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शनिवार, 23 अगस्त 2025

लंका में रामायण कालीन स्थल


लंका में रामायण कालीन स्थल 
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रामायण काल में वर्तमान श्रीलंका को लंका कहा जाता था। यह द्वीप रावण के राज्य की राजधानी थी। रामायण में, लंका को एक शक्तिशाली और समृद्ध राज्य के रूप में वर्णित किया गया है जहाँ स्वर्ण का प्राचुर्य था। लंका एक शक्तिशाली राजा रावण द्वारा शासित था। सिंहली में केवल "रामकथा" पर कोई महत्वपूर्ण स्वतंत्र कृति मेरी जानकारी में नहीं है तथापि श्रीलंकाई संस्कृति पर रामायण और भगवान राम का गहरा प्रभाव है। श्री लंका के पर्वतीय क्षेत्र में कोहंवा देवता लोक पूज्य रहे हैं। इसे साहित्य, धर्म और स्थानीय किंवदंतियों में देखा जा सकता है। सिंहली साहित्य में कुछ प्राचीन संदर्भ राम के विरुद्ध होते हुए भी १४ वीं शताब्दी के बाद सकारात्मक संदर्भ देखे जा सकते हैं। रावण को राम के आराध्य शिव के भक्त के रूप में चित्रित किया जाना एक ऐसा ही संदर्भ है। रामायण काल में रावण की राजधानी वर्तमान 'सिंहल' (सीलोन) या लंका द्वीप में मानी जाती है।

भारत और लंका के बीच के समुद्र पर पुल बनाकर श्रीरामचंद्र अपनी सेना को लंका ले गए थे। वाल्मीकि रामायण के अनुसार, भारत के दक्षिणतम भाग में स्थित महेन्द्र नामक पर्वत से कूदकर श्रीराम के परम भक्त हनुमान समुद्र पार लंका पहुंचे थे। रामचंद्रजी की सेना ने लंका में पहुँचकर समुद्र तट के निकट सुवेल पर्वत पर पहला शिविर बनाया था। लंका और भारत के बीच के उथले समुद्र में जो जलमग्न पर्वत श्रेणी है, उसके एक भाग को वाल्मीकि रामायण तथा तुलसीकृत रामचरित मानस में मैनाक कहा गया है। लंका 'त्रिकूट' नामक पर्वत पर स्थित थी। यह नगरी अपने ऐश्वर्य और वैभव की पराकाष्ठा के कारण स्वर्ण-मयी कही जाती थी। वाल्मीकि ने अरण्यकाण्ड ५५,७-९ और सुन्दरकाण्ड २, ४८-५० में सुंदरलंका का मनोरम वर्णन किया है-

'प्रदोष्काले हनुमानंस्तूर्णमुत्पत्य वीर्यवान्,
प्रविवेश पुरीं रम्यां प्रविभक्तां महापथाम्,
प्रासादमालां वितता स्तभैः काचनसनिभैः,
शातकुभनिभैर्जालैर्गधर्वनगरोपमाम्,
सप्तभौमाष्टभौमैश्च स ददर्श महापुरीम्;
स्थलैः स्फटिकसंकीर्णः कार्तस्वरांविभूषितैः,
तैस्ते शुशभिरेतानि भवान्यत्र रक्षसाम्।'

