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गुरुवार, 16 अप्रैल 2015

navgeet: sanjiv

नवगीत
संजीव
.
बांसों के झुरमुट में
धांय-धांय चीत्कार
.
परिणिति
अव्यवस्था की
आम लोग
भोगते.
हाथ पटक
मूंड पर
खुद को ही
कोसते.
बाँसों में
उग आये
कल्लों को
पोसते.
चुभ जाती झरबेरी
करते हैं सीत्कार
.
असली हो
या नकली
वर्दी तो
है वर्दी.
असहायों
को पीटे
खाखी हो
या जर्दी.
गोलियाँ
सुरंग जहाँ
वहाँ सिर्फ
नामर्दी.
बिना किसी शत्रुता
अनजाने रहे मार
.
सूखेंगे
आँसू बह.
रक्खेंगे
पीड़ा तह.
बलि दो
या ईद हो
बकरी ही
हो जिबह.
कुंठा-वन
खिसियाकर
खुद ही खुद
होता दह
जो न तर सके उनका
दावा है रहे तार
***

navgeet: sanjiv

नवगीत:
संजीव
.
सपने हुए कपूर
गैर भी लगते अपने
.
जन-मन के मंदिर में
घंटा-ध्वनि होने दो
पथ पाने के लिये
भीड़ में धँस-खोने दो
हँसने की खातिर
मन को जी भर रोने दो
फलना हो तो तूफां में
फसलें बोने दो
माल जपें हुज़ूर
देव-किस्मत को ठगने
सपने हुए कपूर
गैर भी लगते अपने
.
आशा पर आकाश टंगा
सपने सोने दो
तन धोया अब तलक
तनिक मन भी धोने दो
खोलो खिड़की-द्वार
तिमिर को मत कोने दो
ताले फेंको तोड़
न खुद को शक ढोने दो
अट्टहास कर नाचो
हैं बेमानी नपने
सपने हुए कपूर
गैर भी लगते अपने
.

navgeet : sanjiv

नवगीत:
संजीव
.
नेह नर्मदा-धारा मुखड़ा
गंगा लहरी हुए अंतरे
.
कथ्य अमरकंटक पर
तरुवर बिम्ब झूमते
डाल भाव पर विहँस
बिम्ब कपि उछल लूमते
रस-रुद्राक्ष माल धारेंगे
लोक कंठ बस छंद कन्त रे!
नेह नर्मदा-धारा मुखड़ा
गंगा लहरी हुए अंतरे
.  
दुग्ध-धार लहरें लय
देतीं नवल अर्थ कुछ
गहन गव्हर गिरि उच्च
सतत हरते अनर्थ कुछ
निर्मल सलिल-बिंदु तर-तारें
ब्रम्हलीन हों साधु-संत रे!
नेह नर्मदा-धारा मुखड़ा
गंगा लहरी हुए अंतरे
.
विलय करे लय मलय
न डूबे माया नगरी
सौंधापन माटी का
मिटा न दुनिया ठग री!
ढाई आखर बिना न कोई
किसी गीत में तनिक तंत रे!
नेह नर्मदा-धारा मुखड़ा
गंगा लहरी हुए अंतरे
.

navgeet: sanjiv

नव गीत:
संजीव
.
अपने ही घर में
बेबस हैं
खुद से खुद ही दूर
.
इसको-उसको परखा फिर-फिर
धोखा खाया खूब
नौका फिर भी तैर न पायी
रही किनारे डूब
दो दिन मन में बसी चाँदनी
फिर छाई क्यों ऊब?
काश! न होता मन पतंग सा
बन पाता हँस दूब
पतवारों के
वार न सहते
माँझी होकर सूर
अपने ही घर में
बेबस हैं
खुद से खुद ही दूर
.
एक हाथ दूजे का बैरी
फिर कैसे हो खैर?
पूर दिये तालाब, रेत में
कैसे पायें तैर?
फूल नोचकर शूल बिछाये
तब करते है सैर
अपने ही जब रहे न अपने
गैर रहें क्यों गैर?
रूप मर रहा
बेहूदों ने
देखा फिर-फिर घूर
अपने ही घर में
बेबस हैं
खुद से खुद ही दूर
.
संबंधों के अनुबंधों ने
थोप दिये प्रतिबंध
जूही-चमेली बिना नहाये
मलें विदेशी गंध
दिन दोपहरी किन्तु न छटती
फ़ैली कैसी धुंध
लंगड़े को काँधे बैठाकर
अब न चल रहे अंध
मन की किसको परख है
ताकें तन का नूर
***

chitra par kavitaa

चित्र पर कविता:

