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शनिवार, 30 सितंबर 2023

चंद्र मंत्र , दोहा, राम, शिव, तरही, रावण वध, दहेज

एक दोहा
अमिधा हो या लक्षणा, बिना व्यंजना सून
दोहे में हो व्यंजना, रसानन्द हो दून
३०.९.२०२०

दोहे दहेज़ पर
*
लें दहेज़ में स्नेह दें, जी भरकर सम्मान
संबंधों को मानिए, जीवन की रस-खान
*
कुलदीपक की जननी को, रखिए चाह-सहेज
दान ग्रहण कर ला सके, सच्चा यही दहेज
*
तीसमारखां गए थे, ले बाराती साथ
जीत न पाए हैं किला, आए खाली हाथ
*
शत्रुमर्दिनी अकेली, आयी बहुत प्रबुद्ध
कब्ज़ा घर भर पर किया, किया न लेकिन युद्ध
*
जो दहेज की माँग कर, घटा रहे निज मान
समझें जीवन भर नहीं, पाएँगे सम्मान
३०-९-२०१८
***
​​: शोध :
रावण ​वध ​की तिथि दशहरा ​नहीं​
*
न जाने क्यों, कब और किसके द्वारा विजयादशमी अर्थात दशहरा पर रावण-दाह की भ्रामक और गलत परंपरा आरम्भ हुई? रावण ब्राम्हण था जिसके वध से लगे ब्रम्ह हत्या के पाप हेतु सूर्यवंशी राम को प्रायश्चित्य करना पड़ा था। रावण वध के बाद उसकी अंत्येष्टि उसके अनुज विभीषण ने की थी, राम ने नहीं। रामलीला के बाद राम के बाण से रावण का दाह संस्कार किया जाना तथ्यात्मक रूप से पूरी तरह गलत, अप्रामाणिक और अस्वीकार्य है। रावण का जन्म दिल्ली के समीप एक गाँव में हुआ, सुर तथा असुर मौसेरे भाई थे जिन्होंने दो भिन्न संस्कृतियों और राज सत्ताओं को जन्म दिया। उनमें वैसा ही विकराल युद्ध हुआ जैसा द्वापर में चचेरे भाइयों कौरव-पांडव में हुआ, उसी तरह एक पक्ष से सत्ता छिन गई। रावण वध की तिथि जानने के लिए पद्म पुराण के पाताल खंड का अध्ययन करें।
पदम पुराण,पातालखंड
​ ​के अनुसार ‘युद्धकाल पौष शुक्ल द्वितीया से चैत्र कृष्ण चौदस तक
८७ दिन तक चले संग्राम के मध्य कारणों से १५ दिन युद्ध बंद रहा तथा हुआ। ​इस महासंग्राम​ का समापन लंकाधिराज रावण के संहार से हुआ। राम द्वारा रावण वध क्वार सुदी दशमी को नहीं चैत्र वदी चतुर्दशी को किया गया था।
ऋषि आरण्यक द्वारा सत्योद्घाटन- ​
पद्मपुराण​, पाताल खंड में श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ के प्रसंग में अश्व रक्षा के लिए जा रहे शत्रुध्न ऋषि आरण्यक के आश्रम में ​पहुँचकर, परिचय देकर प्रणाम करते ​हैं। शत्रुघ्न को गले से लगाकर प्रफुल्लित आरण्यक ऋषि बोले- ''गुरु का वचन सत्य हुआ। सारूप्य मोक्ष का समय आ गया।'' उन्होंने गुरू लोमश द्वारा पूर्णावतार राम के महात्म्य ​के उपदेश ​का उल्लेख कर कहा ​की गुरु ने कहा ​था कि जब श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा ​आश्रम में आयेगा, रामानुज शत्रुघ्न से भेंट होगी। वे तुम्हें राम के पास ​पहुँचा देंगे।
इसी के साथ ऋषि आरण्यक रामनाम की महिमा के साथ नर रूप में राम के जीवन वृत्त को तिथिवार उद्घाटित करते