वाल्मीकि रामायण, सुन्दरकाण्ड ३ में इस रम्यनगरी का मनोहर वर्णन इस प्रकार है-
'शारदाम्बुधरप्रख्यैभंवनैरुपशोभिताम्,
सागरोपम निर्घोषां सागरानिलसेविताम्।
सुपुष्टबलसंपुष्टां यथैव विटपावतीम्
चारुतोरणनिर्यूहां पांडूरद्वारतोणाम्।
भुजगाचरितां गुप्तां शुभां भोगवतीमिव,
तां सविद्यद्घनाकीर्णा ज्योतिर्गणनिषेदिताम्।
चंडमारुतनिर्हृआदां यथा चाप्यमरावतीम्
शातकुंभेन महता प्राकारेणभिसंवृताम्
किंकणीजालघोषाभि: पताकाभिरंलंकृताम्,
आसाद्य सहसा हृष्ट: प्राकारमभिपेदिवान्।
वैदूर्यकृतसोपानै:, स्फटिक मुक्ताभिर्मणिकुट्टिमभूषितै:
तप्तहाटक निर्यूहै: राजतामलपांडूरै:,
वैदूर्यकृतसोपानै: स्फटिकान्तरपांसुभि:,
चारुसंजवनोपेतै: खमिवोत्पतितै: शुभै:,
क्रौंचबर्हिणसंघुष्टैरजिहंसनिषेवितै:,
तूर्याभरणनिर्घोर्वै: सर्वत: परिनादिताम्।
वस्वोकसारप्रतिमां समीक्ष्य नगरी तत:,
खमिवोत्पतितां लंकां जहर्ष हनुमान् कपि:।
'सुन्दरकाण्ड३, २-१२

हनुमान ने सीता जीसे अशोक वाटिका में भेंट करने के उपरान्त लंका का एक भाग जलाकर भस्म कर दिया था। सुन्दरकाण्ड ५४, ८-९ और सुन्दरकाण्ड १४ में लंका के अनेक कृत्रिम वनों एवं तड़ागों का वर्णन है। श्री राम ने रावण के वधोपरान्त लंका का राज्य विभीषण को दे दिया था। बौद्धकालीन लंका का इतिहास 'महावंश' तथा 'दीपवंश' नामक पाली ग्रंथो में प्राप्त होता है। अशोक के पुत्र महेंद्र तथा पुत्री संघमित्रा ने सर्वप्रथम लंका में बौद्ध मत का प्रचार किया था।

आधुनिक श्रीलंका का ही प्राचीन बौद्धकालीन नाम सिंहल था। पाली में लिखे प्राचीन बौद्ध ग्रंथ महावंश में उल्लिखित जनश्रुतियों के अनुसार लंका के प्रथम भारतीय नरेश की उत्पत्ति सिंह से होने के कारण इस देश को सिंहल कहा जाता था। सिंहल के बौद्धकालीन इतिहास का विस्तार से वर्णन महवंश में है। इस ग्रंथ में वर्णित है कि मौर्य सम्राट् अशोक के पुत्र महेंद्र और संघमित्रा ने सिंहद्वीप पहुँचकर वहाँ प्रथम बार बौद्ध मत का प्रचार किया था। गुप्तकाल में समुद्रगुप्त के साम्राज्य की सीमा सिंहल द्वीप तक मानी जाती थी। हरिषेण रचित समुद्रगुप्त की प्रयागप्रशस्ति में सैंहलकों का गुप्त सम्राट् के लिए भेंट उपहार आदि लेकर उपस्थित होने का वर्णन आया है-- 'देवपुत्रषाहीषाहनुषाहि-शकमुरुंडै:सैंहलकादिभिश्च'.

बौद्धगया से प्राप्त एक अभिलेख से यह भी सूचित होता है कि समुद्रगुप्त के शासनकाल में सिंहल नरेश मेघवर्णन द्वारा इस पुण्यस्थान पर एक विहार बनवाया था।

मध्यकाल की अनेक लोक कथाओं में सिंहल का उल्लेख है। हिंदी के महाकवि मलिक मोहम्मद जायसी रचित पद्मावत में सिंहल की राजकुमारी पद्मावती की प्रसिद्ध कहानी वर्णित है। लोककथाओं में सिंहल देश को धन-धान्यपूर्ण रत्न-प्रसविनी भूमि माना गया है। यहाँ की सुंदरी राजकुमारी से विवाह करने के लिए भारत के अनेक नरेश इच्छुक रहते थे। सिलोन सिंहल का ही अंग्रेजी रूपांतर है। लंका के अतिरिक्त सिंहल के पार समुद्र, ताम्रद्वीप, ताम्रपर्णी तथा धर्मद्वीप आदि नाम भी बौद्ध साहित्य में प्राप्त होते हैं। कौटिल्य-अर्थशास्त्र (अध्याय-११) में पारसमुद्र को लंका कहा गया है। वाल्मीकि रामायण ६,३,२१ में 'पारेसमुद्रस्य' कहकर लंका की स्थिति का वर्णन है। पेरिप्लस में इससे पालीसिमंदु (Palaesimundu) कहा गया है।

