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शुक्रवार, 12 जुलाई 2019

दोहे चोट

समस्या पूर्ति चरण-तब लगती है चोट
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तब लगती है चोट जब, दुनिया करे सवाल. 
अपनी करनी जाँच लें, तो क्यों मचे बवाल.
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खुले आम बेपर्द जब, तब लगती है चोट.
हैं हमाम में नग्न सब, फिर भी रखते ओट.
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लाख गिला-शिकवा करें, सह लेते हम देर.
तब लगती है चोट, जब होता है अंधेर.
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होती जब निज आचरण, में न तनिक भी खोट.
दोषी करें सवाल जब, तब लगती है चोट.
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