संध्या सिंह 
पेड़-पवन , पंछी-गगन , बजा भोर का साज़ |
धरा-सूर्य के मिलन का , क्या अद्भुत अंदाज़ |
संजीव
क्या अद्भुत अंदाज़, देख मन नाच रहा है  
पंछी-पंछी प्रणय-पत्रिका बाँच रहा है  
क्षितिज सरस दरबारी हँसे पवन को छेड़  
याद करें संध्या को प्रमुदित होकर पेड़
  
निशा कोठारी 
सदा ही करती भोर का मनभावन आगाज़ 
जाने क्या इस कलम की सुंदरता का राज़

बुधवार, 15 अप्रैल 2015

muktika: sanjiv

मुक्तिका:
संजीव
.
चूक जाओ न, जीत जाने से
कुछ न पाओगे दिल दुखाने से
.
काश! खामोश हो गये होते
रार बढ़ती रही बढ़ाने से
.
बावफा थे, न बेवफा होते  
बात बनती है, मिल बनाने से    
.
घर की घर में रहे तो बेहतर है
कौन छोड़े हँसी उड़ाने से?
.
ये सियासत है, गैर से बचना
आजमाओ न आजमाने से
.
जिसने तुमको चुना नहीं बेबस
आयेगा फिर न वो बुलाने से  
.
घाव कैसा हो, भर ही जाता है
दूरियाँ मिटती हैं भुलाने से  
.

muktika: sanjiv

मुक्तिका:
संजीव
.
आप से आप ही टकरा रहा है
आप ही आप जी घबरा रहा है
.
धूप ने छाँव से कर दी बगावत
चाँद से सूर्य क्यों घबरा रहा है?
.
क्यों फना हो रहा विश्वास कहिए?
दुपहरी में अँधेरा छा रहा है  
.
लोक को था भरोसा हाय जिन पर
लोक उनसे ही धोखा खा रहा है
.
फिजाओं में घुली है गुनगुनाहट
खत्म वनवास होता जा रहा है
.
हाथ में हाथ लेकर जो चले थे
उन्हीं का हाथ छूटा जा रहा है
.
बुहारू ले बुहारो आप आँगन
स्वार्थ कचरा बहुत बिखरा रहा है
.

doha: sanjiv

खबरदार दोहे
संजीव
.
केर-बेर का सँग ही, करता बंटाढार
हाथ हाथ में ले सभी,  डूबेंगे मँझधार
(समाजवादी एक हुए )
.
खुल ही जाती है सदा, 'सलिल' ढोल की पोल
मत चरित्र या बात में, अपनी रखना झोल
(नेताजी संबंधी नस्तियाँ खुलेंगी)
.
न तो नाम मुमताज़ था, नहीं कब्र है ताज
तेज महालय जब पूजे तभी मिटेगी लाज
(ताज शिव मंदिर है)
.
जयस्तंभ की मंजिलें, सप्तलोक-पर्याय
कलें क़ुतुब मीनार मत,  समझ सत्य-अध्याय
(क़ुतुब मीनार जयस्तंभ है)
.




doha salila: sanjiv

दोहा सलिला:

रश्मिरथी रण को चले, ले ऊषा को साथ
दशरथ-कैकेयी सदृश, ले हाथों में हाथ
.
तिमिर असुर छिप भागता, प्राण बचाए कौन?
उषा रश्मियाँ कर रहीं, पीछा रहकर कौन
.
जगर-मगर जगमग करे, धवल चाँदनी माथ
प्रणय पत्रिका बाँचता, चन्द्र थामकर हाथ
.
तेज महालय समर्पित, शिव-चरणों में भव्य
कब्र हटा करिए नमन, रखकर विग्रह दिव्य
.
धूप-दीप बिन पूजती, नित्य धरा को धूप
दीप-शिखा सम खुद जले, देखेरूप अरूप
.