महाभारत (II.३२.१२)[१२], (II.4४८.३०)[१३], (III.४८.१९)[१४] सिंहली जनजाति को संदर्भित करता है।

सिंहली साम्राज्य या सिंहली साम्राज्य एक या सभी क्रमिक सिंहली साम्राज्यों को संदर्भित करता है जो आज श्रीलंका में मौजूद हैं।

द्रविडाः सिंहलाश चैव राजा काश्मीरकस तदा,
कुन्तिभॊजॊ महातेजाः सुह्मश च सुमहाबलः (II.३१.१२)

समुद्रसारं वैडूर्यं मुक्ताः शङ्खांस तदैव च,
शतशश च कुदांस तत्र सिन्हलाः समुपाहरन (II.४८.३०)

सागरानूपगांश चैव ये च पत्तनवासिनः,
सिंहलान बर्बरान मलेच्छान ये च जाङ्गलवासिनः (III.४८.१९)

रामायण कालीन स्थान-

श्रीलंका ५० से अधिक रामायण कालीन राम-रावण संघर्ष से जुड़ी विश्व-धरोहरों का गौरवशाली संरक्षक है। इनमें प्रमुख हैं-

थिरु कोनेश्वरम् मंदिर- सुंदर और शांत समुद्र तटों के लिए प्रसिद्ध त्रिंकोमाली शहर में स्थित इस मन्दिर का निर्माण रावण के भक्ति-भाव से प्रसन्न भगवान शिव के निर्देश पर पर ऋषि अगस्त ने कराया था। रावण यहाँ अपनी माता, राक्षस राजा सुमाली की पुत्री, ऋषि विश्रवा की दूसरी पत्नी केकसी के साथ शिव-पूजा किया करता था। कुंभकर्ण, विभीषण और सूर्पणखा केकसी की अन्य ३ संतानें थीं।

भारत और श्रीलंका के बीच लगभग ३० मील लंबा एक उथला चट्टानी इलाका राम-सेतु (एडम्स ब्रिज ) जिसे नल-नील के मार्गदर्शन में वानरों ने रातों-रात बनाया था, युद्ध क्षेत्र, वानर देवता हनुमान द्वारा लाए गए विदेशी जड़ी-बूटियों के बाग, युद्ध का अंतिम क्षेत्र जहाँ श्री राम ने दस सिर वाले राक्षस राजा रावण का वध किया, मुन्नेश्वरम और मनावरी मंदिर (जहाँ भगवान राम ने रावण-वध के दोष से मुक्ति के लिए शिवलिंग स्थापित कर रावण के आराध्य शिव जी का पूजन किया था), रैगला के जंगलों में रावण की तपस्थली रावण गुफा (जहाँ बाद में रावण का शव रखा गया था), दिवुरुम्पोला (जहाँ सीता जी ने पवित्रता सिद्ध करने हेतु अग्नि परीक्षा दी थी), य़ाहंगला (जहाँ रावण के पार्थिव शरीर को रखा गया था, ताकि स्थानीय प्रजा उन्हें श्रद्धांजलि दे सकें), हनुमान जी के पैरों के निशान आदि प्रमुख हैं।

