सलिल सृजन अगस्त २०
*
मुक्तक
आपकी सद्भावना को नमन शत-शत
समय की संभावना को नमन शत-शत
कौन किस पल विदा होगा, कौन जाने?
मीत! मंगल कामना को नमन शत-शत
***
जन्मदिन की शुभकामनाएँ!! 
आपके जन्मदिवस पर
==============
वन्दनवारों से सजी आज,
वीथी में धूम तुम्हारी है।।
मंगलकारी हो जन्मदिवस,
ऐसी अभिलाष हमारी है।।
दिनरात चौगुनी बढ़ती हो,
सम्मान तुम्हारे साथ चलें।
बरसात खुशी की हो ऐसी,
पथ से दुख भागें हाथ मलें।।
जीवन फूलों सा महक उठे,
सम्पदा विभा से भरी रहे।
सूरज सा दमके मुखमण्डल,
मुस्कान अधर पर धरी रहे।।
अनुराग भावना से पूरित,
गा रहा गीत परिवारी है।
मंगलकारी हो जन्मदिवस,
ऐसी अभिलाष हमारी है।।
हर बार सफलता मिले तुम्हें,
असफलता नाम निशान न हो।
अकलंक कीर्ति फैले जग में,
व्याकुलता रोग थकान न हो।।
पुरखों की कृपा रहे तुम पर,
आशीष बुजुर्गों के बरसें।
वरदान देवता देने को ,
घर परआएँ चलकर हरसें।।
हर युग तुम पर अभिमान करे,
इच्छित जीवन की पारी है।
मंगलकारी हो जन्म दिवस,
ऐसी अभिलाष हमारी है।।
पा आयु विजय आकाश छुओ,
अपने कुल को यश धाम करो।
चन्दा - सूरज हों मगन देख,
गुरुओं का जग में नाम करो।।
आनन्द लुटाती नदी बनो,
खुशियों से भरे किनारे हों।
हो जन्म सार्थक और सफल,
पूरे अरमान तुम्हारे हों ।।
हो उम्र हजारी हृष्ट - पुष्ट ,
कामना "प्राण" की भारी है।
मंगलकारी हो जन्मदिवस,
ऐसी अभिलाष हमारी है।।
गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण"
"वृत्तायन" 957 स्कीम नंबर 51 इन्दौर पिन -452006
9424044284 / 6265196070


२०-८-२०२५
***
जीवेत शरद: शतम् शतम्...
सुदिनं सुदिनं जन्मदिनम्,
भवतु मंगलम् विजयीभव सर्वदा,जन्मदिनस्य हार्दिक शुभेच्छा:
रुपवान्वित्तवांश्चैव श्रिया युक्तश्च सर्वदा ! १ !
मार्कण्डेय नमस्तेस्तु सप्तकल्पान्तजीवन !
आयुआरोग्यसिध्द्यर्थं प्रसीद भगवन्मुने ! २ !
चिरंजीवी यथा त्वं तु मुनिनां प्रवरो द्विज !
कुरुष्व मुनीशार्दुल तथा मां चिरजीविनम ! ३ !
मार्कण्डेय महाभाग सप्तकल्पान्तजीवन !
आयुआरोग्यसिध्द्यर्थं अस्माकं वरदो भव ! ४ !
जय देवि जगन्मातर्जगदानन्दकारिणि !
प्रसीद मम कल्याणि नमस्ते षष्ठीदेवते !५!
त्रैलोक्ये यानि भूतानि स्थावराणि चराणि च !
ब्रह्माविष्णुशिवै:सार्थं रक्षां कुर्वन्तु तानि मे ! ६ !
***
हर दिन नया जन्म होता है, हर दिन आँख मूँदते हैं हम
साथ समय के जब तक चलते तब तक ही मंजिल वरते हम
सुख-दुःख धूप-छाँव सहयात्री, जब जो पाओ वह स्वीकारें-
साथ न कुछ आता-जाता है, जो छूटे उसका हो क्यों गम??
आपका आभार शत शत।
स्नेह पाकर शीश है नत।।
२०-८-२०२१
***
गीत -
*
कब-कब कितने जन्म हुए हैं
मरण हुए कब, कौन बताये?
बिसरा कर सारे सवाल हम
गीतों से मिलकर जी पाये
*
सूर्य उगा, गौरैया चहकी
बादल बरसे, बगिया महकी
खोया-पाया मिथ्या माया
भू की गोदी नभ की छाया
पिता न माता साथ रह गए
भाई-बहिन निज मार्ग पा गए
अर्धांगिनी सर्वांगिनी लेकिन
सच कह मुश्किल कौन बढ़ाये?
