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शुक्रवार, 27 अक्तूबर 2023

विज्ञशिल्पी विश्वेश्वरैया, सुरेन्द्र पँवार

पुरोवाक्

'विज्ञशिल्पी विश्वेश्वरैया' : आधुनिक भारत के निर्माता

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

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                              'राष्ट्र' भाषा, इतिहास, जातीयता, संस्कृति और/या समाज जैसी साझा विशेषताओं के संयोजन के आधार पर गठित लोगों का एक समुदाय है। राष्ट्र इन विशेषताओं द्वारा परिभाषित लोगों के विराट समूह की सामूहिक पहचान है। राष्ट्र को एक सांस्कृतिक-राजनीतिक समुदाय के रूप में भी परिभाषित किया गया है जो अपनी स्वायत्तता, एकता और विशेष हितों के प्रति सचेत हो गया है। राष्ट्र यथार्थ और कल्पना दोनों है। राष्ट्र इस अर्थ में एक कल्पित समुदाय है कि विस्तारित और साझा संबंधों की कल्पना करने के लिए भौतिक स्थितियां मौजूद हैं और यह वस्तुनिष्ठ रूप से अवैयक्तिक है, भले ही राष्ट्र में प्रत्येक व्यक्ति खुद को दूसरों के साथ एक सन्निहित एकता के रूप में अनुभव करता हो। अधिकांश भाग के लिए, एक राष्ट्र के सदस्य एक दूसरे के लिए अजनबी बने रहते हैं और संभवतः कभी नहीं मिलते।

                             'भारत' विश्व के प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। भारत गणराज्य (Republic of Indiaदक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। भारत भौगोलिक दृष्टि से विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा देश है, जबकि जनसंख्या के दृष्टिकोण से चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा देश है। १९५० से भारत एक संघीय गणराज्य है। भारत की जनसंख्या १८६२  (एम.व्ही.के जन्म के समय) में ३५ करोड़ से बढ़कर १९६२ (एम.व्ही.के निधन के समय) में लगभग ४४ करोड़ थी। १८६२ के भारत में आज का पाकिस्तान और बांग्लादेश भी सम्मिलित था। विश्व अर्थव्यवस्था में भारत की हिस्सेदारी १७०० में २४.४% से घटकर १९५० में ४.२% हो गई थी। इस इंगित का उद्देश्य यह कि देश के प्रमुख अभियंता के नाते एम. व्ही. ने जिस समय गंभीर समस्याओं का समाधान खोजा, कालजयी निर्माण कार्य किए उस समय भारत की जनसंख्या, प्रति व्यक्ति, संसाधन, तकनीक, निर्माण पदार्थ आदि आज की तुलना में अत्यल्प थे अर्थात वर्तमान की तुलना में एम. व्ही. के सामने चुनौतियाँ और कठिनाइयाँ कई हजार गुना अधिक थीं,  इसलिए उनके अवदान का मूल्यांकन भी तदनुसार ही किया जाना चाहिए। 

                              'राष्ट्र निर्माता अभियंता' वही हो सकता है जिसने राष्ट्र के विविध क्षेत्रों में, विविध समस्याओं का समाधान और निर्माण कार्य करते समय  जाति, धर्म,  भाषा, भूषा, वाद आदि पर ध्यान न दिया हो। पराधीन भारत में अभियांत्रिकी शिक्षा के अवसर दुर्लभ थे। अंग्रेज भारतीय प्रतिभाओं को निरंतर हतोत्साहित करते थे तब भी दो भरते अभियंताओं ने अपने ज्ञान, कौशल, तकनीक का लोहा मनवा ही लिया और अंग्रेजी ने उन्हें सर्वोच्च सम्मान से नवाजा। सर गंगाराम (१९०३) तथा सर विश्वेश्वरैया (१९१५) ने भारतीय अभियांत्रिकी की विजय पताका फहरा ही दी। सर गंगाराम का निधन १० जुलाई १९२७ को हो जाने से वे भारत को स्वतंत्र नहीं देख सके। अभियंता के रूप में उनका अवदान भी उत्तर भारत, पाकिस्तान, आदि में ही हो सका जबकि एम. व्ही. को भारत के स्वतंत्र होने के बाद लगभग १५ वर्षों तक देश वे विविध प्रांतों में, विविध समस्याओं के समाधान, विभिन्न परियोजनाओं के निर्माण आदि का अवसर मिला। इसलिए केवल विश्वेश्वरैया ही आधुनिक भारत के निर्माता कहे जा सकते हैं। 