श्रीलंका में ५० से ज़्यादा ऐसे स्थल हैं जिनका रामायण में उल्लेख मिलता है।सीता की कैद से लेकर उन युद्धस्थलों तक जहाँ दोनों सेनाओं के बीच युद्ध हुआ, हनुमान द्वारा गिराए गए विदेशी जड़ी-बूटियों के बाग़ों से लेकर उस अंतिम युद्धस्थल तक जहाँ भगवान राम ने दस सिरों वाले राक्षसराज रावण का वध किया था।

उस स्थान पर ली गई शपथ जहाँ सीता देवी ने "अग्नि परीक्षा" दी थी, आज भी ग्राम कचहरियों या ग्राम सभाओं में मान्य मानी जाती है।
प्राचीन युद्धक्षेत्र की मिट्टी का रंग आज भी लाल है, और यह अभी भी हल्के रंग की मिट्टी से घिरी हुई है। रावण के एक हवाई अड्डे, जिसे हनुमान ने सीता की तलाश में आते समय जला दिया था, आज भी झुलसी हुई मिट्टी जैसा दिखता है।

भूरी मिट्टी से घिरा गहरे रंग का एक टुकड़ा

रामायण में वर्णित घटनाएँ कई वर्षों पहले घटित हुईं थीं, फिर भी इसके भौगोलिक निशान उत्तर से दक्षिण भारत तक और विशेष रूप से श्रीलंका तक मौजूद हैं। श्री राम और बुद्ध दोनों भारत और श्रीलंका को एक सूत्र में पिरोते हैं।आश्चर्य है कि इन स्थानों के नाम आज भी अपरिवर्तित हैं। रावण ने एक स्वर्ण मृग को प्रलोभन के रूप में प्रयोग करके सीता से तब मुलाकात की, जब मारीच द्वारा स्वर्ग मृग का वेश धारण कर श्री राम तथा लक्ष्मण को छलपूर्वक दूर ले जाने के बाद वह अपने आश्रम में अकेली थीं । एक वृद्ध ऋषि के वेश में, उसने सीता का अपहरण किया और उन्हें अपने पुष्पक विमान, लंका में वेरागंटोटा (विमान उतरने का स्थान/हवाई अड्डा") लाया। वाल्मीकि रामायण के अनुसार, रावण भारत से सीता देवी को पुष्पक विमान में लाया था। इसे सिंहल में "दंडु मोनारा यंत्रनाया" (विशाल मयूर यंत्र) कहा गया है। यह वर्तमान जंगल ही वह स्थान हैं जहाँ कभी लंकापुर शहर हुआ करता था। शहर में रानी मंदोदरी के लिए एक सुंदर महल था जो झरनों, नदियों और विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों और जीवों से घिरा हुआ था। सीता को लंकापुर में रानी मंदोदरी के महल में रखा गया था। जिस स्थान पर सीता को बंदी बनाया गया था उसे सिंहल में सीता कोटुवा (सीता का किला) कहा जाता है। सिंहली भाषा में विमान को "धंडू मोनारा" / "उड़ता हुआ मोर" कहा जाता है, इसीलिए इसका नाम गुरुलुपोथा अर्थात "पक्षियों के अंग"हुआ। इसे 'गवगला' भी कहा जाता है।

रथ यात्रा मार्ग में सीता अश्रु तालाब स्थित है और ऐसा माना जाता है कि इसका निर्माण सीता देवी के आँसुओं से हुआ था। तब से यह कभी नहीं सूखा। भीषण अकाल-काल में जब आस-पास की नदियाँ सूख जाती थीं, यहाँ पानी रहता था। पर्यटक प्रसिद्ध सीता पुष्प (सारका अशोका) भी देख सकते हैं। इन फूलों की ख़ासियत पंखुड़ियों, पुंकेसर और स्त्रीकेसर की संरचना है, जो धनुष धारण किए हुए एक मानव आकृति के समान हैं और कहा जाता है कि ये भगवान राम का प्रतीक हैं। ये फूल पूरे श्रीलंका में केवल इसी क्षेत्र में प्राप्त होते हैं।