बिसरा कर सारे सवाल हम
गीतों से मिलकर जी पाये
*
घर-घर में चूल्हे माटी के
रीति-रिवाजों, परिपाटी के
बेटा बनकर बाप बाप का
जूता पहने एक नाप का
संबंधों की खाली गठरी
श्वास-आस अब तो मत ठग री!
छंद न जिनसे सध पाया वे
छंदहीनता मुकुट सजाये
बिसरा कर सारे सवाल हम
गीतों से मिलकर जी पाये
*
आभासी दुनिया भरमाये
दूर-निकट को एक बनाये
दो दिखता वह सत्य न होता
सत्य न दिखता, खोज थकाये
कथ्य भाव रस लय गति-यति पा
धन्य जन्म शारद से मति पा
चित्र गुप्त प्रभु, झलक दिखा दो
जब चाहो तब निकट बुला लो
राह तकें कब मिले बुलावा
चरण-शरण पा, भव तर पाये
बिसरा कर सारे सवाल हम
गीतों से मिलकर जी पाये
***
रज ने भेजी है वसुधा को पाती,
संदेसा लाई है धूप गुनगुनाती...
आदम को समझा इंसान बन सके
किसी नैन में बसे मधु गान बन सके
हाथ में ले हाथ
सुबह सुना दे प्रभाती..!!
***
मुक्तक
भावभरी शुभकामना, नर्मद नेह पुनीत
सलिल तृप्त संजीव हो, है आभारी मीत
स्नेह समीर प्रवह करे, तन-मन को संप्राण
जीवन को जीवन मिले, हो संकट से त्राण
*
जो हुआ अच्छा हुआ होता रहे
मित्रता की फसल दिल बोता रहे
लाद कर गंभीरता नाहक जिए
मुस्कराहट में थकन खोता रहे
*
कभी तो कोई हमें भी 'मिस' करे
स्वप्न में अपने हमें कोई धरे
यह न हो इस्लाह माँगे और फिर
कर नमस्ते दूर से ही वह फिरे
२०-८-२०२०
***
नवगीत
*
खूँटे से बँध
हम विचार-पशु
लात चलाते
सींग मारते।
*
पगुराते हैं
डकराते हैं
बिना बात ही
टकराते हैं
संप्रभुओं प्रति
शीश झुकाते
सत्य कब्र में
रोज गाड़ते
*
पल-पल लिखते
नर अतीत हैं
लिखें गद्य, अड़
कहे गीत हैं
सत्य-ग्रंथ को
चीर-फाड़ते
२०-८-२०१९
ए १/२५ श्रीधाम एक्सप्रेस
***
मुक्तक
जो हुआ अच्छा हुआ होता रहे
मित्रता की फसल दिल बोता रहे
लाद कर गंभीरता नाहक जिए
मुस्कराहट में थकन खोता रहे
*
कभी तो कोई हमें भी 'मिस' करे
स्वप्न में अपने हमें कोई धरे
यह न हो इस्लाह माँगे और फिर
कर नमस्ते दूर से ही वह फिरे
गीत-
*
कब-कब कितने जन्म हुए हैं
मरण हुए कब, कौन बताये?
बिसरा कर सारे सवाल हम
गीतों से मिलकर जी पाये
*
सूर्य उगा, गौरैया चहकी
बादल बरसे, बगिया महकी
खोया-पाया मिथ्या माया
भू की गोदी नभ की छाया
पिता न माता साथ रह गए
भाई-बहिन निज मार्ग पा गए
अर्धांगिनी सर्वांगिनी लेकिन
सच कह मुश्किल कौन बढ़ाये?
बिसरा कर सारे सवाल हम
गीतों से मिलकर जी पाये
*
घर-घर में चूल्हे माटी के
रीति-रिवाजों, परिपाटी के
बेटा बनकर बाप बाप का
जूता पहने एक नाप का
संबंधों की खाली गठरी
श्वास-आस अब तो मत ठग री!