​हैं- ''जनकपुरी में धनुषयज्ञ में राम-लक्ष्मण कें साथ विश्वामित्र का पहुँचना​,​ राम द्वारा धनुषभंग, राम-सीता विवाह ​आदि प्रसंग सुनाते हुए आरण्यक ने बताया विवाह के समय राम ​१५ वर्ष के और सीता ​६ वर्ष की ​थीं। विवाहोपरांत वे ​१२ वर्ष अयोध्या में रहे​ २७ वर्ष की आयु में राम के अभिषेक की तैयारी हुई मगर रानी कैकेई ​दुवारा राम वनवास का वर ​माँगने पर सीता व लक्ष्मण के साथ श्रीराम को चौदह वर्ष के वनवास में जाना पड़ा।
वनवास में राम प्रारंभिक
​३ दिन जल पीकर रहे, चौथे दिन से फलाहार लेना शुरू किया। ​पाँचवे दिन वे चित्रकूट पहुँचे। श्री राम ​ने ​चित्रकूट में​ १२ वर्ष ​प्रवास किया। ​१३वें वर्ष के प्रारंभ में राम, लक्ष्मण और सीता के साथ पंचवटी पहुँचे और शूर्प​णखा को कुरूप किया। माघ कृष्ण अष्टमी को वृन्द मुहूर्त में लंकाधिराज दशानन ने साधुवेश में सीता हरण किया। श्रीराम व्याकुल होकर सीता की खोज में लगे रहे। जटायु का उद्धार व शबरी मिलन के बाद ऋष्यमूक पर्वत पर पहुँचे, सुग्रीव से मित्रता कर बालि का बध किया।​ बाल्मीकि रामायण, राम चरित मानस तथा अन्य ग्रंथों के अनुसार राम ने वर्षाकाल में चार माह ऋष्यमूक पर्वत पर ​बिताए थे। ​मानस में श्री राम लक्ष्मण से कहते हैं-
​घन घमंड गरजत चहु ओरा। प्रियाहीन डरपत मन मोरा।।
आषाढ़ सुदी एकादशी से चातुर्मास प्रारंभ हुआ। शरद ऋतु के उत्तरार्द्ध यानी कार्तिक शुक्लपक्ष से वानरों ने सीता की खोज शुरू की। समुद्र तट पर कार्तिक शुक्ल नवमी को संपाती नामक गिद्ध ने बताया कि सीता लंका की अशोक वाटिका में हैं। तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल एकादशी (देवोत्थानी) को हनुमान ने ​सागर पार किया और रात में लंका प्रवेश कर सीता की खोज-बीन ​आरम्भ की।कार्तिक शुक्ल द्वादशी को अशोक वाटिका में शिंशुपा वृक्ष पर छिप गये और माता सीता को रामकथा सुनाई। कार्तिक शुक्ल तेरस को अशोक वाटिका विध्वं​कर, उसी दिन अक्षय कुमार का बध किया। कार्तिक शुक्ल चौदस को मेघनाद का ब्रह्मपाश में ​बँधकर दरबार में गये और लंकादहन किया। हनुमानजी ​ने ​कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा को वापसी में समुद्र पार किया। प्रफुल्लित वानर​ दल ​ने नाचते​-​गाते ​५ दिन मार्ग में लगाये और अगहन कृष्ण षष्ठी को मधुवन में आकर वन ध्वंस किया हनुमान की अगवाई में सभी वानर अगहन कृष्ण सप्तमी को श्रीराम के समक्ष पहुँचे, हाल-चाल दिये।
अगहन कृष्ण अष्टमी ​उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र विजय मुहूर्त में श्रीराम ने वानरों के साथ दक्षिण दिशा को कूच किया और ​७ दिन में किष्किंधा से समुद्र तट पहुचे। अगहन शुक्ल प्रतिपदा से तृतीया तक विश्राम किया। अगहन शुक्ल चतुर्थ को रावणानुज श्रीरामभक्त विभीषण शरणागत हुआ। अगहन शुक्ल पंचमी को समुद्र पार जाने के उपायों पर चर्चा हुई। सागर से मार्ग ​की ​याचना में श्रीराम ने अगहन शुक्ल षष्ठी से नवमी तक ​४ दिन अनशन किया। नवमी को अग्निवाण का संधान हुआ तो रत्नाकर प्रकट हुए और सेतुबंध का उपाय सुझाया। अगहन शुक्ल दशमी से तेरस तक ​४ दिन में श्रीराम सेतु बनकर तैयार हुआ।