नुवारा एलिया (अशोक वाटिका) में सीता अम्मन मंदिर

केथीश्वरम् मंदिर- श्री लंका के उत्तर-पश्चिम भाग में मन्नार द्वीप पर स्थित यह भगवान शिव को समर्पित एक रावण मंदिर है। इसकी स्थापना रावण के पितामह मय दानव ने की थी। यह तीसरा स्थान है जहाँ श्री राम ने ब्रह्म-हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए शिव लिंग स्थापित कर शिव पूजन किया था। हर पूर्णिमा को यहाँ हनुमान जी की विशेष पूजा की जाती है।

एला- एला श्रीलंका के उवा प्रांत का एक कस्बा है। यहाँ सिगिरिया (ऊँची चट्टान पर स्थित रावण का महल), १०८० फुट ऊँचा रावण फाल्स (प्राकृतिक झरना जहाँ से रावण सीता को लंका ले गया था), अशोक वाटिका (सीता एलिया जहाँ सीता जी को बंदी बनाकर रखा गया था),



मनावरी मंदिरम्- लगभग ७००० वर्ष पूर्व भगवान राम द्वारा रावण-वध के पश्चात स्थापित-पूजित पहला शिव लिंग यहाँ है। इसे रामलिंग शिवम् भी कहा जाता है। श्री राम के नाम पर यह एकमात्र स्थान है।

केलानिया मंदिरम्- रोशनी के शहर नुवारा एलिया में केन्द्रीय पर्वत मालाओं के बीच स्थित इस स्थल पर रावण के अंत के बाद विभीषण का राज्याभिषेक किया गया था। यह बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए भी पवित्र स्थल है। ज्ञान प्राप्ति के पश्चात भगवान बुद्ध ने श्री लंका में यहीं चरण रखे थे। सिंहली बौद्ध भी विभीषण को अपनी भूमि के रक्षक और देव रूप में पूजते हैं।

नुवारा एलिया में सीता अम्मन मंदिर स्थित है। नुवारा एलिया से ५ किलोमीटर दूर अशोक वाटिका है। यहाँ अशोक वृक्षों के मध्य माता सीता को बंदी कर रखा गया था। सीता जी जिस जल-धार में स्नान करती थीं उसके निकट छोटे-बड़े पैरों के निशान हैं जिन्हे हनुमान जी के पग-चिह्न कहा जाता है। जिसके किनारे एक जलधारा बहती है। लोक मान्यता है कि सीता देवी इसी जलधारा में स्नान करती थीं। इस नदी के किनारे चट्टानों पर भगवान हनुमान जैसे पैरों के निशान पाए जाते हैं, जिनमें से कुछ छोटे और कुछ बड़े आकार के हैं, जो भगवान हनुमान की किसी भी आकार में रूपांतरित होने की शक्ति का संकेत देते हैं।

पर्वत श्रृंखला के ऊपर बंजर भूमि वह मार्ग है जिससे राजा रावण सीता देवी को अपनी राजधानी लंकापुर से अशोक वाटिका ले गया था। पर्वत श्रृंखला के ऊपर रथ पथ अभी भी दिखाई देता है। आज तक इस मार्ग पर घास के अलावा कोई वनस्पति नहीं उगती है। लगभग एक शताब्दी पहले धारा में तीन छवियाँ खोजी गई थीं, जिनमें से एक सीता की थी। ऐसा माना जाता है कि सदियों से इस स्थान पर देवताओं की पूजा की जाती रही है। अब इस धारा के किनारे भगवान राम, सीतादेवी, लक्ष्मण और हनुमान के मंदिर हैं।

पुसल्लावा में फ्रोटॉफ्ट एस्टेट के ऊपर पर्वत श्रृंखला के बगल में पहाड़ की चोटी वह स्थान है जहाँ हनुमान ने पहली बार मुख्य भूमि लंका पर अपना पैर रखा था। पावला मलाई के रूप में जाना जाने वाला यह पर्वत इस पर्वत श्रृंखला से दिखाई देता है।

