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रविवार, 12 अगस्त 2012

कृष्ण भजन: हे श्यामसुंदर... --स्व. शांति देवी वर्मा

कृष्ण भजन:
हे श्यामसुंदर...





स्व. शांति देवी  वर्मा

*
हे श्यामसुंदर! हे मनमोहना! चरणों में अपने बुला लेना.

कर नजर दयामय मधुसूदन, मन भावन झलक दिखा देना...
*
नंदलाल मैं तेरी सेवा करूँ, तेरी सांवरी सूरत दिल में धरूँ.

न्योछावर माधुरी मूरत पर, चरणों में शरण सदा देना...
*
नयनों में तेरा ही ध्यान रहे, कानों में गुंजित गान रहे.

मम हृदय में तेरा ही ध्यान रहे, भाव सागर पार करा देना...
*
तुम चक्र सुदर्शनधारी हो, गिरधारी हो बनवारी हो.

गोपाल, कृष्ण, कान्हा, नटवर, मुरली की तान सुना देना...
*
भारत में फिर प्रभु आ जाओ, गीता का ज्ञान करा जाओ.

माया से मुक्ति दिल जाओ, सुख-'शांति' अमिय बरसा देना...
***
Acharya Sanjiv verma 'Salil'

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HAVOC IN PHILIPPINES

    


THE CHAIN OF RAINS IS UNSTOPPABLE :

HAVOC IN PHILIPPINES

RAINS ARE PLAYING HAVOC IN PHILIPPINES. 

I HAVE VERY NEAR AND DEAR FRIENDS THERE, 

BUT HAVE NO HEART TO SYMPATHTHISE WITH 

THEM BY MERE WORDS. 

IT IS LIKELY TO HURT THEM MORE RATHER THAN GIVING SOLACE, BECAUSE MERE 

WORDS CAUSE MORE PAIN WHEN THERE IS NO 

BALM TO APPLY TO THE WOUNDS. 

IN MY LIFE I HAVE FACE BOTH FLOODS AND 

DROUGHTS -- BOTH DUE TO RAINS -- AND I

CAN VISUALISE VERY WELL WHAT THEY MUST

 BE GOING THROUGH. 

ONE FRIEND, ON THE OTHER DAY, INFORMED 

ME THAT SHE IS ALONE IN THE HOUSE 

AND JUST WATCHING THE RISING  WATER

APPROACHING HER HOME.

WISH I COULD BE THERE AND CAPABLE OF 

FACING WHAT SHE WAS FEELING AND 

FACING. 

PLEASE JOIN YOUR PHILIPPINO Friends WITH 

YOUR HEART AND SOUL AND FIND THE  

WAYS  HOW CAN  WE BE OF SOME USE TO 

THEM IN THESE DAYS OF DARK CALAMITY.  

 
         I AM GUILTY OF PROVING INCAPABLE OF 

PROVIDING HELP AND COMFORT TO MY VERY 

DEAR PHILIPPINO FRIENDS. 

HOPE THEY WILL FORGIVE ME FOR NOT 

BEING OF ANY USE TO THEM WHEN THEY 

NEEDED AND EXPECTED THE MINIMUM TO MAXIMUM FROM US.





 

*********

Acharya Sanjiv verma 'Salil'

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RED Head Paul x



RED Head  
Paul x
*

           The sale of at home red dye kits has gone up seventeen percent since the year two thousand hit. Professor Jonathan Rees conducted a study of redheads at Edinburgh University. He identified the”gene for red hair” the melanocortin 1 receptor (MC1R), found on the 16th chromosome. He found that this single gene was responsible for red hair. Red hair is a genetic mutation. 
Photobucket           Thought it would be cool to talk redhead with you so heres a few items you may - or may not - find interesting.... Red hair is seen on the heads of only four percent of people. Most of these exist in the U.K., the Republic of Ireland, and Australia. The highest percentage of natural redheads in the world is in Scotland (13%), followed closely by Ireland with 10%. In the US, just under 2% of the population are natural redheads. 

           The color Green tempers red. Look at a color chart. This is why redheads are taught as children to wear lots of green. As if red hair is a shameful state of being. In the early 1600’s, at the end of the reign of Queen Elizabeth I, the belief of Pixies (aka fairies) emerged in southwest England. They were then and have since been strongly associated with red hair for their mischievousness and otherworldly talents.

