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बुधवार, 2 दिसंबर 2020

दोहा सलिला प्रतिभा

दोहा सलिला 
प्रतिभा 
संजीव 
*
प्रतिभा की प्रति भा रही, मन में चुभता शूल 
हाय सूद प्यारा अधिक, हुआ उपेक्षित मूल 
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गिरिधारी सिंह गह रहे, गए बाँसुरी भूल 
राधा निकट न आ रहीं, हेरे जमुना धूल 
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रहा न आरक्षण बिना, प्रतिभा का कुछ मोल 
अवसर है उसके लिए, जो क्रय कर ले तोल 
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भाई-भतीजावाद है, खुला हुआ बाजार 
प्रतिभा के गाहक नहीं, सत्य करो स्वीकार 
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अँधा बाँटे रेवड़ी, चीन्ह-चीन्ह कर रोज 
प्रतिभा क्यों कृष्णा हुई, कौन करेगा खोज?
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२-१२-२०२० 


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