महानदी :
महानदी स्तुति
०
महानदी मैया की जय जय
सलिल प्रवाहित है अमृतमय
.
कल-कल-कल किलकारी मधुरिम
चंचल चपल लहरियाँ चमचम
गतिमय धारा पाप काटती
जो अवगाहे पुण्य बाँटती
भारत माँ के आँचल में बह
करती निज भक्तों को निर्भय
महानदी मैया की जय जय
सलिल प्रवाहित है अमृतमय
.
तट पर बसते ऋषि मुनि ज्ञानी
शीश नवाते सुर वरदानी
माँगें वर नृप भिक्षुक बनकर
हाथ जोड़कर, शीश नवाकर
मैया सदय रहें भक्तों पर
दुष्टों प्रति हों निर्मम निर्दय
महानदी मैया की जय जय
सलिल प्रवाहित है अमृतमय
.
कलरव करते गीत सुनाते
पंछी-कवि नित महिमा गाते
करतल ध्वनि कर करे कीर्तन
जो भव से तरते वे सज्जन
भास्कर दिन कर नित्य नहाते
रश्मिरथी यश पाते अक्षय
महानदी मैया की जय जय
सलिल प्रवाहित है अमृतमय
.
जलकण पी निरोग हो काया
आयु बढ़े पा तेरी छाया
तीर्थ त्रिवेणी राजिवलोचन
राजिम दर्शन पाप विमोचन
मेला कुंभ मनोहर भरता
जन-गण आए कर दूरी तय
महानदी मैया की जय जय
सलिल प्रवाहित है अमृतमय
.
बूंँद-बूँद में चित्र गुप्त है
जागृति ऊर्जा अचल सुप्त है
भक्तों को देतीं माँ दर्शन
दिव्य छटा कैसे हो वर्णन
हीरक कण मिलते माटी में
हीराकुंड बाँध उन्नति तय
महानदी मैया की जय जय
सलिल प्रवाहित है अमृतमय
.
आ मिलकर शिवनाथ धन्य हो
शिवरीनारायण अनन्य हो
बंग सिंधु करता है स्वागत
हो कृतार्थ भुज भर नव आगत
कलियुग में भव मुक्ति प्रदाता
तरे आत्म तज काया मृण्मय
महानदी मैया की जय जय
सलिल प्रवाहित है अमृतमय
५.३.२०२५
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महानदी मैया की जय जय
सलिल प्रवाहित है अमृतमय
.
कल-कल-कल किलकारी मधुरिम
चंचल चपल लहरियाँ चमचम
गतिमय धारा पाप काटती
जो अवगाहे पुण्य बाँटती
भारत माँ के आँचल में बह
करती निज भक्तों को निर्भय
महानदी मैया की जय जय
सलिल प्रवाहित है अमृतमय
.
तट पर बसते ऋषि मुनि ज्ञानी
शीश नवाते सुर वरदानी
माँगें वर नृप भिक्षुक बनकर
हाथ जोड़कर, शीश नवाकर
मैया सदय रहें भक्तों पर
दुष्टों प्रति हों निर्मम निर्दय
महानदी मैया की जय जय
सलिल प्रवाहित है अमृतमय
.
कलरव करते गीत सुनाते
पंछी-कवि नित महिमा गाते
करतल ध्वनि कर करे कीर्तन
जो भव से तरते वे सज्जन
भास्कर दिन कर नित्य नहाते
रश्मिरथी यश पाते अक्षय
महानदी मैया की जय जय
सलिल प्रवाहित है अमृतमय
.
जलकण पी निरोग हो काया
आयु बढ़े पा तेरी छाया
तीर्थ त्रिवेणी राजिवलोचन
राजिम दर्शन पाप विमोचन
मेला कुंभ मनोहर भरता
जन-गण आए कर दूरी तय
महानदी मैया की जय जय
सलिल प्रवाहित है अमृतमय
.
बूंँद-बूँद में चित्र गुप्त है
जागृति ऊर्जा अचल सुप्त है
भक्तों को देतीं माँ दर्शन
दिव्य छटा कैसे हो वर्णन
हीरक कण मिलते माटी में
हीराकुंड बाँध उन्नति तय
महानदी मैया की जय जय
सलिल प्रवाहित है अमृतमय
.