अगहन शुक्ल चौदस को श्रीराम ने समुद्र पार सुवेल पर्वत पर प्रवास किया, अगहन शुक्ल पूर्णिमा से पौष कृष्ण द्वितीया तक ​३ दिन में वानरसेना सेतुमार्ग से समुद्र पार कर पाई। पौष कृष्ण तृतीया से दशमी तक एक सप्ताह लंका का घेराबंदी चली। पौष कृष्ण एकादशी को ​रावण के गुप्तचर ​सुक​-​ सारन ​वानर वेश धारण कर ​वानर सेना में घुस आये। पौष कृष्ण द्वादशी को वानरों की गणना हुई और ​उन्हें ​पहचान कर​ ​पकड़ा गया और शरणागत होने पर श्री राम द्वारा अभयदान दिया। पौष कृष्ण तेरस से अमावस्या तक रावण ने गोपनीय ढंग से सैन्याभ्यास किया।
​श्री राम द्वारा शांति-प्रयास का अंतिम उपाय करते हुए ​पौष शुक्ल प्रतिपदा को अंगद को दूत बनाकर भेजा गया।​ ​अंगद के विफल लौटने पर ​पौष शुक्ल द्वितीया से युद्ध आरंभ हुआ। अष्टमी तक वानरों व राक्षसों में घमासान युद्ध हुआ। पौष शुक्ल नवमी को मेघनाद द्वारा राम लक्ष्मण को नागपाश में ​जकड़ दिया गया। श्रीराम के कान में कपीश द्वारा पौष शुक्ल दशमी को गरुड़ मंत्र का जप किया गया, पौष शुक्ल एकादशी को गरुड़ का प्राकट्य हुआ और उन्होंने नागपाश काटकर राम-लक्ष्मण को मुक्त किया। पौष शुक्ल द्वादशी को ध्रूमाक्ष्य बध, पौष शुक्ल तेरस को कंपन बध, पौष शुक्ल चौदस से माघ कृष्ण प्रतिपदा तक 3 दिनों में कपीश नील द्वारा प्रहस्तादि का वध किया गया।
माघ कृष्ण द्वितीया से राम-रावण में तुमुल युद्ध प्रारम्भ हुआ। माघ कृष्ण चतुर्थी को रावण को भागना पड़ा। रावण ने माघ कृष्ण पंचमी से अष्टमी तक ​४ दिन में कुंभकरण को जगाया। माघ कृष्ण नवमी से शुरू हुए युद्ध में छठे दिन चौदस को कुंभकरण को श्रीराम ने मार गिराया। कुंभकरण बध पर माघ कृष्ण अमावस्या को शोक में रावण द्वारा युद्ध विराम किया गया। माघ शुक्ल प्रतिपदा से चतुर्थी तक युद्ध में विसतंतु आदि ​५ राक्षसों का बध हुआ। माघ शुक्ल पंचमी से सप्तमी तक युद्ध में अतिकाय मारा गया। माघ शुक्ल अष्टमी से द्वादशी तक युद्ध में निकुम्भ-कुम्भ ​वध, माघ शुक्ल तेरस से फागुन कृष्ण प्रतिपदा तक युद्ध में मकराक्ष वध हुआ।
फागुन कृष्ण द्वितीया को लक्ष्मण-मेघनाद युद्ध प्रारंभ हुआ। फागुन कृष्ण सप्तमी को लक्ष्मण मूर्छित हुए, उपचार आरम्भ हुआ। इस घटना के कारण फागुन कृष्ण तृतीया से सप्तमी तक ​५ दिन युद्ध विराम रहा। फागुन कृष्ण अष्टमी को वानरों ने यज्ञ विध्वंस किया, फागुन कृष्ण नवमी से फागुन कृष्ण तेरस तक चले युद्ध में लक्ष्मण ने मेघनाद को मार गिराया। इसके बाद फागुन कृष्ण चौदस को रावण की यज्ञ दीक्षा ली और फागुन कृष्ण अमावस्या को युद्ध के लिए प्रस्थान किया।