           A 2002 study found that redhead are harder to sedate than any other people requiring twenty percent more anesthesia. Inadequate doses cause people to wake up during surgery and have increased recall of procedures. Sixty percent of women who dye their hair do so at home. Of them twenty six percent choose to go blonde, twenty seven percent go basic brunette, and thirty percent choose to become redheads. 


           The Feminist icon of Lilith, the first wife of Adam who insisted on sexual equality is that of a redhead so in reality the first woman in creation, Lilith, had your striking genetic endowment and was a redhead Bones ! Kinda cool don’t you think……

THOUGHT OF THE DAY:

आज का विचार THOUGHT OF THE DAY:

क्या आप सहमत हैं?...



बेटी को अवसर दो एक, जीतेगी वह दुनिया को.
मत कमजोर समझना तुम, अपनी नन्हीं मुनिया को.

अंतरिक्ष में जायेगी, स्वर्ण पदक भी लायेगी.
स्नेह-सुरक्षा दो जी भर, खुशियों की इस पुडिया को.

बेटे से कम मत मानो, अंत समय में दे कंधा.
रमा-शक्ति-शारद मानो, अपनी कोमल गुड़िया को.

Acharya Sanjiv verma 'Salil'

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THOUGHT OF THE DAY

पाती प्रभु के नाम : संजीव 'सलिल'

पाती प्रभु के नाम : 

 

संजीव 'सलिल'

जन्म-जन्म जन्माष्टमी, मना सकूँ हे नाथ.

कृष्ण भक्त को नमन कर, मैं हो सकूँ सनाथ.

वृन्दावन की रेणु पा, हो पाऊँ मैं धन्य.

वेणु बना लो तो नहीं मुझ सा कोई अन्य.

जो जन तेरा नाम ले, उसको करे प्रणाम.

चाकर तेरा है 'सलिल', रसिक शिरोमणि श्याम..

शनिवार, 11 अगस्त 2012

कृष्ण भजन: श्याम सुंदर नन्दलाल स्व. श्रीमती शान्ति देवी वर्मा

कृष्ण भजन:

श्याम सुंदर नन्दलाल


स्व. श्रीमती शान्ति देवी वर्मा







वरिष्ठ कवयित्री व लेखिका श्रीमती शान्ति देवी वर्मा बापू के नेतृत्व में स्वतंत्रता सत्याग्रही बनने के लिए ऑनरेरी मजिस्ट्रेट पद से त्यागपत्र देकर विदेशी वस्त्रों की होली जलानेवाले रायबहादुर माताप्रसाद सिन्हा 'रईस' मैनपुरी उत्तर प्रदेश की ज्येष्ठ पुत्री थीं.  उनका विवाह जबलपुर मध्य प्रदेश के स्वतंत्रता सत्याग्रही स्व. ज्वालाप्रसाद वर्मा के छोटे भाई श्री राजबहादुर वर्मा (अब स्व.) सेवानिवृत्त जेल अधीक्षक से हुआ था. उन्होंने अवधी, भोजपुरी मायके से तथा बुन्देली, खड़ी बोली ससुराल से ग्रहण की तथा अपने आस्तिक संस्कारशील स्वभाववश भगवद भजन रचे. वे मानस मंडली में मानस पाठ के समय  प्रसंगानुकूल भजन रचकर गया करती थीं. ससुराल में कन्याओं के उच्च अध्ययन की प्रथा न होने पर भी उन्होंने अपनी चारों पुत्रियों को उच्च शिक्षा दिलाकर शिक्षण कर्म में प्रवृत्त कराया तथा सेवाकर्मी पुत्र वधुओं का चयन किया. साहित्यिक संस्था 'अभियान' जबलपुर के माध्यम से रचनाकारों हेतु दिव्य नर्मदा अलंकरण, दिव्य नर्मदा पत्रिका तथा समन्वय प्रकाशन की स्थापना कर संस्कारधानी जबलपुर  की साहित्यिक चेतना को गति देने में उन्होंने महती भूमिका निभायी। अपने पुत्र संजीव वर्मा 'सलिल', पुत्री आशा वर्मा तथा पुत्रवधू डॉ. साधना वर्मा को साहित्यिक रचनाकर्म तथा समाज व पर्यावरण सुधार के कार्यक्रमों के माध्यम से सतत देश व समाज के प्रति समर्पित रहने की प्रेरणा उन्होंने दी।

स्व. शांति देवी वर्मा
*
श्याम सुंदर नन्दलाल, अब दरस दिखाइए।

तरस रहे प्राण, इन्हें और न तरसाइए।


त्याग गोकुल वृन्द मथुरा, द्वारिका जा के बसे।

सुध बिसारी काहे हमरी, ऊधो जी बतलाइये।


ज्ञान-ध्यान हम न जानें, नेह के नाते को मानें।

गोपियाँ सारी दुखारी, बांसुरी बजाइए।


टेरती यमुना की लहरें, फूले ना कदंब टेरे।

खो गए गोपाल कहाँ?, दधि-मखन चुराइए।


तन में जब तक शक्ति रहे, मन उन्हीं की भक्ति करे।


जा के ऊधो सांवरे को, हाल सब बताइए।


दूर भी रहें तो नन्द- लाल न बिसराइये।

'शान्ति' है अशांत, दरश दे सुखी बनाइये।

***************

Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
salil.sanjiv@gmail.com
0761- 2411131 / 09425183244

चित्र पर कविता: ५

चित्र पर कविता: ५

इस स्तम्भ की अभूतपूर्व सफलता के लिये आप सबको बहुत-बहुत बधाई. एक से बढ़कर एक रचनाएँ चित्र में अन्तर्निहित भाव सौन्दर्य को हम तक तक पहुँचाने में सफल रहीं

चित्र और कविता की प्रथम कड़ी में शेर-शेरनी संवाद, कड़ी २ में, कड़ी ३ में दिल -दौलत, चित्र ४ में रमणीक प्राकृतिक दृश्य के पश्चात चित्र ५ में देखिये एक अद्भुत छवि और रच दीजिये ऐसी ही अनमोल कविता. काव्य रचनाएँ divynarmada@gmail.com पर भेजें।
 

1 . शिशिर साराभाई  

मेरी मुनिया, मेरी चुनिया , माँ ने  दिया तुझे   डांट
तू   रह   मेरे  पास ,  खूब  मिलेगा   तुझको  प्यार 
जी  भर   खेलेगें , करेगे    जंगल    में   दौड   भाग .....
मेरी मुनिया, मेरी चुनिया ,सदा रहना  मेरे  पास  !
----------------------------------
shishirsarabhai@yahoo.com
 ************************ 

2. इंदिरा प्रताप  

निरख – निरख सुख पा रही , दे कर प्यार दुलार |
प्रेम – बीज का सार तो , प्रेम करो  नि : स्वार्थ |
देख – देख यह दृश्य तो , मनवा करे पुकार |
ईश्वर तुम तो धन्य हो , रचकर यह संसार | 
-----------------------
pindira77@yahoo.co.in
********************
3. संजीव 'सलिल'

आ जा रे मेरे मनमोहन! तेरी सार सम्हाल करूँ।
मटकी फोड़े, वसन उठाए, फिर भी प्यार दुलार करूँ।
दुष्ट ग्वालिनें लांछित करतीं, तू मत उनकी चिंता कर-
खूब चुराए माखन-मिसरी, लेकिन तुझको प्यार करूँ।
ज्ञात मुझे है तू ही सबकी नैया पार लगायेगा।
चीखेंगे सब लेकिन तू रह मौन मंद मुस्कायेगा।
त्रेता का द्वारिकाधीश या, कलियुग का दिल्लीपति हो-
समय तुझे रणछोड़, धूर्त, कपटी, छलिया बतलायेगा।
ममता की माया अद्भुत है, इसे न कोई पड़ता फर्क।
जग की नैया पार लगाये या फिर कर दे बेड़ा गर्क?
तर्क वितर्क कुतर्क न जाने, इसे ज्ञात केवल सच एक-
जो विरोध में हो उसको यह  येन-केन भेजेगी नर्क।
लाल कृष्ण या बाल कृष्ण को मनमोहन पीछे दे छोड़।
रुदन-शोर कर लाख जतन ले, चुप्पी से ले सके न होड़।
अनशन धरना करना-मरना, तुम्हें मुबारक हो यह राह-
मनमोहन सत्ता रथ को, जब जैसा चाहे लेता मोड़।
जनमत जसुदा हो या सोनिया, मैया का देता है साथ।
शक्ति-शारदा या लक्ष्मी को, नवा रहा युग-युग से माथ 
सुषमा की करता सराहना किन्तु न सौंपे घर का भार-
ममता, लाड, स्नेह का रहता मनमोहन के सर पर हाथ।
*** 
4. संजीव 'सलिल'