आ मिलकर शिवनाथ धन्य हो
शिवरीनारायण अनन्य हो
बंग सिंधु करता है स्वागत
हो कृतार्थ भुज भर नव आगत
कलियुग में भव मुक्ति प्रदाता
तरे आत्म तज काया मृण्मय
महानदी मैया की जय जय
सलिल प्रवाहित है अमृतमय
५.३.२०२५
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महानदी २
पृथ्वी की उत्पत्ति के बारे में वैज्ञानिक सिद्धांतों के अनुसार, लगभग 46 अरब वर्ष पहले एक विशाल धुंधला गैसी घने पुटटी के रूप में पृथ्वी विकसित हुई थी। इस घने गैसी पुटटी को सूर्य के चारों ओर घूमने वाले छोटे ग्रह वायुमंडल के कणों का संग्रह माना जाता है।
वैज्ञानिकों के मुताबिक, पृथ्वी की उत्पत्ति करीब 4.54 अरब साल पहले हुई थी. यह सौरमंडल के निर्माण के दौरान बनी थी. सौरमंडल का निर्माण एक विशाल बादल से हुआ था. इस बादल में धूल, गैस, और बर्फ़ थी.
पृथ्वी की उत्पत्ति की प्रक्रिया:
- इस बादल के गुरुत्वाकर्षण बल की वजह से कण एक-दूसरे के पास आने लगे और छोटे-छोटे पिंड बनने लगे.
- ये पिंड एक-दूसरे से टकराते रहे और आकार में बढ़ते गए.
- इस बादल के ढहने से एक घना केंद्र बना, जिसे सूर्य कहा जाता है.
- बादल के बाहरी हिस्से में ग्रह और दूसरे खगोलीय पिंड बने.
पृथ्वी की उत्पत्ति के बारे में सिद्धांत:
- नेबुलर परिकल्पना
- संशोधित नेबुलर परिकल्पना
- पृथ्वी की उत्पत्ति के बाइनरी सिद्धांत
- बिग बैंग सिद्धांत
- तारा निर्माण सिद्धांत
- ग्रह निर्माण सिद्धांत
पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति लगभग 3.5 अरब वर्ष पहले हुई थी.
अरबों वर्ष पूर्व धरती थी, दक्षिण ध्रुव पर अचल-अधीर।
चारों ओर नीरनिधि लहरित, तप्त अत्यधिक सहती पीर।।
ज्वालामुखियों के विस्फोटों से कंपित होती थर-थर।
भूडोलों-भूकंपों से क्षत-विक्षत हुईं शिला पत्थर।।
गरम अत्यधिक लावा प्रवहित सागर में जा ठोस हुआ।
परिचय- छत्तीसगढ़ तथा ओड़िशा अंचल की सबसे बड़ी नदी महानदी के प्राचीन नाम मंदवाहिनी, चित्रोत्पला,महानंदा एवं नीलोत्पला थे। दक्षिण से उत्तर दिशा में प्रवहित महानदी का उद्गम रायपुर के समीप धमतरी जिले में स्थित सिहावा नामक पर्वत श्रेणी में है। शिवनाथ, हसदेव, बोरई, मांड, केलो और ईब महानदी की बाईं जबकि सिलवारी, सोंढुर, पैरी, सूखा, जोंक, ओंग, और तेल इसकी दाईं सहायक नदियाँ हैं। महानदी के तट पर छत्तीसगढ़ में धमतरी, कांकेर, चारामा, राजिम, चंपारण, आरंग, सिरपुर, शिवरी नारायण और ओड़िशा में संबलपुर, बलांगीर, कटक आदि स्थान हैं। राजिम में महानदी, पैरी तथा सोंढुर नदियों का त्रिवेणी संगम है। यहाँ विशाल कुंभ मेले का आयोजन राज्य सरकार द्वारा किया जाता है। सिहावा से निकलकर बंगाल की खाड़ी में गिरने तक महानदी लगभग ८५५ कि.मी. की दूरी तय करती है। राजिम में पैरी और सोंढुर नदियों का जलग्रहण कर महानदी विशाल रूप धारण कर लेती है। ऐतिहासिक नगरी आरंग और सिरपुर में विकसित होकर महानदी शिवरीनारायण में अपने नाम के अनुरूप होकर पूर्व दिशा में बहने लगती है। छ्त्तीसगढ़ से बिदा लेकर महानदी संबलपुर जिले से ओडिसा में प्रवेश करती है। महानदी कटक नगर से लगभग सात मील पहले डेल्टा बनाने के लिए कई धाराओं में विभक्त होकर बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। महानदी पर बने प्रमुख बाँध हैं- रुद्री, गंगरेल तथा हीराकुंड। यह नदी पूर्वी मध्यप्रदेश और उड़ीसा की सीमाओं को भी निर्धारित करती है।