                              किसी भाषा के वाचिक और लिखित ज्ञान भंडार 'साहित्य' कहा जाता है। दुनिया में सबसे पुराना वाचिक साहित्य हमें आदिवासी भाषाओं में मिलता है। इस दृष्टि से आदिवासी साहित्य सभी साहित्य का मूल स्रोत है। भारत में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा हिंदी राजभाषा है। हिंदी साहित्य का मूल लोक साहित्य ही है। लोक साहित्य में महामानवों को स्मरण करने की पुरातन परंपरा है। पद्य में रासो, इत्यादि और गद्य में कथाओं, नाटकों मेंलोक ने प्रेरक व्यक्तित्वों को स्मरण किया है। आधुनिक साहित्य में जीवनी, संस्मरण, उपन्यास तथा महाकाव्य आदि विधाओं में महापुरुषों को स्मरण किया जाता है। विडंबना यह है कि सामाजिक, राजनैतिक, साहित्यिक तथा कला के क्षेत्रों में अवदानकर्ताओं पर कृतियाँ रच दी जाती हैं किंतु अभियंताओं, वैज्ञानिकों, चिकित्सकों, तकनीशियनों आदि के महत्वपूर्ण अवदान प्राय: अचर्चित रह जाते हैं जबकि ऐसे अवदान देश ही नहीं विश्व में अगणित मनुष्यों और समूची मानवता को युगों तक लाभान्वित करते हैं।  

                              संयोगवश एम. व्ही. के सिर से बचपन में ही पिता का साया हट जाने पर उन्हें मामा और मैसूर के महाराजा की छत्रछाया मिली। अभियंता के रूप में उनका पहला गोपनीय प्रतिवेदन निराशाजनक होने पर भी उनके इग्जीक्टियूव इंजीनियर ने उन्हें दोबारा अवसर दिया तथा उनके अच्छे कार्य पर उनको शाबाशी भी दी। इसके बाद एम. व्ही.ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उनके समय में अभियांत्रिकी की तीन मूल शाखाओं सिविल, इलेक्ट्रिकल और मेकेनिकल  में ही शिक्षण होता था। एम. व्ही. ने सिविल इंजीनियर होते हुए भी इलेक्ट्रिकल और मेकेनिकल शाखाओं से संबंधित अध्ययन कर समस्याओं को सुलझाया। अंग्रेजी कहावत 'जैक ऑफ ऑल, मास्टर ऑफ नन' को बदलकर ;मास्टर ऑफ ऑल जैक ऑफ नन' कर दिया जाए तो वह एम. व्ही. पर पूरी तरह लागू हो जाएगी। जय प्रकाश नारायण ने एक बार कहा था 'माय लाइफ इस द हिस्ट्री ऑफ मिसिंग फॉरचून्स' (मेरा जीवन खोए हुए अवसरों की कहानी है), एम. व्ही. के संदर्भ में इसे भी बदल कर कहना होगा 'माय लाइफ इस द हिस्ट्री ऑफ कैचिंग फॉरचून्स' (मेरा जीवन पाए हुए अवसरों की कहानी है) एम. व्ही. ने भवन-सड़क निर्माण तक सीमित न रहते हुए जल प्रदाय, मल निकासी प्रणाली, सिंचाई प्रबंधन, आर्थिक नीति निर्माण, भारी उद्योग, बाढ़ नियंत्रण,  मैकेनिकल अभियांत्रिकी (बाँध द्वार का निर्माण), बंदरगाह निर्माण व प्रबंधन, नदी घाटी तथा बाढ़ नियंत्रण, रेल पथ प्रबंधन, कपड़ा उद्योग, तकनीकी शिक्षा नीति, विज्ञान संस्था की स्थापना, विश्व विद्यालय स्थापना, महिला महाविद्यालय स्थापना, चंदन तेल उद्योग, स्पात कारखाना, होटल स्थापना, दीवान के रूप में प्रशासन कार्य, जनसंखया नियंत्रण, महिला शिक्षा-विकास, अन्न उत्पादन, औदयौगिकीकरण, समन्वित परिवार संरक्षण आदि अनेक क्षेत्रों में नवाचार को प्रोत्साहित किया।        