फागुन शुक्ल प्रतिपदा से पंचमी तक भयंकर युद्ध में अनगिनत राक्षसों का संहार हुआ। फागुन शुक्ल षष्टी से अष्टमी तक युद्ध में महापार्श्व आदि का राक्षसों का वध हुआ। फागुन शुक्ल नवमी को पुनः लक्ष्मण मूर्छित हुए, सुखेन वैद्य के परामर्श पर हनुमान द्रोणागिरि लाये और लक्ष्मण पुनः चैतन्य हुए।
राम-रावण युद्ध फागुन शुक्ल दशमी को पुनः प्रारंभ हुआ। फागुन शुक्ल एकादशी को मातलि द्वारा श्रीराम को विजयरथ दान किया। फागुन शुक्ल द्वादशी से रथारूढ़ राम का रावण से तक ​१८ दिन युद्ध चला। ​अंतत: ​चैत्र कृष्ण चौदस को दशानन रावण मौत के घाट उतारा गया।
युद्धकाल पौष शुक्ल द्वितीया से चैत्र कृष्ण चौदस तक ​८७ दिन​ युद्ध ​(७२ दिन​ ​युद्ध, ​१५ दिन ​​युद्ध विराम​)​ चला और श्रीराम विजयी हुए। चैत्र कृष्ण अमावस्या को विभीषण द्वारा रावण का दाह संस्कार किया गया।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (नव संवत्सर) से लंका में नये युग का प्रारंभ हुआ। चैत्र शुक्ल द्वितीया को विभीषण का राज्याभिषेक किया गया। अगले दिन चैत्र शुक्ल तृतीया का सीता की अग्निपरीक्षा ली गई और चैत्र शुक्ल चतुर्थी को पुष्पक विमान से राम, लक्ष्मण, सीता उत्तर दिशा में ​उड़कर, चैत्र शुक्ल पंचमी को भरद्वाज ​ऋषि ​के आश्रम में पहुँचे। चैत्र शुक्ल षष्ठी को नंदीग्राम में राम-भरत मिलन हुआ। चैत्र शुक्ल सप्तमी को अयोध्या में श्रीराम का राज्याभिषेक किया गया। यह पूरा आख्यान ऋषि आरण्यक ने शत्रुघ्न को सुनाया। फिर शत्रुघ्न ने आरण्यक को अयोध्या पहुँचाया, जहाँ अपने आराध्य पूर्णावतार श्रीराम के सान्निध्य में ब्रह्मरंध्र द्वारा सारूप्य मोक्ष पाया।
यह निर्विवाद है कि दशहरा को रावण वध तथा दीपावली को श्री राम के अयोध्या लौटने पर प्रजा द्वारा दीप पर्व मनाए जाने की लोक धरना मिथ्या, अप्रमाणिक और निराधार है। ​
​***
सामयिक कविता: फेर समय का
*
फेर समय का ईश्वर को भी बना गया- देखो फरियादी.
फेर समय का मनुज कर रहा निज घर की खुद ही बर्बादी..
फेर समय का आशंका, भय, डर सारे भारत पर हावी.
फेर समय का चैन मिला जब सुना फैसला, हुई मुनादी..
फेर समय का कोई न जीता और न हारा कोई यहाँ पर.
फेर समय का वहीं रहेंगे राम, रहे हैं अभी जहाँ पर..
फेर समय का ढाँचा टूटा, अब न दुबारा बन पायेगा.
फेर समय का न्यायालय से खुश न कोई भी रह पायेगा..
फेर समय का यह विवाद अब लखनऊ से दिल्ली जायेगा.
फेर समय का आम आदमी देख ठगा सा रह जायेगा..
फेर समय का फिर पचास सालों तक यूँ ही वाद चलेगा?
फेर समय का नासमझी का चलन देश को पुनः छलेगा??
फेर समय का नेताओं की फितरत अब भी वही रहेगी.
फेर समय का देश-प्रेम की चाहत अब भी नहीं जगेगी..
फेर समय का जातिवाद-दलवाद अभी भी नहीं मिटेगा.
फेर समय का धर्म और मजहब में मानव पुनः बँटेगा..
फेर समय का काले कोटोंवाले फिर से छा जायेंगे.
फेर समय का भक्तों से भगवान घिरेंगे-घबराएंगे..