कसम तुम्हें, आवाज़ न देना...
*
सदय हुए हैं आज विधाता
मैं कर लूँ पूरा अरमान.
ममता मुझे लुटा लेने दो
मैंने पायी है संतान.
मैं माँ मुझको रंग, धर्म या
नस्ल, देश से क्या लेना?
कसम तुम्हें, आवाज़ न देना...
*
उमा कहो या रमा
क्षमा करना ही मेरा धर्म रहा.
अपनेपन का मर्म बताना
शिशु को मेरा कर्म रहा.
फल की चिंता तनिक करूँ क्यों
फल से मुझको क्या लेना?
कसम तुम्हें, आवाज़ न देना...
*
मेरी तेरी इसकी उसकी
मत कह, माँ केवल माँ है.
कैसा भी हो और किसी का
हर शिशु में माँ की जां है.
ममता की नदिया में
नातों की नौका मुझको खेना
कसम तुम्हें, आवाज़ न देना...
*
 

5. प्रणव भारती

   ये माँ का शिशु का प्यार 
    नहीं इसमें कोई दीवार 
    न कोई जात -रंग का भेद
    ये  है प्यार भरा अधिकार
     कोई हो रंग,कोई भ़ी नाम 
     कोई भ़ी हो चाहे परिणाम 
     ये ममता है ,न छोड़े साथ
     यही है माँ की गरिमा भ्रात 
     ये ममता जीवन की है ज्योत
      बहाती ममता के सब स्रोत 
      नमन इसको है बारंबार 
      यही  तो माता का शृंगार |
 
************
    
          




शुक्रवार, 10 अगस्त 2012

बधाई गीत: सूरज ढोल बजाये... संजीव 'सलिल'

बधाई गीत:
सूरज ढोल बजाये...
संजीव 'सलिल'
*


सूरज ढोल बजाये,
उषा ने गाई बधाई...
*
मैना लोरी मधुर सुनाये,
तोता पढ़े चौपाई, उषा ने गाई बधाई...
*
गौरैया उड़ खाय कुलाटी,
कोयल ने ठुमरी सुनाई, उषा ने गाई बधाई...
*
कान्हा पौढ़े झूलें पालना,
कपिला ने टेर लगाई, उषा ने गाई बधाई...
*
नन्द बबा मन में मुसकावें,
जसुदा ने चादर उढ़ाई, उषा ने गाई बधाई...
*
गोप-गोपियाँ भेंटन आये,
शोभा कही न जाई, उषा ने गाई बधाई...
*
भोले आये, लाल देखने,
मैया ने कर दी मनाई, उषा ने गाई बधाई...
*
लल्ला रोया, मैया चुपायें,
भोले ने बात बनाई, उषा ने गाई बधाई...
*
ले आ मैया नजर उतारूँ,
बडभागिनी है माई, उषा ने गाई बधाई...
*
कंठ लगे किलकारी मारें,
हरि हर, विधि चकराई, उषा ने गाई बधाई...
*

अनुपम छवि बनवारी की।..

श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष उपहार::

 अनुपम छवि बनवारी की।..
 
 




  

बुधवार, 8 अगस्त 2012

गीत : प्रीतिमय संसार... संजीव 'सलिल'

गीत :

प्रीतिमय संसार...

संजीव 'सलिल'
*

प्रीतिमय श्वासें सुगन्धित, प्रीतिमय आसें तरंगित.
प्रीतिमय संसार पाकर, 'सलिल' की प्यासें प्रफुल्लित..
*
प्रीति ही है नीति जग की, प्रीति जीवन की धरोहर.
प्रीति बिन संसार वीरां, प्रीतिमय रिश्ते मनोहर..
जनक-जननी, बंधु-भगिनी, प्रिय-प्रिया या सखा-सखियाँ-
प्रीति बिन संबंध सारे, त्याज्य काँटों सम अवंदित...
*
प्रीति कविता गीत दोहा, प्रीति ने बन नृत्य मोहा.
प्रीति के अनुबंध को, प्रतिबन्ध किंचित भी न सोहा..
प्रीति साखी प्रीति बानी, प्रीति ने कब रीत मानी?
बन्धनों से जूझती है, प्रीति युग को कर अचंभित...
*
प्रीति नदिया निर्मला है, प्रीति चपला-चंचला है.
शक्ति-शारद-लक्ष्मी है, प्रीति धवला-मंगला है..
भारती की आरती है, सत्य को मनुहारती है-
प्रीति की प्रतीति वर अद्वैत होती अगरु गंधित...
*
प्रीति कान्हा प्रीति राधा, प्रीति रुक्मिणी प्रीति मीरा.
प्रीति ढोलक, झाँझ, वेणु, प्रीति रोली रंग अबीरा..
प्रीति सीता-राम, हनुमत, शिव-शिवा का एक्य अनुपम-
कंकरों को करे शंकर, प्रीति पल में रह अखंडित...
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'

