाई।
खिला मोगरा
जब-जब, तब-तब
याद किसी की आई।
*
सजन पवन जब अंग लगा तो
बिसरा मैका-अँगना।
द्वैत मिटा, अद्वैत वर लिया
खनके पायल-कँगना।
घर-उपवन में
स्वर्ग बसाकर
कली न फूल समाई।
खिला मोगरा
जब-जब, मुझको
याद किसी की आई।
***
२८-६-२०१६

geet

गीत-
*
भूल नहीं पल भर को भी यह चेतन का संक्रान्तिकाल है
राकेशी ज्योत्सना न शीतल, लिये क्रांति की नव मशाल है 
*
अचल रहे संकल्प, विकल्पों पर विचार का समय नहीं है
हुई व्यवस्था ही प्रधान, जो करे व्यवस्था अभय नहीं है
*
कल तक रही विदेशी सत्ता, क्षति पहुँचाना लगा सार्थक
आज स्वदेशी चुने हुए से टकराने का दृश्य मार्मिक
कुरुक्षेत्र की सीख यही है, दु:शासन से लड़ना होगा
धृतराष्ट्री है न्याय व्यवस्था मिलकर इसे बदलना होगा
वादों के अम्बार लगे हैं, गांधारी है न्यायपीठ पर
दुर्योधन देते दलील, चुक गये भीष्म, पर चलना होगा
आप बढ़ा जी टकराने अब उसका तिलकित नहीं भाल है
भूल नहीं पल भर को भी यह चेतन का संक्रान्तिकाल है
*
हाथ हथौड़ा तिनका हाथी लालटेन साइकिल पथ भूले
कमल मध्य को कुचल, उच्च का हाथ थाम सपनों में झूले
निम्न कटोरा लिये हाथ में, अनुचित-उचित न देख पा रहा
मूल्य समर्थन में, फंदा बन कसा गले में कहर ढा रहा
दाल टमाटर प्याज रुलाये, खाकर हवा न जी सकता जन
पानी-पानी स्वाभिमान है, चारण सत्ता-गान गा रहा
छाते राहत-मेघ न बरसें, टैक्स-सूर्य का व्याल-जाल है
भूल नहीं पल भर को भी यह चेतन का संक्रान्तिकाल है
*
महाकाल जा कुंभ करायें, क्षिप्रा में नर्मदा बहायें
उमा बिना शिव-राज अधूरा, नंदी चैन किस तरह पायें
सिर्फ कुबेरों की चाँदी है, श्रम का कोई मोल नहीं है
टके-तीन अभियंता बिकते, कहे व्यवस्था झोल नहीं है
छले जा रहे अपनों से ही, सपनों- नपनों से दुःख पाया
शानदार हैं मकां, न रिश्ते जानदार कुछ तोल नहीं है
जल पलाश सम 'सलिल', बदल दे अब न सहन के योग्य हाल है
भूल नहीं पल भर को भी यह चेतन का संक्रान्तिकाल है
***
१८-६-२०१६

मंगलवार, 27 जून 2017

दोहा

दोहा सलिला                                                                                            *                                                                                                     जिसे बसाया छाँव में, छीन रहा वह ठाँव 
आश्रय मिले न शहर में, शरण न देता गाँव 
*
जो पैरों पर खड़े हैं, 'सलिल' उन्हीं की खैर 
पैर फिसलते ही बनें, बंधु-मित्र भी गैर 
*
सपने देखे तो नहीं, तुमने किया गुनाह 
किये नहीं साकार सो, जीवन लगता भार 
*
दाम लागने की कला, सीख किया व्यापार 
नेह किया नीलाम जब, साँस हुई दुश्वार 
माटी में मिल गए हैं, बड़े-बड़े रणवीर  
किन्तु समझ पाए नहीं, वे माटी की पीर 
नाम रख रहे आज वे, बुला-मनाकर पर्व  
नाम रख रहे देख जन, अहं प्रदर्शन गर्व  
*                                                                                                   
हैं पत्थर के सनम भी, पानी-पानी आज                                           
पानी शेष न आँख में, देख आ रही लाज 
*

laghuktha

लघुकथा
दुहरा चेहरा
*
- 'क्या कहूँ बहनजी, सच बोला नहीं जाता और झूठ कहना अच्छा नहीं लगता इसीलिये कहीं आना-जाना छोड़ दिया. आपके साथ तो हर २-४ दिन में गपशप होती रही है, और कुछ हो न हो मन का गुबार तो निकल जाता था. अब उस पर भी आपत्ति है.'