भूगोल-
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महानदी तथा ब्राह्मणी नदी |
महानदी का उद्गम धमतरी जिले में स्थित सिहावा नामक पर्वत श्रेणी से है। भूखंड के प्राकृतिक ढाल के के अनुसार महानदी का प्रवाह दक्षिण से उत्तर की तरफ है। यह प्रवाह प्रणाली के अनुरूप बहती है इसलिए एक स्वयंभू जलधारा है। प्रदेश की सीमान्त उच्च भूमि से निकलने वाली महानदी की सहायक नदियाँ केन्द्रीय मैदान की ओर प्रवाहित होती हुई जल संचय कर महानदी से समकोण पर मिलकर मिलती हैं। नदियों की जलक्षमता के हिसाब से यह गोदावरी नदी के बाद दूसरे क्रम पर है। महानदी का जलग्रहण क्षेत्र छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, ओडिशा, झारखंड और महाराष्ट्र तक विस्तारित है। इसका बेसिन उत्तर में मध्य भारत की पहाड़ियों, दक्षिण और पूर्व में पूर्वी घाट तथा पश्चिम में मैकाल पर्वतमाला से घिरा है। छत्तीसगढ़ में २८६ कि.मी. की यात्रा के इस पड़ाव में सीमांत सीढ़ियों से उतरते समय महानदी की छोटी-छोटी नदियाँ प्रपात भी बनाती हैं। छत्तीसगढ़ की दूसरी सबसे बड़ी नदी शिवनाथ अपनी सहायक नदियों खारून तथा अरपा की जलराशि लेकर शिवरीनारायण में महानदी से मिलती है। वृन्दानकगढ़ से निकली पैरी नदी राजिम में महानदी से मिलती है।
इतिहास- पौराणिक तथा ऐतिहासक ग्रंथों के अनुसार महानदी और उसकी सहायक नदियाँ प्राचीन शुक्लमत पर्वत से निकली हैं। इसके प्राचीन नाम मंदवाहिनी, चित्रोत्पला,महानन्दा एवं नीलोत्पला भी थे। महानदी के संबंध में भीष्म पर्व में वर्णन है कि भारतीय प्रजा चित्रोत्पला का जल पीती थी अर्थात महाभारत काल में महानदी के तट पर आर्यो का निवास था। रामायण काल में भी पूर्व इक्ष्वाकु वंश के नरेशों ने महानदी के तट पर अपना राज्य स्थापित किया था। मुचकुंद, दंडक, कल्माषपाद, भानुमंत आदि का शासन प्राचीन दक्षिण कोसल में था। महानदी की घाटी की अपनी विशिष्ट सभ्यता है। इस ऐतिहासिक नदी के तटों से शुरु हुई यह सभ्यता धीरे धीरे नगरों तक पहुँची।
धार्मिक महत्व- राजिम में महानदी का महत्व, प्रयाग में गंगा के महत्व की की तरह है। हजारों लोग यहाँ स्नान कर पुण्य अर्जित करते हैं। शिवरीनारायण में भगवान जगन्नाथ विराजमान हैं। गंगा के समान पवित्र होने के कारण महानदी के तट पर अनेक धार्मिक, सांस्कृतिक और ललित कला के केंद्र स्थित हैं। सिरपुर, राजिम, मल्हार, खरौद, शिवरीनारायण, चंद्रपुर और संबलपुर प्रमुख नगर हैं। सिरपुर में गंधेश्वर, रुद्री में रुद्रेश्वर, राजिम में राजीव लोचन और कुलेश्वर, मल्हार में पातालेश्वर, खरौद में लक्ष्मणेश्वर, शिवरीनारायण में भगवान नारायण, चंद्रचूड़ महादेव, महेश्वर महादेव, अन्नपूर्णा देवी, लक्ष्मीनारायण, श्रीरामलक्ष्मणजानकी और जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा का भव्य मंदिर है। गिरौदपुरी में गुरू घासीदास का पीठ और तुरतुरिया में लव कुश की जन्म स्थली बाल्मिकी आश्रम होने के प्रमाण मिलते हैं। इसी प्रकार चंद्रपुर में मां चंद्रसेनी और संबलपुर में समलेश्वरी देवी का वर्चस्व है। इसी कारण छत्तीसगढ़ में इन्हें काशी और प्रयाग के समान पवित्र और मोक्षदायी माना गया है। शिवरीनारायण में भगवान नारायण के चरण को स्पर्श करती हुई रोहिणी कुंड है जिसके दर्शन और जल का आचमन करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। सुप्रसिध्द प्राचीन साहित्यकार पंडित मालिकराम भोगहा इसका वर्णन करते हुए कहते हैं कि इस नदी में स्नान करने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है।