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस संबंधी सत्य की खोज:

बर्लिन में पीएम नरेंद्र मोदी से मुलाकात के दौरान नेताजी के परपोते सूर्य कुमार बोस।बर्लिन.  नेताजी सुभाषचंद्र बोस के परपोते सूर्य कुमार बोस ने जर्मनी के दौरे पर गये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सोमवार की शाम भारतीय राजदूत विजय गोखले द्वारा दिये गये स्वागत भोज में भेंट कर नेताजी के रहस्यमय ढंग से लापता होने से जुड़ी गोपनीय नस्तियों और जवाहरलाल नेहरू द्वारा बोस परिवार की जासूसी कराये जाने जैसे मसलों को उठाया।

नेताजी की वापसी से खतरे में पड़ जाती नेहरू की गद्दीः सूर्य कुमार बोस

सूर्य कुमार बोस ने कांग्रेस और नेहरू पर आरोप लगाते हुए कहा कि जानबूझकर नेताजी से जुड़ी फाइलों को दबा कर रखा गया । उन्होंने कहा, ''नेहरू को डर था कि नेताजी के वापस आने के बाद उनकी गद्दी जा सकती है, इसलिए मेरे पिता और परिवार के अन्य सदस्यों की विदेश सचिव और राजदूत से जासूसी करायी गयी।'' नेताजी के परिवार के एक अन्य सदस्य चंद्र बोस ने दावा किया, ''पीएम मोदी के पास सारे अधिकार हैं, वह नेताजी की गुमशुदगी से जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक करेंगे तथा पंडित नेहरू द्वारा बोस परिवार की जासूसी मामले की जाँच का भी आश्वासन दिया है।''
'पूरे देश के थे नेताजी, सब करें रहस्य से पर्दा उठाने की मांग' 
पीएम मोदी से मुलाकात के पहले सूर्य कुमार बोस ने कहा, ''सुभाष बोस केवल एक ही परिवार से नहीं जुड़े थे। उन्होंने खुद कहा था कि पूरा देश उनका परिवार है। मैं नहीं समझता कि यह एक ही परिवार का जिम्मा है कि नेताजी से जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक करने की माँग करे, यह पूरे देश का जिम्मा है।'' 18 अगस्त 1945 को ताइवान में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को अंतिमबार देखा गया था जिसके बाद से वह लापता हैं।
क्यों पीएम मोदी से मिला बोस परिवार
नेताजी के गायब होने से जुड़ी कई फाइलें हैं, जिन्हें केंद्र सरकार ने आज तक सार्वजनिक नहीं किया है। नेताजी के परिवार के सदस्यों की मांग रही है कि सरकार सुभाष चंद्र बोस से जुड़ी 160 गोपनीय फाइलों को सार्वजनिक करे। बता दें कि कांग्रेस सरकार की तरह मोदी सरकार भी नेताजी से जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक करने से आनाकानी करती रही है। पिछले दिनों ऐसी खबरें आई थीं कि देश का पहला प्रधानमंत्री बनने के बाद जवाहरलाल नेहरू ने दो दशकों तक बोस परिवार की जासूसी कराय थी। इसका खुलासा सीक्रेट लिस्ट से हाल ही में हटायी गयी इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) की दो फाइलों से हुआ है। फाइलों से पता चला है कि 1948 से 1968 के बीच सुभाष चंद्र बोस के परिवार पर निगरानी रखी गयी थी। इन 20 सालों में से 16 साल तक नेहरू देश के पीएम थे और आईबी उन्हीं के अंतर्गत काम करती थी।

ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट (ओएसए) के रिव्यू के लिए केंद्र सरकार ने कमेटी गठित की:
दिल्ली. स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की गुमशुदगी से जुड़े रहस्यों से जल्द मोदी सरकार पर्दा उठा सकती है। इस संबंध ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट (ओएसए) पर पुनर्विचार के लिए केंद्र सरकार ने एक कमेटी गठित की है। इस इंटर-मिनिस्ट्रियल कमेटी का नेतृत्व कैबिनेट सचिव कर रहे हैं जो नेताजी की गुमशुदगी से जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक करने की मांग पर विचार करेंगे। कमेटी में रॉ, आईबी, होम मिनिस्ट्री के अलावा पीएमओ के अधिकारी भी हैं।

सरकार की ओर से कमेटी बनाए जाने पर नेताजी के परिवार ने खुशी जताई है। इस संबंध में नेताजी के परपोते चंद्र बोस ने कहा, ''मोदी सरकार की ओर से इतना जल्दी फैसला लिया जाना बहुत ही सकारात्मक है, हमें इतने जल्दी फैसले की उम्मीद नहीं थी।'' बर्लिन में पीएम मोदी से मुलाकात करने वाले नेताजी के परपोते ने कहा कि परिवार गुमशुदगी और नेताजी के जीवन से जुड़े किसी भी तथ्य को स्वीकार करेगा। उन्होंने कहा, ''हो सकता है कि फाइलों से होने वाले खुलासे में नेताजी की बेहतर छवि न सामने आए। उनके बारे में कुछ नकारात्मक भी हो सकता है। सब कुछ संभावना है, लेकिन हमें इसे स्वीकार करना होगा। परिवार नेताजी के बारे में किसी भी खुलासे को स्वीकार करने को तैयार है।'' सूर्य बोस ने कहा था, ''मैंने पीएम मोदी को कुछ बिंदुओं को लिखित दिया है। इसमें परिवार की नेहरू द्वारा जासूसी कराये जाने की बात भी शामिल है। हमारा परिवार चाहता है कि सच सामने आए। मैंने पीएम मोदी को बताया कि भारत इतना मजबूत देश है कि यदि नेताजी से जुड़ा सच सामने आता है और वह किसी देश को मंजूर नहीं होता है तो भी भारत का कुछ नहीं बिगड़ेगा।''
 

कानपूर भ्रमण: १० - १३ अप्रैल २०१५


कानपूर में ११-१२ अप्रैल को शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के तत्वावधान में भारतीय भाषाओँ की वैज्ञानिकता एवं सन्निकटता विषय पर राष्ट्रीय परिसंवाद संपन्न हुआ. 


इसका उद्घाटन माननीय श्री राम नाइक राज्यपाल उत्तर प्रदेश के कर कमलों से संपन्न हुआ.                                                                 
श्री अतुल कोठारी सचिव शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास दिल्ली, प्रो. मोहनलाल छीपा कुलपति अटलबिहारी बाजपेयी हिंदी विशवविद्यालय भोपाल, डॉ. कैलाश विश्वकर्मा राष्ट्रीय संयोजक वैदिक गणित, प्रो. वृषभप्रसाद जैन पूर्व सलाहकार भारतीय विश्वविद्यालय संघ, डॉ. राजेश श्रीवास्तव बुदनी, डॉ. जीतेन्द्र शांडिल्य, डॉ.अनूप शर्मा आदि के साथ मैंने भी दोनों दिन सहभागिता की.                                                                       

प्रथम सत्र में भारतीय भाषाओँ का समन्वय- दशा व् दिशा, द्वितीय सत्र में भारतीय भाषाओँ की सन्निकटता, तृतीय सत्र में भाषागत चिंतायें: विरोध व् वैमनस्यता कारण व् निवारण, चतुर्थ सत्र में भारतीय भाषाओँ की वैज्ञानिकता में निहित विज्ञानं तथा पंचम सत्र में वर्तमान संदर्भ में भारतीय भाषा आन्दोलन विषयों पर सारगर्भित विचार विनिमय हुआ.                                          
परिसंवाद संयोजक श्री यशभान सिंह तोमर ने अथक परिश्रम कर इसे मूर्त रूप दिया.                                                               
हीरालाल पटेल इन्त्र्नेश्नल स्कूल के संस्थापक श्री हीरालाल पटेल तथा प्रबंधक श्री अरुण पटेल, आकाश उद्घोषिका श्रीमती रंजना यादव, श्री उमेश सिंह तोमर, श्रीमती डॉ. मोहिनी अग्रवाल, डॉ. उमेश पालीवाल, डॉ. नीलम त्रिवेदी, डॉ. अंगद सिंह, डॉ. अनूप सिंह, श्री शारदा दीन, डॉ. हिना अफ्सां, श्री सुजीत सिंह आदि ने जी-जान लगाकर आयोजन में प्राण फूंके

                                                      श्रीमती अन्नपूर्णा बाजपेई, श्रीमती कल्पना मिश्र, श्रीमती मीना बाजपेई, श्रीमती लक्ष्मी आदि से नवगीत तथा अन्य साहित्यिक विधाओं पर सार्थक चर्चाएँ हुईं.                                                    
समापन सत्र में शरू अतुल कोठारी के कर कमलों से स्मृतिचिन्ह के रूप अपने आदर्श स्वामी विवेकानंद की कांस्य प्रतिमा प्राप्तकर धन्यता की प्रतीति हुई.                                                  
आजकल एक के साथ एक मुफ्त का चलन है. मुझे तो दो अन्य लाभ मिले:                           
१. नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से सम्बंधित दस्तावेजों को सार्वजनिक कर विमान दुर्घटना व् अन्य सत्य सामने लाने के लिए अधिकारक्षम आयोग की माँग करते रहे श्री सुरेन्द्रनाथ चित्रांशी के साथ लम्बी चर्चा हुई. मैं इस संबंध में उनका सहयोगी हूँ. अगले कदमों पर चर्चा हुई. कायस्थ धर्म परिषद् की सक्रियता बढाकर इसे मानव मात्र के कल्याण हेतु गतिविधि का केंद्र बनाने पर विचार हुआ.                                                          
२. कायस्थ महासभा रामपुर कानपूर के नवनिर्वाचित अध्यक्ष श्री पंकज श्रीवास्तव के शपथ ग्रहण कार्यक्रम में सहभागिता कर सामाजिक समस्याओं, सांस्कृतिक कार्यक्रमों तथा १३ अप्रैल को व्यक्तिगत चर्चा में चित्रगुप्त व्याख्यानमाला के अंतर्गत राष्ट्रीय हित के विषयों पर प्रति वर्ष एक आयोजन करने के विचार पर सहमति हुई. मसिजीवी कायस्थ समाज के अस्त्र कलम का प्रतीक चिन्ह भूमंडल उठाये निब का सुन्दर प्रतीक चिन्ह मुझे भेंट किया गया.



suggestions for improvements in coaches

https://www.localcircles.com/a/home?t=c&pid=tJWDnOuaxjEFbvkoxFAyqTTk7iNDexn5vIZ7PJJ78PM

१. डब्बों की सभी श्रेणियों तथा स्टेशनों पर शौचालयों के निर्माण में पुरुष / स्त्री, सामान्य /अशक्त-वृद्ध जनों / बच्चों का ध्यान रखकर संख्या तथा उपादान लगाये जाना चाहिए.

२. शौच की प्राकृतिक अनिवार्यता के मद्देनज़र यह सुविधा निशुल्क हो ताकि किसी की जेब में मुद्रा न होने पर भी उसे सार्वजनिक स्थल पर मल-मूत्र त्याग न करना पड़े.

३. रेलगाड़ी में वाश बेसिन बच्चों की कम ऊँचाई के अनुकूल नहीं हैं.

४. अस्थि रोग ग्रस्त यात्रियों को बढ़ती संख्या को देखते हुए हर डब्बे में दोनों छोर पर एक-एक कमोड (पश्चिमी शैली) युक्त शौचालय हो.