= 'आपत्ति? किसे?, आपको गलतफहमी हुई है. मेरे घर में किसी को आपत्ति नहीं है. आप जब चाहें पधारिये और निस्संकोच अपने मन की बात कर सकती हैं. ये रहें तो भी हम लोगों की बातों में न तो पड़ते हैं, न ध्यान देते हैं.'
- 'आपत्ति आपके नहीं मेरे घर में होती है. वह भी इनको या बेटे को नहीं बहूरानी को होती है.'
= 'क्यों उन्हें हमारे बीच में पड़ने की क्या जरूरत? वे तो आज तक कभी आई नहीं.'
-'आएगी भी नहीं. रोज बना-बनाया खाना चाहिए और सज-धज के निकल पड़ती है नेतागिरी के लिए. कहती है तुम जैसी स्त्रियाँ घर का सब काम सम्हालकर पुरुषों को सर पर चढ़ाती हैं. मुझे ही घर सम्हालना पड़ता है. सोचा था बहू आयेगी तो बुढ़ापा आराम से कटेगा लेकिन महारानी तो घर का काम करने को बेइज्जती समझती हैं. तुम्हारे चाचाजी बीमार रहते हैं, उनकी देख-भाल, समय पर दवाई और पथ्य, बेटे और पोते-पोती को ऑफिस और स्कूल जाने के पहले खाना और दोपहर का डब्बा देना. अब शरीर चलता नहीं. थक जाती हूँ.'
='आपकी उअमर नहीं है घर-भर का काम करने की. आप और चाचाजी आराम करें और घर की जिम्मेदारी बहु को सम्हालने दें. उन्हें जैसा ठीक लगे करें. आप टोंका-टाकी भर न करें. सबका काम करने का तरीका अलग-अलग होता है.'
-'तो रोकता कौन है? करें न अपने तरीके से. पिछले साल मैं भांजे की शादी में गयी थी तो तुम्हारे चाचाजी को समय पर खाना-चाय कुछ नहीं मिला. बाज़ार का खाकर तबियत बिगाड़ ली. मुश्किल से कुछ सम्हली है. मैंने कहा ध्यान रखना था तो बेटे से नमक-मिर्च लगाकर चुगली कर दी और सूटकेस उठाकर मायके जाने को तैयार ही गयी. बेटे ने कहा तो कुछ नहीं पर उसका उतरा हुआ मुँह देखकर मैं समझ गई, उस दिन से रसोई में घुसती ही नहीं. मुझे सुना कर अपनी सहेली से कह रही थी अब कुछ कहा तो बुड्ढे-बुढ़िया दोनों को थाने भिजवा दूँगी. दोनों टाइम नाश्ते-खाने के अलावा घर से कोई मतलब नहीं.'
पड़ोस में रहनेवाली मुँहबोली चाची को सहानुभूति जता, शांत किया और चाय-नाश्ता कराकर बिदा किया. घर में आयी तो चलभाष पर ऊँची आवाज में बात कर रही उनकी बहू की आवाज़ सुनायी पड़ी- ' माँ! तुम काम मत किया करो, भाभी से कराओ. उसका फर्ज है तुम्हारी सेवा करे....'
मैं विस्मित थी स्त्री हितों की दुहाई देनेवाली शख्सियत का दुहरा चेहरा देखकर.
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संपर्क- ९४२५१ ८३२४४, salil.sanjiv@gmail.com