समुद्र पार करते समय, लंका जाते समय नाग कन्या सुरसा देवी ने हनुमान की परीक्षा ली थी। इस स्थान को अब ''नागदीपा'' कहा जाता है । जब हनुमान ने मेघनाद (रावण के पुत्र) पर मोहित होने का निर्णय लिया, तो दंड स्वरूप उनकी पूंछ में आग लगा दी गई। बदले में हनुमान ने शहर के घरों में आग लगा दी। उस्संगोडा ऐसा ही एक जला हुआ क्षेत्र है।

भारत वापस आते समय हनुमान ने मणि कट्टुथर में विश्राम किया था। पास में ही कोंडागाला (तमिल में कोंडाकलाई अर्थ बालों का बिखरना) नामक गाँव में सीता ने यहाँ से गुजरते समय अपने बाल अस्त-व्यस्त कर लिए थे। श्रीलंका के कई अन्य शहरों और गाँवों की तरह कोंडाकलाई (कोंडागाला) का नाम भी रामायण से लिया गया है। इस गाँव में सीता गोली (गूली) भी हैं जो रावण द्वारा सीता को जलपान हेतु दिए गए चावल के गोले हैं; जिसे सीता ने अस्वीकार कर, फेंक दिया था। वे रावण द्वारा दिया गया कोई पदार्थ ग्रहण नहीं करना चाहती थीं। स्थानीय लोग इन चावल के गोलों को सीता गोली कहते हैं और वे इन्हें अपने बच्चों को पेट की बीमारियों और सिरदर्द के इलाज के लिए देते हैं। किसान भी समृद्धि के लिए इन्हें अपने कैश बॉक्स या अनाज के बर्तनों में रखते हैं।

कोटमाले क्षेत्र में रावणगोड़ा (रावण का निवास) सुरंगों और गुफाओं का परिसर है जहाँ हनुमान द्वारा सीता के दर्शन करने, आधी लंका जलाने और चले जाने के बाद, रावण ने सीता को कुछ समय के लिए अशोक वाटिका हटाकर छुपाया था।

इस्त्रिपुरा (महिलाओं का क्षेत्र) रास्तों का एक और अद्भुत जाल है जो राजा रावण की नगरी के सभी प्रमुख क्षेत्रों से जुड़ा हुआ है। यह उस महिला-दल को संदर्भित करता है जिन्हें रावण ने सीता की देखभाल के लिए उपलब्ध कराया था।

कोंडा कट्टू गाला इस क्षेत्र में स्थित कई घुसपैठ करनेवाली सुरंगों और गुफाओं को दर्शाता है। यह रास्तों के एक महान अद्भुत जाल का हिस्सा प्रतीत होता है, जो राजा रावण की नगरी के सभी प्रमुख क्षेत्रों से जुड़ा हुआ है। सीता देवी ने इसी जलधारा में स्नान किया था और एक चट्टान पर बैठकर अपने केश सुखाए थे और बालों में क्लिप लगाई थीं, इसलिए इस चट्टान को कोंडा कट्टू गाला के नाम से जाना जाता है। यह वेलिमाडा क्षेत्र में स्थित है। इन सुरंगों को ध्यान से देखने पर पता चलता है कि ये मानव निर्मित हैं, प्राकृतिक नहीं।

कालूतारा स्थित बौद्ध तीर्थस्थल कभी राजा रावण का महल और एक सुरंग हुआ करता था। इसके अतिरिक्त सुरंगों के मुहाने वेलिमाडा, बंदरवेला में रावण गुफा, हलागला में सेनापिटिया, रम्बोडा, लाबूकेले, वारियापोला/माताले और सीताकोटुवा/हसलाका में स्थित हैं, साथ ही कई अन्य सुरंगें भी हैं। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि रावण के पास एक सुरंग थी जो दक्षिण अमेरिका तक जाती थी, जहाँ उसने अपना अधिकांश सोना और खजाना जमा किया था। उसने अपने भाई अहिरावण से मिलने के लिए भी यही रास्ता चुना था, जो पाताल लोक (ब्राज़ील) में रहता था ।