५. लंबी दूरी की रेलगाड़ियों में शावर हो तो स्नान की सुविधा हो सकती है.

६. वातानुकूलित डब्बों में आम यात्री के लिए परदे की कोई उपयोगिता नहीं है. यह अपव्यय रोका जा सकता है.

७. वातानुकूलित डब्बों में टॉवल / नेप्किन नहीं दिया जाता, टिकिट निरीक्षक यात्री से इसकी पुष्टि करें तो यात्री यह सुविधा पा सकेंगे.

८. ऊपरी शायिका पर सो रहे बच्चों के गिरने की दुर्घटना रोकने के लिए खुले छोर पर जाली की रेलिंग हो जिसे चाहने पर शायिका के नीचे मोड़ा जा सके.

९. बाजू की बीच की शायिका तत्काल हटाई जाए. इस पर बैठना या सामान रख पाना संभव नहीं होता.

१०.कम वज़न के तथा दुमंजिले डब्बे बनायें जा सकते हैं जो दोगुने यात्रियों को ले जा सकेंगे.

११. वृद्धों, महिलाओं, अशक्तों तथा बच्चों को ऊपरी शायिका आवंटित होने पर चढ़ने हेतु सुविधाजनक सीढ़ी हो. आड़े गोल पाइपों के स्थान पर चौड़े चौकोर पाइप हो तथा उनकी संख्या बढ़ा दी जाए.

१२. खतरे की ज़ंजीर खिड़की के ऊपर हो ताकि खतरे के समय कम ऊँचाई के यात्री भी खींच सकें.

१३. डब्बे अग्निरोधी हलके पदार्थ के हों.

१४. यात्रियों का अनुमति से अधिक सामान लगेज वान में रखकर तुरंत पावती देने तथा उअतारते समय पावती दिखानेपर सामान देने की व्यवस्था हो तो डब्बों में सामान की भरमार न होगी, यात्रा सुविधाजनक होगी.

१५.प्रतीक्षालय तथा विश्राम कक्षों में अधिकाधिक शायिकाएं हों. पुराने बड़े सभागारनुमा कक्षा में १-२ शायिका रखने का चलन बंद हो.

१६. रेलगाड़ियों के शौचालयों के नीचे ऐसी व्यवस्था हो की स्टेशन पर मल-मूत्र नीचे न गिरे तथा रेल रवाना होने के बाद बस्ती के बाहर निर्धारित स्थान पर चालक लीवर खींचकर मल-मूत्र नीचे गिरा सके.

१७. कचरा फेंकने का स्थान कम पड़ता है. वातानुकूलित डब्बों में वाश बेसिन के नीचे कचरे के डब्बे का आकार बढ़ाया जाए.

१८. खड़े होकर यात्रा कर रहे यात्रियों के लिए सामान्य तथा थ्री टायर डब्बों में मेट्रोट्रेन की तरह आड़े पाइप लगाकर पकड़ने के लिए लूप हों.

१९. अशक्त जनों के लिए विशेष डब्बे में शायिका संख्या बढ़ाई जाए तथा एक अशक्त के साथ एक सहायक के बैठने हेतु व्यवस्था हो.

२०. अशक्तजनों हेतु शौचालय का आकर बड़ा रखने के स्थान पर जगह-जगह पकड़ने तथा टिककर सहारा लेने के लिये  उपकरण हों.

२१. सूचना पटल पर तथा उद्घोषणाओं में हिंदी, स्थानीय भाषा हो. आवश्यक प्रतीत होने पर अंत में अंग्रेजी का प्रयोग हो.
Sanjiv verma 'Salil', 94251 83244
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'

bharteeya railpath : suggestions


​​
भारतीय रेल द्वारा निम्न लिंक पर सुझाव आमंत्रित हैं, आप भी अपने सुझाव भेजें. 

https://www.localcircles.com/a/home?t=c&pid=Wkh0JPv7r7h8THiYuCc2ijERcawz8XRARzrl_9uaKY8

नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन को अधिक सुविधाजनक बनाने हेतु सुझाव: 

१. सभी सूचना फलक,प्रपत्र तथा घोषणाओं में सामान्यतः बोली जा रही हिंदी का प्रयोग अधिकतम और सर्वप्रथम हो. 