muktak

मुक्तक
*
प्राण, पूजा कर रहा निष्प्राण की
इबादत कर कामना है त्राण की
वंदना की, प्रार्थना की उम्र भर-
अर्चना लेकिन न की संप्राण की
.
साधना की साध्य लेकिन दूर था
भावना बिन रूप ज्यों बेनूर था
कामना की यह मिले तो वह करूँ
जाप सुनता प्रभु न लेकिन सूर था
.
नाम ले सौदा किया बेनाम से
पाठ-पूजन भी कराया दाम से
याद जब भी किया उसको तो 'सलिल'
हो सुबह या शाम केवल काम से
.
इबादत में तू शिकायत कर रहा
इनायत में वह किफायत कर रहा
छिपाता तू सच, न उससे कुछ छिपा-
तू खुदी से खुद अदावत कर रहा
.
तुझे शिकवा वह न तेरी सुन रहा
है शिकायत उसे तू कुछ गुन रहा
है छिपाता ख्वाब जो तू बुन रहा-
हाय! माटी में लगा तू घुन रहा
.
तोड़ मंदिर, मन में ले मन्दिर बना
चीख मत, चुप रह अजानें सुन-सुना
छोड़ दे मठ, भूल गुरु-घंटाल भी
ध्यान उसका कर, न तू मौके भुना
.
बन्दा परवर वह, न तू बन्दा मगर
लग गरीबों के गले, कस ले कमर
कर्मफल देता सभी को वह सदा-
काम कर ऐसा दुआ में हो असर
***

मुक्तक

जो खुश रहता है
वह यह करता है
मर मर जीता है
जी जी मरता है

केवल व्यक्ति नहीं, संगठनात्मक शक्ति का नाम है – मधु धवन



केवल व्यक्ति नहीं, संगठनात्मक शक्ति का नाम है – मधु धवन
(अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि)


मधु धवन

आज प्रातः 4 बजे अग्रज बशीर जी से वाट्सैप संदेश में मधु धवन का फोटो मिला, थोड़ी देर बाद उनका फोन कॉल था, इस बात की पुष्टि के लिए कि मधु धवन न रही, क्या यह बात सच है ।  मित्रों को कॉल करने पर उन्हें कोई सूचना नहीं मिली थी, अतः बशीर जी मुझसे इसकी पुष्टि चाहते थे ।  मैंने तुरंत दो-चार नाम सुझाया, जिनसे पता कर मुझे भी सूचित करने के लिए ।  थोड़ी ही देर बाद बशीर जी ने पुनः कॉल करने इसकी पुष्टि की ।  इसके बावजूद मैं मानने के लिए तैयार नहीं था ।  लगातार कुछ मित्रों एस.एम.एस., फोन कॉल आने से मुझे उनकी बातों पर यकीन करना पड़ा ।  मधु धवन नहीं रही, इस बात को मैं अभी हजम नहीं कर पा रहा हूँ ।  उनका लेखना जितना विराट है, व्यक्तित्व उतना ही आत्मीय ।