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चित्र पर कविता: 4 - एस. एन. शर्मा 'कमल' , संजीव 'सलिल'

चित्र पर कविता: 4 

इस स्तम्भ की अभूतपूर्व सफलता के लिये आप सबको बहुत-बहुत बधाई. एक से बढ़कर एक रचनाएँ चित्र में अन्तर्निहित भाव सौन्दर्य को हम तक तक पहुँचाने में सफल रहीं. 

चित्र और कविता की प्रथम कड़ी में शेर-शेरनी संवाद, कड़ी २ में,
कड़ी ३ में दिल -दौलत,  तराजू  पर आपकी कलम के जौहर देखने के बाद सबके समक्ष प्रस्तुत है  कड़ी 4  का चित्र. 

इस प्राकृतिक छटा में डूबकर अपने मनोभावों को शब्दों के पंख लगाइए और रचना-पाखी को हम तक पहुंचाइये: 




- एस. एन. शर्मा 'कमल'

चित्र का  भाव और सन्देश  / तृप्त होते नयनों से देख 
 कल्पना में उभरे जो बिम्ब / उसी का प्रस्तुत रचना-वेष

*

      प्रकृति का यह अदभुत सौन्दर्य
     निरख कर लोचन हैं  स्तब्ध
     ताकते विस्मय से यह दृश्य
     हो रही गिरा मूक  निःशब्द
            *
     कि दिनकर के पड़ते प्रतिबिम्ब
     हुई स्फटिक शिला द्युतिमान
     खुले वातायन विटपों बीच
     कर रहे  हरित-द्वीप द्युतिवान
               *
     भरे अंतस में रति का ज्वार
     अघाती नहीं लहर सुकुमार
     पसरती तट पर बारम्बार
     करे सिकता-कण से अभिसार
            *
      प्रकृति का मदिर मनोहर रूप
      बना यह छाया-चित्र अनूप 
      सलिल पर नर्तन करती धूप 
      विधाता की यह कला अचूक
               *
      द्वीप का नैसर्गिक सिंगार
      हरीतिमा का नव वन्य-विहार
      शस्य श्यामल भू का विस्तार
      अलौकिक छवि का पारावार
              *
       सलिल का ऐसा रूप-निखार
       चित्र गतिमान हुआ साकार
       कला का यह अनुपम उपहार
       दे गया मन को तोष  अपार
               *
       रम्य-दृश्यावलि के इस पार
       मुग्ध कवि ऐसी छटा निहार
       प्रकृति में प्राणों का संचार
       नयन से घट में रहा उतार !
       
       **** 

संजीव 'सलिल'





शिशु सूरज की अविकल किरणें
बरस रही हैं जल-थल पर.
सुरपति-धनपति को बेकल कर-
सकल सृष्टि स्वर्णाभित कर..

वृक्षों की डालों में छिपकर
आँखमिचौली रवि खेले.
छिपा नीर में बिम्ब दूसरा,
मन हो बाँहों में ले-लें..

हाथ लगे सूरज हट जाये,
चेहरा अपना आये नजर.
नीर कहे: 'निर्मल रहने दे
मुझ बिन तेरी नहीं गुजर.'

दूब कहे: 'मैं नन्हीं, लेकिन,
माटी मैया की रक्षक.
डूब बाढ़ में मौन बचाती,
खोद रहा मानव भक्षक.

शाखाएँ हिल-मिलकर रहतीं,
झगड़ा कभी न कोई करे.
हक न एक का दूजा छीने,
यह न डराए, वह न डरे..

ताली बजा-बजाकर पत्ते,
करें पवन का अभिनन्दन.
स्वागत करते हर मौसम का-
आओ घूमो नंदन वन..

जंगल में हम देख न पाते,
जंगलीपन है शहरों में.
सुने न प्रकृति का क्रंदन
मानव की गिनती बहरों में..

प्रकृति पुत्र पोषण-सुख भूले,
शोषण कर दुःख पाल रहे.
जला रहे सुख, चैन, अमन को
दिया न स्नेहिल बाल रहे..

बिम्ब और प्रतिबिम्ब गले मिल,
कहते दूरी दूर करो.
लहर-लहर सम सँग रहो सब,
मत घमंड में चूर रहो..