२. मुसाफिरखाने और विश्राम स्थलों में अद्यतन (अप टू डेट) तथा सही सूचनाएं देते विद्युत् सूचना पटल हों. पूछताछ  खिड़की पर बैठे कर्मी सहयोगी रवैया रखें, पूछनेवाले की अनदेखी न करें, टालें या दुत्कारें नहीं.

३. शौचालयों की संख्या तथा स्थान बढ़ाए जायें व् स्वच्छ रखे जाएँ. 

४. विश्राम कक्षों में शायिकाओ की संख्या वृद्धि हो.

५. किसी रेलगाड़ी में चढ़ाने के लिए उससे कुछ पूर्व निकट के अन्य स्टेशनों से अन्य ट्रेनों में बिना अतिरिक्त टिकिट लिये सामान्य डब्बे में सवार होकर आने की सुविधा हो.  

६. किसी स्टेशन पर ट्रेन समाप्त होने पर उसी शहर के अन्य स्टेशन तक जाने के लिए सामान्य डब्बे में उसी टिकिट पर पात्रता हो. 

७. रेलवे स्टेशन और समीप स्थित मेट्रो स्टेशन से आवागमन हेतु सार्वजनिक वाहन टेम्पो आदि की सुनिश्चितता पूर्व भुगतान [प्री पेड] बूथ की तरह हो. 

८. निर्धारित वज़न से अधिक सामान की तौलकर भाडा लेने और लगेजवान में लोड करने तथा गंतव्य स्थल पर पावती दिखाने पर तुरंत देने की व्यवस्था हो तो सवारी डब्बों में असुविधा कम होगी. 

९. बहुसंख्यक आम यात्रियों के आवागमन हेतु  स्टेशन के मुख्या द्वार से सीधा और सबसे छोटा मार्ग हो जबकि चाँद महत्वपूर्ण व्यक्तियों के लिये इंजिन के तुरंत बाद डब्बा हो, और अलग से प्रवेश हो जहाँ केवल यात्री जा सके उसके साथ की भीड़ नहीं जा सके. इस डब्बे में आधा महत्वपूर्ण व्यक्ति हेतु हो तथा आधा शारीरिक अक्षम यात्री हेतु हो. इसके तुरंत बाद में महिला डब्बा तथा सामान्य डब्बा हो. यह व्यवस्था हर रेलगाड़ी में हर स्टेशन पर हो तो प्लेटफोर्म पर भीड़ कम होगी. 

१०. महत्वपूर्ण व्यक्तियों के चढ़ने की व्यवस्था मुख्या स्टेशन से न होकर समीपस्थ उपस्टेशन से की जाना भी एक उपाय हो सकता है. 

११. कैंटीन भूतल पर न होकर प्रथम तल पर हो. भूतल पर रेल में बैठे यात्री हेतु सामग्री विक्रेता मात्र हों. विक्रय हेतु उपलब्ध सामग्री के दाम मोटे अक्षरों में अंकित हों, सामग्री का वज़न, निर्माण तिथि तथा उपयोग की अंतिम तिथि भी अंकित हो. 

१२. किनारे के प्लेटफोर्म से बीच के प्लेटफ़ॉर्मों तक जाने के लिए एस्केलेटर या ट्रोली हो.
 