सचमुच केवल व्यक्ति नहीं, संगठनात्मक शक्ति का नाम है – मधु धवन ।  आत्मीयता की प्रतिमूर्ति मधु धवन जी के साथ मेरा परिचय का दायरा लगभग तीन दशकों का है ।  लेखक, हिंदी प्रेमिका के रूप में उनकी गतिविधियों से लाखों लोग सुपरिचित हैं । 
तमिलनाडु में हिंदी लेखन के संबंध में लिखते हुए मैंने उनके कृतित्व के संबंध में भी लिखा था ।  2007-08 में जब अल्ताफ़ हुसैन जी ने मुझे चेन्नई में व्य़ाख्यान के लिए आमंत्रित किया, मेरे आगमन की सूचना पाकर चेन्नई के वरिष्ठ लेखक जो पधारे थे, उनमें मधु धवन जी भी थी ।  मेरा वक्तव्य कंप्यूटर-इंटरनेट के विकास के युग में लेखकों की भूमिका पर केंद्रित था ।  मेरे वक्तव्य के बाद कई लेखकों ने कहा कि हम अब कंप्यूटर-इंटरनेट से जुड़ जाएंगे ।  उनमें मधु धवन जी भी एक थी ।  उन्होंने मुझे कंप्यूटर पर कार्य करना सिखाना अनुरोध किया, दो-चार बार सिखाते ही वे स्वयं कंप्यूटर पर ई-मेल भेजने लगी । एक दूसरे संदर्भ में उन्होंने अपने लिए एक ब्लॉग तैयार करने का अग्रह किया और आश्वसन दिया कि उसे लगातार वे अपडेट करती रहेंगी, उन्होंने ब्लॉग नाम सुझाया तपस्या ।  मैंने उसी दिन (21 मई, 2013 को ही)  www.tapashya.blogspot.com  उनके लिए ब्लॉग सृजित कर उनकी कहानी बैखौफ का उसमें प्रकाशित कर दिया था ।  शायद व्यस्ततावश वे ब्लॉग को अपडेट नहीं कर पायीं ।  पांडिच्चेरी विश्वविद्यालय में मेरे आगमन के बाद उन्होंने आग्रह किया कि तमिल नाडु हिंदी साहित्य अकादमी की ओर एक कार्यक्रम का आयोजन करें ।  तदनुसार 2-3 दिसंबर, 2011 को पांडिच्चेरी विश्ववविद्याल एक राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया, जिसमें देश के विभिन्न प्रांतों के 150 से अधिक विद्वान शामिल हो गए थे । (http://yugmanas.blogspot.in/2011/12/blog-post.html )
            मधु धवन जी की आत्मीयता के असंख्य संस्मरण मेरे दिलों, दिमागों में सुरक्षित हैं ।  वे पांडिच्चेरी आने पर मेरे आवास पर अवश्य आ जाती थी, रास्त में कही जाते समय भी वे जरूर मुझसे मिलकर ही जाती थी ।  उनकी संगठनात्मक शक्ति का परिणाम है – तमिल नाडु हिंदी साहित्य अकादमी ।  अकादमी की पत्रिका बुलिटेन को लेकर भी वे हमेशा व्यस्त रहती थी ।  जनवरी 10 के एकाध आयोजनों में ही मैं जा पाया था ।  लगातार हर वर्ष कार्य करते हुए हज़ारों हिंदी प्रेमियों को एक मंच पर लाने की कोशिश उन्होंने की है ।  विगत दिनों में जब उन्होंने मुझे कॉल किया और इच्छा जतायी कि बहुभाषी लेखिका संघ की ओर से पांडिच्चेरी में हिंदी शिक्षण की गतिविधियाँ चलाना चाहते हैं और उसमें राधिका भी अपनी भूमिका निभा सकती हैं ।  मैंने फोन राधिका के हाथ में पकड़ा दिया था कि वे दोनों आपस सीधी बातचीत कर लें ।  इसके बाद उनका कॉल मेरे आलेख को लेकर था, जो तेलुगु साहित्य में राष्ट्रीयता की भावना पर था । भवानी गंगाधर जी के प्रेस में बैठकर उन्होंने मुझे कॉल किया था ।  सदा हिंदी भाषा एवं साहित्य की सेवा में वे सक्रिय रही हैं । 
       वे भौतिक रूप से इस संसार से दूर होने पर भी असंख्य आत्मीय मित्रों के दिलों में उनकी आत्मीय स्मृतियाँ सुरक्षित व अमर रहेंगी । उनकी शताधिक कृतियों के माध्यम से, विचारों के माध्यम से पाठकों के बीच भी वे अमर रहेंगी ।
       युग मानस के साथ भी वे सक्रिय जुड़ी रहीं ।

       उनके असामयिक निधन पर शोक के इन क्षणों में उनके स्वर्गस्थ आत्म की चिर शांति के लिए अश्रु नयनों से प्रार्थना से बढ़कर अधिक संस्मरण कह पाने में मैं अपने को असमर्थ महसूस कर रहा हूँ । 
            उनका पार्थिव शरीर उनके मित्रों, आत्मीयजनों के दर्शनार्थ चेन्नई स्थित उनका आवास के-3, अन्ना नगर पूर्व में रखा गया है ।  आज दुपहर 3 बजे के बाद उनकी अंत्योष्टि होगी ।
       अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि सहित...
-    डॉ. सी. जय शंकर बाबु