तने रहें गर तने सरीखे,
पत्ते-डाल थाम दें छाँव.
वहम अहं का पाल लड़े तो-
उजड़ जायेंगे पल में गाँव..

*****************************
 

मुकरियाँ या कह-मुकरियाँ -सौरभ पाण्डे

पुस्तक सलिला :
रसरंगिनी : मनसंगिनी 
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' 
*
[पुस्तक विवरण : रसरंगिनी, मुकरी संग्रह, तारकेश्वरी यादव 'सुधि', प्रथम संस्करण, वर्ष २०२०, आकार २१ से. मी. x १४ से. मी., आवरण बहुरंगी पेपरबैक, पृष्ठ ४८, मूल्य ६०रु., राजस्थानी ग्रंथागार प्रकाशन जोधपुर, रचनाकार संपर्क : truyadav44@gmailcom ]
भारतीय लोक साहित्य में आदिकाल से प्रश्नोत्तर शैली में काव्य सृजन की परंपरा अटूट है। नगरों की तुलना में कम शिक्षित और नासमझ समझे जानेवाले ग्रामीण मजदूर-किसानों ने काम की एकरसता और थकान को दूर करने के लिए मौसमी लोकगीत गाने के साथ-साथ एक दूसरे के साथ स्वस्थ्य छेड़-छाड़ कर ते हुए प्रश्नोत्तरी गायन के शैली विकसित की।  इस शैली को समय-समय पर दिग्गज साहित्यकारों ने भी अपनाया। कबीर और खुसरो इस क्षेत्र में सर्वाधिक पुराने कवि हैं जिनकी रचनाएँ प्राप्त हैं। इन दोनों की प्रश्नोत्तरी रचनाएँ अध्यात्म से जुडी हैं। कबीर की रचनाओं में गूढ़ता है तो खुसरों की रचनाओं में रंजकता। कबीर की रचनाएँ साखी हैं तो खुसरो की मुकरी। साखी में सीख देने का भाव है तो मुकरी में कुछ कहना और उससे मुकरने का भाव निहित है। 
कबीर ने कहा - 
चलती चाकी देखकर, दिया कबीरा रोय 
दो पाटन के बीच में, साबित बचो न कोय 
कबीर के पुत्र कमाल ने उत्तर दिया-
चलती चाकी देखकर दिया कमाल ठिठोय 
जो तीली से लग रहा, मार सका नहीं कोय  
ये दोनों दोहे द्विअर्थी हैं। कबीर के दोहे का सामान्य अर्थ है चक्की के दो पाटों के बीच में जो दाना पड़ा वह पिस जायेगा उसे कोई बचा नहीं सकता जबकि गूढ़ार्थ है ब्रह्म और माया के दो पाटों में पीसने से  जीव की रक्षा कोई नहीं कर सकता। कमाल के दोहे का सामान्य अर्थ है की चलती हुई चक्की की कीली (धुरी) से जो दाना चिपक गया वह नहीं पिसा, बच गया। जबकि विशेषार्थ है संसार की चक्की में जो जीव ब्रह्म से प्रेम कर उससे अभिन्न हो गया उसका यम भी बाल-बांका नहीं कर सकता। 
शब्द कोष के अनुसार मुक़री, संज्ञा स्त्रीलिंग शब्द हैं जिसका अर्थ है एक पद्य जिसमें पहले कथन किया जाए फिर उसका खंडन किया जाए। वह कविता जिसमें प्रारंभिक चरणों में कही हुई बात से मुकरकर उसके अंत में भिन्न अभिप्राय व्यक्त किया जाय। यह कविता प्रायः चार चरणों की होती है इसके पहले तीन चरण ऐसे होते हैं; जिनका आशय दो जगह घट सकता है। इनसे प्रत्यक्ष रूप से जिस पदार्थ या व्यक्ति का आशय निकलता है, चौथे चरण में किसी और पदार्थ का नाम लेकर, उससे इनकार कर दिया जाता है । इस प्रकार मानो कही हुई बात से मुकरते हुए कुछ और ही अभिप्राय प्रकट किया जाता है। 
मुकरी लोकप्रचलित पहेलियों का ही एक रूप है, जिसका लक्ष्य मनोरंजन के साथ-साथ बुद्धिचातुरी की परीक्षा लेना होता है। इसमें जो बातें कही जाती हैं, वे द्वयर्थक या श्लिष्ट होती है, पर उन दोनों अर्थों में से जो प्रधान होता है, उससे मुकरकर दूसरे अर्थ को उसी छन्द में स्वीकार किया जाता है, किन्तु यह स्वीकारोक्ति वास्तविक नहीं होती, कही हुई बात से मुकरकर उसकी जगह कोई दूसरी उपयुक्त बात बनाकर कह दी जाती है। जिससे सुननेवाला कुछ का कुछ समझने लगता है। 
प्रश्नोत्तरी काव्य में पहेली भी लोकप्रिय विधा है। पहेली और मुकरी में अन्तर यह है कि पहेली का उत्तर उसके पद्य का अभिन्न भाग नहीं होता, पतंग की पूँछ की तरह अलग से जुड़ा होता है। कबीर की उलटबाँसियों और मुकरी में भी साम्य और वैषम्य दोनों हैं। साम्य यह कि दोनों में पद्य के दो अर्थ होते हैं, वैषम्य यह कि कबीर की उलट बाँसियाँ दर्शन शास्त्रीय मीमांसाओं से सम्बद्ध हैं जबकि मुकरियाँ दैनंदिन जीवन से। 
शिल्प की दृष्टि से देखें तो मुकरी में ४ पंक्तियाँ है जिनमें से तीन सोलह मात्रिक पंक्तियाँ गेयता को निभाती  हैं, चौथी पंक्ति दो भागों में विभक्त होती है, प्रथमार्ध उत्तर देते हुए प्रश्न उपस्थित करता है कि क्या यह ठीक है?, उत्तरार्ध उत्तर का खंडन कर समान लक्षणा अन्य उत्तर देकर अपने कहे से मुकर जाता है। प्रथम दो पंक्तियाँ सम तुकांत होती हैं जबकि तीसरी चौथी पंक्तियाँ भिन्न सम तुकांत में होती हैं।
हिन्दी में अमीर खुसरो ने इस लोककाव्य-रूप को साहित्यिक रूप दिया। अलंकार की दृष्टि से इसे छेकापह्नुति कर सकते हैं, क्योंकि इसमें प्रस्तुत अर्थ को अस्वीकार करके अप्रस्तुत को स्थापित किया जाता है। इसे ‘कह-मुकरी’ अर्थात पहले कहना और फिर मुकर जाना भी कहते हैं। हिन्दी में अमीर खुसरो की मुकरियाँ प्रसिद्ध हैं। खुसरो इसके अंत में प्राय: 'सखी' या 'सखिया' भी कहते हैं । एक जीवंत उदाहरण देखें -
सगरि रैन वह मो संग जागा। 
भोर भई तब बिछुरन लागा।
वाके बिछरत फाटे हिया।                                                                                                               क्यों सखि साजन? ना सखि दिया। 
भारतेन्दु हरिश्चंद्र रचित एक मुकरी का आनंद लें - 
भीतर भीतर सब रस चूसै,                                                                                                            हँसि हँसि कै तन मन धन मूसै।                                                                                                 जाहिर बातन मैं अति तेज,                                                                                                         क्यों सखि सज्जन? नहिं अँगरेज।
भारतेन्दु के बाद नागार्जुन ने भी मुकरियाँ कहीं हैं। इस सदी के आरंभ में मैंने भी कुछ मुकरियाँ कहीं। एक उदाहरण देखें - 
इससे उसको जोड़ मिलाता                                                                                                          झटपट दूरी दूर भगाता                                                                                                                    कोई स्वार्थ न कोई हेतु                                                                                                               क्या सखि साजन, ना सखि सेतु। 
२०११ में प्रकाशित योगराज प्रभाकर रचित एक मुकरी देखें -
इस बिन तो वन उपवन सूना,
सच बोलूँ तो सावन सूना,
सूनी सांझ है सूनी भोर,
ए सखि साजन ? ना सखि मोर ! 
***  