फेर समय का सच-झूठे की परख तराजू तौल करेगी.
फेर समय का पट्टी बाँधे आँख ज़ख्म फिर हरा करेगी..
फेर समय का ईश्वर-अल्लाह, हिन्दू-मुस्लिम एक न होंगे.
फेर समय का भक्त और बंदे झगड़ेंगे, नेक न होंगे..
फेर समय का सच के वधिक अवध को अब भी नहीं तजेंगे.
फेर समय का छुरी बगल में लेकर नेता राम भजेंगे..
फेर समय का अख़बारों-टी.व्ही. पर झूठ कहा जायेगा.
फेर समय का पंडों-मुल्लों से इंसान छला जायेगा..
फेर समय का कब बदलेगा कोई तो यह हमें बताये?
फेर समय का भूल सियासत काश ज़िंदगी नगमे गाये..
फेर समय का राम-राम कह गले राम-रहमान मिल सकें.
फेर समय का रसनिधि से रसलीन मिलें रसखान खिल सकें..
फेर समय का इंसानों को भला-बुरा कह कब परखेगा?
फेर समय का गुणवानों को आदर देकर कब निरखेगा?
फेर समय का अब न सियासत के हाथों हम बनें खिलौने.
फेर समय का अब न किसी के घर में खाली रहें भगौने..
फेर समय का भारतवासी मिल भारत की जय गायें अब.
फेर समय का हिन्दी हो जगवाणी इस पर बलि जाएँ सब..
***
शुभकामना
विजयदशमी पर हम जीत सकें निज मन को
देश-धर्म के शत्रु हनें पल-पल निर्भय हो
रचें पंक्तियाँ ऐसी हों नव ऊर्जा वाहक
नमन मातु को करें जगतवाणी हिंदी हो
३०.९.२०१७
***
कार्य शाला
निम्न पंक्ति से सोरठा पूरा करें
*
मेरे प्यासे नैन, रात-रात भर जागते -मिथलेश बड़गैयां
मिलें नैन से नैन, सोचे दिल धड़कनें गिन -संजीव
*
मिले न मन को चैन, मीठी वाणी सुने बिन
कटे न काटे रैन, प्रभु सुमिरन कर निरंतर
३०.९.२०१६
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दोहा
सज्जन के सत्संग को, मान लीजिये स्वर्ग
दुर्जन से पाला पड़े, जितने पल है नर्क
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मिले पूर्णिमा में शशि-किरणों के संग खीर
स्वर्गोपम सुख पा 'सलिल', तज दे- धर मत धीर
*
आँखों में सपने हसीं, अधरों पर मुस्कान
सुख-दुःख की सीमा नहीं, श्रम कर हों गुणवान
३०.९.२०१५
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चंद्र मंत्र
चंद्र देव को भी प्रत्यक्ष भगवान माना जाता है। अमावस्या को छोड़कर चंद्रदेव अपनी सोलह कलाओं परिपूर्ण होकर साक्षात दर्शन देते हैं। सोमवार चंद्रदेव का दिन है।
चंद्रमा से शुभ फल प्राप्त करने के लिए इस दिन खीर जरूर खाना चाहिए। यदि कुंडली में चंद्र नीच का हो तो सफेद कपड़े पहनना चाहिए और श्वेत चंदन का तिलक लगाना चाहिए।
चंद्रमा का रत्न मोती है। चंद्र रत्न मोती को चांदी की अंगूठी में जड़वा कर कनिष्ठिका अंगुली में पहनना चाहिए। शीत से पीड़ित होने पर गले में मोतीयुक्त चांदी का अर्धचंद्र लॉकेट पहनने से फायदा होता है।
चंद्र मंत्र -
दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णव सम्भवम ।
नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुट भूषणं ।।
ॐ श्रां श्रीं श्रौं स: चन्द्रमसे नम:।।
ॐ ऐं क्लीं सोमाय नम:।