व्यावसायिक महत्व- महानदी तटीय जनों के लिए आवागमन का साधन है। व्यापारिक दृष्टि से प्राचीन काल में महानदी के जलमार्ग से छत्तीसगढ़ में उत्पन्न होने वाली अनेक वस्तुओं का कलकत्ता तक आयात-निर्यात किया जाता था।महानदी व सहायक नदियों पर जुलाई से फरवरी के बीच नावें चलती थी। आज भी अनेक क्षेत्रों में लोग महानदी में नाव से इस पार से उस पार या छोटी-मोटी यात्रा करते हैं। अंग्रेज़ विद्वान गिब्सन के अनुसार महानदी के तटवर्ती क्षेत्र में संबलपुर के निकट हीराकूद अर्थात् हीराकुंड नामक छोटा से द्वीप हैमें हीरा मिलता था। इन हीरों की रोम में बड़ी खपत थी। महानदी में रोम के सिक्के के पाए जाने को वे इस तथ्य से जोड़ते हैं। व्हेनसांग ने भी अपनी यात्रा में लिखा था कि मध्यदेश से हीरा लेकर लोग कलिंग में बेचा करते थे, यह मध्यदेश संबलपुर ही था। अली यूरोपियन ट्रेव्हलर्स इन नागपुर टेरीटरी नामक ब्रिटिश रिकार्ड जो सन १७६६ का है में उल्लेख है कि एक अंग्रेज़ को इस बात के लिए भेजा गया था कि वह संबलपुर जाकर वहाँ हीरे के व्यापार की संभावनाओं का पता लगाये। भारत के स्वतंत्र होने पर हीराकुंड में महानदी पर बाँध बनाया गया है।
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महानदी बंगाल की खड़ी में विलय - चिल्का झील |
केंद्र सरकार ने वर्ष २०१८ में महानदी जल विवाद न्यायाधिकरण का गठन किया। हीराकुंड बाँध: यह भारत का सबसे लंबा बांँध है। रविशंकर सागर, दुधावा जलाशय, सोंदूर जलाशय, हसदेव बांगो और तांडुला अन्य प्रमुख परियोजनाएँ हैं। बेसिन में तीन महत्त्वपूर्ण शहरी केंद्र रायपुर, दुर्ग और कटक हैं। महानदी बेसिन, अपने समृद्ध खनिज संसाधन और पर्याप्त विद्युत संसाधन के कारण एक अनुकूल औद्योगिक पारितंत्र है। भिलाई में लौह एवं इस्पात संयंत्र, हीराकुंड और कोरबा में एल्युमीनियम के कारखाने, कटक के पास पेपर मिल, सुंदरगढ़ में सीमेंट कारखाना। मुख्य रूप से कृषि उत्पादों पर आधारित अन्य उद्योग चीनी और कपड़ा मिलें हैं। कोयला, लोहा और मैंगनीज का खनन अन्य औद्योगिक गतिविधियाँ हैं।
संदर्भ-
क. ^ “चित्रोत्पला चित्ररथां मंजुलां वाहिनी तथा। मन्दाकिनीं वैतरणीं कोषां चापि महानदीम्।।” --(महाभारत – भीष्मपर्व – 9/34)
“मन्दाकिनीदशार्णा च चित्रकूटा तथैव च। तमसा पिप्पलीश्येनी तथा चित्रोत्पलापि च।।” --(मत्स्य पुराण – भारतवर्ष वर्णन प्रकरण – 50/25)
“चित्रोत्पला वेत्रवपी करमोदा पिशाचिका। तथान्यातिलघुश्रोणी विपाया शेवला नदी।।” (ब्रह्म पुराण – भारतवर्ष वर्णन प्रकरण – 19/31)
ख. ^ उत्पलेशं सभासाद्या यीवच्चित्रा महेश्वरी। चित्रोत्पलेति कथिता सर्वपाप प्रणाशिनी॥ (महाभारत भीष्मपर्व)
ग. ^ यस्पाधरोधस्तन चन्दनानां प्रक्षालनादवारि कवहार काले। चित्रोत्पला स्वर्णावती गताऽपि गंगोर्भि संसक्तभिवाविमाति॥
घ. ^ रोहिणि कुंडहि स्पर्श करि चित्रोत्पल जल न्हाय। योग भ्रष्ट योगी मुकति पावत पाप बहाय॥
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