आरती कीजै हनुमान लला की...

आरती कीजै हनुमान लला की...

बिजेथुआ धाम कादीपुर तहसील सुल्तानपुर उत्तर प्रदेश स्थित यह स्थान वही कहा जाता है जहाँ संजीवनी बूटी  लेने जाते समय हनुमान जी ने कालनेमि नामक राक्षस का वध कर  मकरी का उद्धार किया था .



अपना क्या ?.... ॐ प्रकाश बाल्मीकि








 अपना  क्या ?....

ॐ प्रकाश बाल्मीकि 


स्वागत है नव अतिथि तुम्हारा...

स्वागत है नव अतिथि तुम्हारा...




मैथिल पुत्री कुसुम ठाकुर के नव जात प्रपौत्र
 
*
नव किसलय जैसे कोमल हे!, हो आशा अरमान.
तम के ऊपर विजय उजाले की जैसे गतिमान..
नहीं थका इंसां से ईश्वर, दी निर्मल मुस्कान.
रसनिधि हो, रसलीन रहो तुम, हो पाओ रसखान.. 
*

मंगलवार, 7 अगस्त 2012

chintan salila : vijay nikore

chintan salila :

vijay nikore

1. Nobody dies.   ....Every body dies.  ... Swami Chinmayananda.

2. The possibilities are numerous once we decide to act and not react.  ... Geoge Bernard Shaw.

3. I am enough of an artist to draw freely upon my imagination. Imagination is more important than knowledge.    Knowledge is limited. Imagination encircles the world. .... Albert. Einstein

4. Do not lose hold of your dreams or asprirations. For if you do, you may still exist but you have ceased to live.  ...Henry David Thoreau.

5. May you live your life as if the maxim of your actions were to become universal law. ...Immanuel Kant.

6. Beauty is not in the face; beauty is a light in the heart. ...Khalil Gibran.

7. Corruption and hypocrisy ought not to be inevitable products of democracy, as they undoubtedly are today. ...Mahatma Gandhi.

8. Love of beauty is Taste. The creation of beauty is Art. ....Ralph Emerson.

9. There is a society in the deepest solitude. ...Isaac D'Israeli.

10. I've learned that people will forget what you said, people will forget what you did, but people will never forget how you made them feel... Maya Angelou.

श्री राम का यात्रा पथ :

श्री राम का यात्रा पथ :

दोहा सलिला: 'मैं'-'मैं' मिल जब 'हम' हुए... संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
'मैं'-'मैं' मिल जब 'हम' हुए...
संजीव 'सलिल'
*
'मैं'-'मैं' मिल जब 'हम' हुए, 'तुम' जा बैठा दूर.
जो न देख पाया रहा, आँखें रहते सूर..
*
'मैं' में 'तुम' जब हो गया, अपने आप विलीन.
व्याप गयी घर में खुशी, हर पल 'सलिल' नवीन..
*
'तुम' से 'मैं' की गैरियत, है जी का जंजाल.
'सलिल' इसी में खैरियत, 'हम' बन हों खुशहाल..
*
'मैं' ने 'मैं' को कब दिया, याद नहीं उपहार?
'मैं' गुमसुम 'तुम' हो गयी, रूठीं 'सलिल' बहार..
*
'मैं' 'तुम' 'यह' 'वह' प्यार से, भू पर लाते स्वर्ग.
'सलिल' करें तकरार तो, दूर रहे अपवर्ग..
*
'मैं' की आँखों में बसा, 'तू' बनकर मधुमास.
जिस-तिस की क्यों फ़िक्र हो, आया सावन मास..
*
'तू' 'मैं' के दो चक्र पर, गृह-वाहन गतिशील.
'हम' ईधन गति-दिशा दे, बाधा सके न लील..
*
'तू' 'तू' है, 'मैं' 'मैं' रहा, हो न सके जब एक.
तू-तू मैं-मैं न्योत कर, विपदा लाईं अनेक..
*
'मैं' 'तुम' हँस हमदम हुए, ह्रदय हर्ष से चूर.
गाल गुलाबी हो गये, नत नयनों में नूर..
*
'मैं' में 'मैं' का मिलन ही, 'मैं'-तम करे समाप्त.
'हम'-रवि की प्रेमिल किरण, हो घर भर में व्याप्त..
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in



एक कविता मैत्रेयी अनुरूपा

एक कविता
 
मैत्रेयी अनुरूपा
  *
उलझते रहे 
गुत्थियों की तरह
प्रश्न पर प्रश्न
और उन्हीं के उलझाव में
खो गयी ज़िन्दगी
तलशते हुए
अधूरे समीकरण का हल.
हथेलियों की ज्यामिति
सुलझी नहीं
बीजगणित से
और हम व्यर्थ में
गंवाते रहे
औसत और अनुपात के
आँकड़ों में
उलझी हुई अपनी साँसें
हल-जानते हुए भी
स्वीकारा नहीं
और फिर से
उलझ कर रह गये
प्रश्नहीन प्रश्नों में.
  *
<maitreyi_anuroopa@yahoo.com>