                             एम. व्ही. की पर्यवेक्षण क्षमता और स्मरण शक्ति गजब की थी। वे एक बार जो पढ़ लेते, जिससे मिल लेते, जिसे देख लेते  वह लंबे समय तक विस्मृत न होता था। उनकी कर्मठता अनूठी थी। वार्धक्य का उन पर असर ही नहीं था। जब जो चुनौती सामने आती वे तरुणोचित उत्साह के साथ उसे जीतने चल पड़ते और सफलता पाकर ही रुकते। समय की पाबंदी और अनुशासन उनकी कार्य शक्ति के मूल में थे। 'विज्ञशिल्पी विश्वेश्वरैया' आधुनिक विश्वकर्मा की जियावन यात्रा का संक्षिप्त वर्णन है। हिंदी साहित्य में आत्मकथातमक साहित्य अपेक्षाकृत कम लिखा गया है। अभियंताओं में साहित्य लेखन की प्रवृत्ति अपवादस्वरूप ही मिलती है। अंग्रेजी के प्रति गुलामी की सीमा तक प्रेम के कारण भारतीय भाषाओं व उनके विकास में अभियंताओं का योगदान नगण्य है। एम. व्ही. के समय में अभियान्त्रिकी शिक्षा तथा प्रशासन की भाषा अंग्रेजी थी। उन्होंने प्रचुर मात्रा में स्तरीय तकनीकी लेखन किया। 'विज्ञशिल्पी विश्वेश्वरैया' के प्रशंसकों को उन्हीं की तरह अपने समय को ध्यान में रखते हुए अब भारतीय भाषाओं में गुणवत्तापूर्ण साहित्यिक और तकनीकी लेखन करना चाहिए। 'विज्ञशिल्पी विश्वेश्वरैया' इस दिशा में एक प्रभावी कदम है। 

                             'विज्ञशिल्पी विश्वेश्वरैया' के लेखक अभियंता सुरेन्द्र सिंह पँवार कुशल सिविल इंजीनियर होने  के साथ-साथ अच्छे कवि, निपुण समीक्षक, कर्मठ संपादक तथा पर्यटक व संस्मरणकार भी हैं। हिंदी में एम. व्ही. की जीवनी के माध्यम से किशोरों और युवाओं में अभियांत्रिकी के महत्व, अवदान तथा उपदेयता के बीज वपन कर उन्हें अभियांत्रिकी शिक्षा के प्रति आकर्षित कर देश को समर्थ और सुयोग्य अभियंता उपलब्ध कराने के महत उद्देश्य को लेकर प्रिय सुरेन्द्र भाई ने यह कार्य किया है। वे वास्तव में साधुवाद के पात्र हैं। इसके पूर्व आई. ई. आई. जबलपुर चैप्टर के कर्मठ सदस्य अभियंता कोमल चंद जैन से. नि. मुख्य अभियंता के संस्मरणों का ग्रंथ विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर के तत्वावधान में प्रकाशित किया जा चुका है। 'विज्ञशिल्पी विश्वेश्वरैया' इस कड़ी का अगला सोपान है। निकट भविष्य में बी.  टेक., एम. टेक. के छात्रों के लिए उत्तम  पाठ्य पुस्तकें हिंदी में प्रकाशित करने की दिशा में  भी कार्य जारी है। 'विज्ञशिल्पी विश्वेश्वरैया' का प्रकाशन इन्स्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स की राष्ट्रीय भाषा समिति को प्रेरित करे कि या अपने हर केंद्र को तकनीकी साहित्य लेखन-प्रकाशन हेतु प्रेरित करे। 

                             'विज्ञशिल्पी विश्वेश्वरैया' वस्तुत: गागर में सागर की तरह सारगर्भित है। एम. व्ही. की जिजीविषाजयी जीवन यात्रा को क्रमवार सरल, सुबोध, रोचक रूप में प्रस्तुत करना कठिन कार्य है जिसे भाई सुरेन्द्र ने सरसता बनाए रखकर पूरा किया है। 'विज्ञशिल्पी विश्वेश्वरैया' के लेखक की सजगता तथा सक्रियता  जबलपुर केंद्र को तकनीकी साहित्य लेखन-प्रकाशन की योजना बनाने और क्रियान्वित करने की प्रेरणा दे सकेगी। हम सब एम. व्ही. के जियावाँ का अल्पांश भी ग्रहण कर अपने अभियांत्रिकी ज्ञान से देश, समाज और विश्व के काम आ सकें तो जीवन सफल-सार्थक होगा। मुझे विश्वास है कि यह कृति लोकप्रिय ही नहीं होगी, पुरस्कृत भी की जाएगी।   
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संपर्क : आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', चेयरमैन आई.जी.एस. जबलपुर चैप्टर, संयोजक विश्ववाणी हिंदी संस्थान, 
४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन जबलपुर ४८२००१, चलभाष ९४२५१८३२४४ ईमेल salil.sanjiv@gmail.com  

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