गायत्री पीडम में राजा रावण के पुत्र मेघनाद ने भगवान शिव की तपस्या और पूजा से उन्हें प्रसन्न किया और बदले में युद्ध से पहले भगवान शिव ने उन्हें अलौकिक शक्तियाँ प्रदान की थीं। नीलावारी देश के उत्तर में जाफना प्रायद्वीप में भगवान राम ने लंका पहुँचने पर अपनी सेना के लिए पानी पानेने हेतु भूमि पर बाण मारा था। दोंद्रा, सीनिगामा और हिक्काडुवा लंका के दक्षिण में स्थित वे स्थान हैं जहाँ सुग्रीव (वानरों के राजा) ने दक्षिणी दिशा से राजा रावण की सेना के विरुद्ध युद्ध की तैयारी की थी। युद्ध के दौरान, मेघनाद ने विरोधियों का मनोबल तोड़ने के लिए सीता देवी की एक हमशक्ल का सिर काट दिया था। अविस्सावेल्ला क्षेत्र में यह स्थान सीतावाका है।

लग्गाला (सिंहल शब्द "एलक्के गला" अर्थ है लक्ष्य चट्टान) भगवान राम की सेना पर नज़र रखने के लिए एक प्रहरी के रूप में कार्य करता था। दुनुविला झील के पीछे के कार्टेल को लग्गाला कहा जाता है। इसी चट्टान से भगवान राम की सेना की पहली झलक देखी गई थी और राजा रावण को इसकी सूचना दी गई थी। यह पहाड़ी भौगोलिक रूप से राजा रावण की नगरी के उत्तरी क्षेत्र का सबसे ऊँचा भाग है और साफ़ दिन में उत्तर पूर्व की ओर, यानी थिरु कोणेश्वरन और उत्तर पश्चिम की ओर, यानी तलाई मन्नार, आज भी देखे जा सकते हैं। ऐसा माना जाता है कि राजा रावण ने इसी चट्टान पर ध्यान किया था और यहीं से थिरु कोणेश्वरन में भगवान शिव की प्रार्थना की थी। उष्ण कटिबंधीय श्रीलंकाई वनस्पतियों के बीच अचानक विदेशी अल्पाइन हिमालयी प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जो हनुमान द्वारा संजीवनी नामक जीवन-पुनर्स्थापना जड़ी-बूटियों से भरा एक पर्वत ले जाने की वीरतापूर्ण यात्रा की विरासत है।

वासगामुवा में एक स्थान युधगानवा (सिंहल में अर्थ युद्ध का मैदान) में प्रमुख युद्ध हुए थे। इंद्रजीत (मेघनाद) के ब्रह्मास्त्र से आहत होने पर, राम, लक्ष्मण दोनों युद्ध के मैदान में बेहोश हो गए थे। उन्हें ठीक करने के लिए, अनुभवी वानर जाम्बवान ने हनुमान को हिमालय में ऋषभ और किलासा चोटियों के बीच जड़ी-बूटियों की पहाड़ी, संजीवनी पर्वत पर जाने और आवश्यक औषधीय जड़ी-बूटियाँ लाने का निर्देश दिया। हनुमान जड़ी-बूटियों को पहचान नहीं सके तो वहाँ उगने वाली सभी जड़ी-बूटियों के साथ पूरी चोटी को उखाड़कर लंका ले आए। पहाड़ी के कुछ हिस्से श्रीलंका में पाँच स्थानों गाले में रुमासाला, हिरिपिटिया में दोलुकंडा, हबराना अनुराधापुर रोड पर तथा हबराना के पास रीतिगाला पर गिरे।

