*
अपनी अपनी ढपलियाँ, अपने-अपने राग.
कोयल-कंठी मौन है, सुरमणि होते काग.
*
जुगुनू जगमग कर रहे, सूर्य-चंद्र हैं अस्त.
मच्छर जी हैं जगजयी, पहलवान हैं पस्त.
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अपनी अपनी ढपलियाँ, अपने-अपने राग.
कोयल-कंठी मौन है, सुरमणि होते काग.
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जुगुनू जगमग कर रहे, सूर्य-चंद्र हैं अस्त.
मच्छर जी हैं जगजयी, पहलवान हैं पस्त.
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संसद में प्रहसन 'सलिल', देखे दुनिया दंग
रंग भंग में दाल ज्यों, करें रंग में भंग
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द्विपदियाँ (अश'आर)
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आँख आँख से मिलाकर, आँख आँख में डूबती।
पानी पानी है मुई, आँख रह गई देखती।।
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एड्स पीड़ित को मिलें एड्स, वो हारे न कभी।
मेरे मौला! मुझे सामर्थ्य, तनिक सी दे दे।।
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बहा है पर्वतों से सागरों तक आप 'सलिल'।
समय दे रोक बहावों को, ये गवारा ही नहीं।।
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आ काश! कि आकाश साथ-साथ देखकर।
संजीव तनिक हो सके, 'सलिल' के साथ तू।।
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द्विपदियाँ (अश'आर)
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आँख आँख से मिलाकर, आँख आँख में डूबती।
पानी पानी है मुई, आँख रह गई देखती।।
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एड्स पीड़ित को मिलें एड्स, वो हारे न कभी।
मेरे मौला! मुझे सामर्थ्य, तनिक सी दे दे।।
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बहा है पर्वतों से सागरों तक आप 'सलिल'।
समय दे रोक बहावों को, ये गवारा ही नहीं।।
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आ काश! कि आकाश साथ-साथ देखकर।
संजीव तनिक हो सके, 'सलिल' के साथ तू।।
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