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गुरुवार, 11 जुलाई 2019

सवैया मुक्तक


एक सवैया मुक्तक 

आसमान पर भा/व आम जनता/ का जीवन कठिन हो रहा 
त्राहिमाम सब ओ/र सँभल शासन, / जनता का धैर्य खो रहा 
पूंजीपतियों! धन / लिप्सा तज भा/व् घटा जन को राहत दो 
पेट भर सके मे/हनतकश भी, र/हे न भूखा, स्वप्न बो रहा

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