भगवान इंद्र ने भगवान कार्तिकेय सुब्रमण्यम को राजा रावण के ब्रह्मास्त्र से भगवान राम की रक्षा के लिए युद्ध में जाने का अनुरोध किया था। यह कटारगामा में हुआ था , जो अब श्रीलंकाई लोगों के बीच पूजा के लिए एक बहुत लोकप्रिय स्थल है।

दुनुविला झील वह स्थान है जहाँ से भगवान राम ने लगल से युद्ध का नेतृत्व कर रहे राजा रावण पर ब्रह्मास्त्र चलाया था। यहीं पर भगवान राम के ब्रह्मास्त्र से राजा रावण का वध हुआ था। झील की चोटी समतल है और माना जाता है कि इस पर ब्रह्मास्त्र की शक्ति का प्रभाव पड़ा था। " धुनु " का अर्थ है " बाण " और " विला " का अर्थ है " झील ", इसलिए इसका नाम इसी लीला से पड़ा है।

रावण की मृत्यु के बाद, उनके पार्थिव शरीर को महियांगनया-वासगामुवा मार्ग पर स्थित याहंगला (शैल शिला) में रखा गया था ताकि उनके देशवासी अपने प्रिय दिवंगत राजा को अंतिम श्रद्धांजलि दे सकें। भौगोलिक दृष्टि से यह शिला अपनी तीनों दिशाओं से मीलों दूर से दिखाई देती है।

युद्ध के बाद सीता राम से मिलीं और दिवुरुम्पोला (शपथ स्थल) में उन्होंने अग्नि परीक्षा देकर राम के सामने अपनी निर्दोषता और पवित्रता सिद्ध की।

वन्थारामुलई वह स्थान है जहाँ युद्ध की उथल-पुथल के बाद भगवान राम, सीता, लक्ष्मण और हनुमान ने विश्राम किया था। अमरंथकाली वह स्थान है जहाँ उन्होंने युद्ध के बाद पहला भोजन किया था।

राम ने ' ब्रह्म हत्या दोष ' (ब्राह्मण रावण का वध) से मुक्ति पाने के लिए मुन्नेश्वरम (मुन्नु + ईश्वरन अर्थात शिव) से ५ किलोमीटर दूर, देदुरु ओया के तट के पास, मनावरी में पहला शिवलिंग स्थापित किया था।

अपने भाई की मृत्यु के बाद, विभीषण को केलानिया में लक्ष्मण द्वारा लंका के राजा के रूप में राज्याभिषेक किया गया था । यह रामायण से जुड़ा कोलंबो का सबसे निकटतम स्थल है। विभीषण श्रीलंका के चार संरक्षक देवताओं में से एकहैं। विभीषण के मंदिर पूरे श्रीलंका हैं। राजा विभीषण की एक पेंटिंग श्रीलंका की नई संसद को भी सुशोभित करती है। रावण के लिए समर्पित कोई मंदिर नहीं हैं, लेकिन विभीषण के लिए कई मौजूद हैं; यह साबित करता है कि वैदिक धर्म और न्याय के प्रति उनके रुख ने लोगों को उन्हें श्रीलंका में एक भगवान के रूप में पूजने के लिए प्रेरित किया। चिरंजीवी विभीषण इस चतुर्युग के ७ अमरों में से १ हैं। लोक मान्यता है कि विभीषण का शासन इस सृष्टि के अंत तक, लंका जलमग्न होने तक होगा । केलानी नदी का उल्लेख वाल्मीकि रामायण में भी है।

उपरोक्त के अलावा, श्रीलंका में कई रामायण स्थल हैं जैसे: हॉर्टन मैदानों में थोटुपोलकांडा (पहाड़ी बंदरगाह), महियांगना में
वेरागंटोटा ( "विमान उतरने का स्थान), दक्षिणी तट पर उस्संगोडा ( लिफ्ट का क्षेत्र), मटाले और कुरुनागला में वारियापोला ( विमान बंदरगाह)।

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