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil' 
 

गुरुवार, 9 अप्रैल 2015

kundaliya: baans -sanjiv

कुण्डलिया
बाँस
संजीव
.
बाँस सदृश दुबले रहें, 'सलिल' न व्यापे रोग
संयम पथ अपनाइए, अधिक न करिए भोग
अधिक न करिए भोग, योग जन सेवा का है
सत्ता पा पथ वरा, वही जो मेवा का है
जनगण सभी निराश, मन ही मन कुढ़ते रहें
नहीं मुटायें आप, बाँस सदृश दुबले रहें
.
राग-द्वेष करता नहीं, चाहे सबकी खैर
काम सभी के आ रहा, बाँस न पाले बैर
बाँस न पाले बैर, न अंतर बढ़ने देना
दे-पाना सम्मान, बाँट-खा चना-चबेना
लाठी होता बाँस, गर्व कभी करता नहीं
'सलिल' निभाता साथ, राग द्वेष करता नहीं
.

harigitika: baans -sanjiv

हरिगीतिका
बाँस
संजीव
.
रहते सदा झुककर जगत में सबल जन श्री राम से
भयभीत रहते दनुज सारे त्रस्त प्रभु के नाम से
कोदंड बनता बाँस प्रभु का तीर भी पैना बने
पतवार बन नौका लगाता पार जब अवसर पड़े
.
बँधना सदा हँस प्रीत में, हँसना सदा तकलीफ में
रखना सदा पग सीध में, चलना सदा पग लीक में
प्रभु! बाँस सा मन हो हरा, हो तीर तो अरि हो डरा
नित रीत कर भी हो भरा, कस लें कसौटी हो खरा  
.

haiku: baans -sanjiv

हाइकु
बाँस
संजीव
.
वंशलोचन
रहे-रखे निरोग
ज़रा मोचन

rola: baans -sanjiv

रोला
बाँस
संजीव
.
हरे-भरे थे बाँस, वनों में अब दुर्लभ हैं
नहीं चैन की साँस, घरों में रही सुलभ है
बाँस हमारे काम, हमेशा ही आते हैं
हम उनको दें काट, आप भी दुःख पाते हैं

soratha: baans -sanjiv

सोरठा
बाँस
संजीव
.
लक्ष्य चूम ले पैर, एक सीध में जो बढ़े
कोई न करता बैर, बाँस अगर हो हाथ में
.
बाँस बने पतवार, फँसे धार में नाव जब
देता है आराम, बखरी में जब खाट हो

doha: baans -sanjiv

बाँस
संजीव
.
दोहा:
महल-भवन पल में गिरा, हँसता है भूचाल
बाँस गिरा पाता नहीं, करती लचक कमाल
.
तीसमारखाँ परेशां, गर चुभ जाए फाँस
हर भव-बाधा पार हो, बने सहारा बाँस
.
.

navgeet : sanjiv

नवगीत:
संजीव
.
बाँस रोपने
बढ़ा कदम
.
अब तक किसने-कितने काटे
ढो ले गये,
नहीं कुछ बाँटें.
चोर-चोर मौसेरे भाई
करें दिखावा
मुस्का डांटें.
बँसवारी में फैला स्यापा
कौन नहीं
जिसका मन काँपा?
कब आएगी
किसकी बारी?
आहुति बने,
लगे अग्यारी.
उषा-सूर्य की
आँखें लाल.
रो-रो
क्षितिज-दिशा बेहाल.
समय न बदले
बेढब चाल.
ठोंक रहा है
स्वारथ ताल.
ताल-तलैये
सूखे हाय
भूखी-प्यासी
मरती गाय.
आँख न होती
फिर भी नम
बाँस रोपने
बढ़ा कदम
.  
करे महकमा नित नीलामी
बँसवट
लावारिस-बेनामी.
अंधा पीसे कुत्ते खायें
मोहन भोग
नहीं गह पायें.
वनवासी के रहे नहीं वन
श्रम कर भी  
किसान क्यों निर्धन?
किसकी कब
जमीन छिन जाए?
विधना भी यह
बता न पाए.
बाँस फूलता
बिना अकाल.
लूटें
अफसर-सेठ कमाल.
राज प्रजा का
लुटते लोग.
कोंपल-कली
मानती सोग.
मौन न रह
अब तो सच बोल
उठा नगाड़ा
पीटो ढोल.
जब तक दम
मत हो बेदम
बाँस रोपने
बढ़ा कदम
*