ॐ भूर्भुव: स्व: अमृतांगाय विदमहे कलारूपाय धीमहि तन्नो सोमो प्रचोदयात्।

***

दोहा सलिला:

राम सत्य हैं, राम शिव.......

*

राम सत्य हैं, राम शिव, सुन्दरतम हैं राम.

घट-घटवासी राम बिन सकल जगत बेकाम..



वध न सत्य का हो जहाँ, वही राम का धाम.

अवध सकल जग हो सके, यदि मन हो निष्काम..



न्यायालय ने कर दिया, आज दूध का दूध.

पानी का पानी हुआ, कह न सके अब दूध..



देव राम की सत्यता, गया न्याय भी मान.

राम लला को मान दे, पाया जन से मान..



राम लला प्रागट्य की, पावन भूमि सुरम्य.

अवधपुरी ही तीर्थ है, सुर-नर असुर प्रणम्य..



शुचि आस्था-विश्वास ही, बने राम का धाम.

तर्क न कागज कह सके, कहाँ रहे अभिराम?.



आस्थालय को भंगकर, आस्थालय निर्माण.

निष्प्राणित कर प्राण को, मिल न सके सम्प्राण..



मन्दिर से मस्जिद बने, करता नहीं क़ुबूल.

कहता है इस्लाम भी, मत कर ऐसी भूल..



बाबर-बाकी ने कभी, गुम्बद गढ़े- असत्य.

बनीं बाद में इमारतें, निंदनीय दुष्कृत्य..



सिर्फ देवता मत कहो, पुरुषोत्तम हैं राम.

राम काम निष्काम है, जननायक सुख-धाम..



जो शरणागत राम के, चरण-शरण दें राम.

सभी धर्म हैं राम के, चाहे कुछ हो नाम..



पैगम्बर प्रभु के नहीं, प्रभु ही हैं श्री राम.

पैगम्बर के प्रभु परम, अगम अगोचर राम..



सदा रहे, हैं, रहेंगे, हृदय-हृदय में राम.

दर्शन पायें भक्तजन, सहित जानकी वाम..



रामालय निर्माण में, दें मुस्लिम सहयोग.

सफल करें निज जन्म- है, यह दुर्लभ संयोग..



पंकिल चरण पखार कर, सलिल हो रहा धन्य.

मल हर निर्मल कर सके, इस सा पुण्य न अन्य..

***
तरही मुक्तिका ३ :
क्यों है?
*
रूह पहने हुए ये हाड़ का पिंजर क्यों है?
रूह सूरी है तो ये जिस्म कलिंजर क्यों है??

थी तो ज़रखेज़ ज़मीं, हमने ही बम पटके हैं.
और अब पूछते हैं ये ज़मीं बंजर क्यों है??

गले मिलने की है ख्वाहिश, ये संदेसा भेजा.
आये तो हाथ में दाबा हुआ खंजर क्यों है??

नाम से लगते रहे नेता शरीफों जैसे.
काम से वो कभी उड़िया, कभी कंजर क्यों है??

उसने बख्शी थी हमें हँसती हुई जो धरती.
आज रोती है बिलख, हाय ये मंजर क्यों है?
३०.९.२०१०
***

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