छंद न जिनसे सध पाया वे
छंदहीनता मुकुट सजाये
बिसरा कर सारे सवाल हम
गीतों से मिलकर जी पाये
*
आभासी दुनिया भरमाये
दूर-निकट को एक बनाये
दो दिखता वह सत्य न होता
सत्य न दिखता, खोज थकाये
कथ्य भाव रस लय गति-यति पा
धन्य जन्म शारद से मति पा
चित्र गुप्त प्रभु, झलक दिखा दो
जब चाहो तब निकट बुला लो
राह तकें कब मिले बुलावा
चरण-शरण पा, भव तर पाये
बिसरा कर सारे सवाल हम
गीतों से मिलकर जी पाये
२०-८-२०१६
***
एक रचना :
मानव और लहर
*
लहरें आतीं लेकर ममता,
मानव करता मोह
क्षुब्ध लौट जाती झट तट से,
डुबा करें विद्रोह
*
मानव मन ही मन में माने,
खुद को सबका भूप
लहर बने दर्पण कह देती,
भिक्षुक! लख निज रूप
*
मानव लहर-लहर को करता,
छूकर सिर्फ मलीन
लहर मलिनता मिटा बजाती
कलकल-ध्वनि की बीन
*
मानव संचय करे, लहर ने
नहीं जोड़ना जाना
मानव देता गँवा, लहर ने
सीखा नहीं गँवाना
*
मानव बहुत सयाना कौआ
छीन-झपट में ख्यात
लहर लुटती खुद को हँसकर
माने पाँत न जात
*
मानव डूबे या उतराये
रहता खाली हाथ
लहर किनारे-पार लगाती
उठा-गिराकर माथ
*
मानव घाट-बाट पर पण्डे-
झंडे रखता खूब
लहर बहांती पल में लेकिन
बच जाती है दूब
*
'नानक नन्हे यूँ रहो'
मानव कह, जा भूल
लहर कहे चन्दन सम धर ले
मातृभूमि की धूल
*
'माटी कहे कुम्हार से'
मनुज भुलाये सत्य
अनहद नाद करे लहर
मिथ्या जगत अनित्य
*
';कर्म प्रधान बिस्व' कहता
पर बिसराता है मर्म
मानव, लहर न भूले पल भर
करे निरंतर कर्म
*
'हुईहै वही जो राम' कह रहा
खुद को कर्ता मान
मानव, लहर न तनिक कर रही
है मन में अभिमान
*
'कर्म करो फल की चिंता तज'
कहता मनुज सदैव
लेकिन फल की आस न तजता
त्यागे लहर कुटैव
*
'पानी केरा बुदबुदा'
कह लेता धन जोड़
मानव, छीने लहर तो
डूबे, सके न छोड़
*
आतीं-जातीं हो निर्मोही,
सम कह मिलन-विछोह
लहर, न मानव बिछुड़े हँसकर
पाले विभ्रम -विमोह
२०.८.२०१५
***
पंकज के शत दलों का, देव साथ दें साथ.
ज्ञान-परिश्रम-प्रेम के, तीन वेद हों हाथ..
गीत:
आपकी सद्भावना में...
*
आपकी सद्भावना में कमल की परिमल मिली.
हृदय-कलिका नवल ऊष्मा पा पुलककर फिर खिली.....
*
उषा की ले लालिमा रवि-किरण आई है अनूप.
चीर मेघों को गगन पर है प्रतिष्टित दैव भूप..
दुपहरी के प्रयासों का करे वन्दन स्वेद-बूँद-
साँझ की झिलमिल लरजती, रूप धरता जब अरूप..
ज्योत्सना की रश्मियों पर मुग्ध रजनी मनचली.
हृदय-कलिका नवल आशा पा पुलककर फिर खिली.....
*
है अमित विस्तार श्री का, अजित है शुभकामना.
अपरिमित है स्नेह की पुष्पा-परिष्कृत भावना..
परे तन के अरे! मन ने विजन में रचना रची-
है विदेहित देह विस्मित अक्षरी कर साधना.
अर्चना भी, वंदना भी, प्रार्थना सोनल फली.
हृदय-कलिका नवल ऊष्मा पा पुलककर फिर खिली.....
*
मौन मन्वन्तर हुआ है, मुखरता तुहिना हुई.
निखरता है शौर्य-अर्णव, प्रखरता पद्मा कुई..
बिखरता है 'सलिल' पग धो मलिनता को विमल कर-
शिखरता का बन गयी आधार सुषमा अनछुई..
भारती की आरती करनी हुई सार्थक भली.
हृदय-कलिका नवल ऊष्मा पा पुलककर फिर खिली.....
२०-८-२०१०
***
प्रीतम सबका एक जो, सबसे करता प्रीत.
ध्यान उसी का करें हम, गायें उसी के गीत.
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