कुल पेज दृश्य

शनिवार, 28 अक्तूबर 2023

नीराजना छंद, कविता, कुंडलिया, नैरंतरी छंद,

 

हिंदी के नए छंद १८
नीराजना छंद
*
लक्षण:
१. प्रति पंक्ति २१ मात्रा।
२. पदादि गुरु।
३. पदांत गुरु गुरु लघु गुरु।
४. यति ११ - १०।
लक्षण छंद:
एक - एक मनुपुत्र, साथ जीतें सदा।
आदि रहें गुरुदेव, न तब हो आपदा।।
हो तगणी गुरु अंत, छंद नीरजना।
मुग्ध हुए रजनीश, चंद्रिका नाचना।।
टीप:
एक - एक = ११, मनु पुत्र = १० (इक्ष्वाकु, नृग, शर्याति, दिष्ट,
धृष्ट, करुषय, नरिष्यन्त, प्रवध्र, नाभाग, कवि भागवत)
उदाहरण:
कामदेव - रति साथ, लिए नीराजना।
संयम हो निर्मूल, न करता याचना।।
हो संतुलन विराग - राग में साध्य है।
तोड़े सीमा मनुज, नहीं आराध्य है।।
२८-१०-२०१७
***
कविता:
सफाई
मैंने देखा सपना एक
उठा तुरत आलस को फेंक
बीजेपी ने कांग्रेस के
दरवाज़े पर करी सफाई
नीतीश ने भगवा कपड़ों का
गट्ठर ले करी धुलाई
माया झाड़ू लिए
मुलायम की राहों से बीनें काँटे
और मुलायम ममतामय हो
लगा रहे फतवों को चाँटे
जयललिता की देख दुर्दशा
करुणा-भर करूणानिधि रोयें
अब्दुल्ला श्रद्धा-सुमनों की
अवध पहुँच कर खेती बोयें
गज़ब! सोनिया ने
मनमोहन को
मन मंदिर में बैठाया
जन्म अष्टमी पर
गिरिधर का सोहर
सबको झूम सुनाया
स्वामी जी को गिरिजाघर में
प्रेयर करते हमने देखा
और शंकराचार्य मिले
मस्जिद में करते सबकी सेवा
मिले सिक्ख भाई कृपाण से
खापों के फैसले मिटाते
बम्बइया निर्देशक देखे
यौवन को कपडे पहनाते
डॉक्टर और वकील छोड़कर फीस
काम जल्दी निबटाते
न्यायाधीश एक पेशी में
केसों का फैसला सुनाते
थानेदार सड़क पर मंत्री जी का
था चालान कर रहा
बिना जेब के कपड़े पहने
टी. सी. बरतें बाँट हँस रहा
आर. टी. ओ. लाइसेंस दे रहा
बिना दलाल के सच्चे मानो
अगर देखना ऐसा सपना
चद्दर ओढ़ो लम्बी तानो
***
नैरंतरी छंद
बचपन बोले: उठ मत सो ले
उठ मत सो ले, सपने बो ले
सपने बो ले, अरमां तोले
अरमां तोले, जगकर भोले
जगकर भोले, मत बन शोले
मत बन शोले, बचपन बोले
अपनी भाषा मत बिसराओ, अपने स्वर में भी कुछ गाओ
अपने स्वर में भी कुछ गाओ, दिल की बातें तनिक बताओ
दिल की बातें तनिक बताओ, बाँहों में भर गले लगाओ
बाँहों में भर गले लगाओ, आपस की दूरियाँ मिटाओ
आपस की दूरियाँ मिटाओ, अँगुली बँध मुट्ठी हो जाओ
अँगुली बँध मुट्ठी हो जाओ, अपनी भाषा मत बिसराओ
२८-१०-२०१४

***

: कुंडलिया :

प्रथम पेट पूजा करें
0
प्रथम पेट पूजा करें, लक्ष्मी-पूजन बाद
मुँह में पानी आ रहा, सोच मिले कब स्वाद
सोच मिले कब स्वाद, भोग पहले खुद खा ले
दास राम का अधिक, राम से यह दिखला दे
कहे 'सलिल' कविराय, न चूकेंगे अवसर हम
बन घोटाला वीर, लगायें भोग खुद प्रथम
२८-१०-२०१३
***

कोई टिप्पणी नहीं: