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रविवार, 10 मार्च 2013

shiv bhajan: yamuna prasad chaturvedi, shanti devi, satish chandr verma, madhukar

महा शिव रात्रि पर विशेष :

शिव वन्दना

यमुना प्रसाद चतुर्वेदी 'प्रीतम'

*
जय जयति जगदाधार जगपति जय महेश नमामिते
वाहन वृषभ वर सिद्धि दायक विश्वनाथ उमापते
सिर गंग भव्य भुजंग भूसन भस्म अंग सुसोभिते
सुर जपति शिव, शशि धर कपाली, भूत पति शरणागते

जय जयति गौरीनाथ जय काशीश जय कामेश्वरम
कैलाशपति, जोगीश, जय भोगीश, वपु गोपेश्वरम
जय नील लोहित गरल-गर-हर-हर विभो विश्वंभरम
रस रास रति रमणीय रंजित नवल नृत्यति नटवरम

तत्तत्त ताता ता तताता थे इ तत्ता ताण्डवम
कर बजत डमरू डिमक-डिम-डिम गूंज मृदु गुंजित भवम
बम-बम बदत वेताल भूत पिशाच भूधर भैरवम
जय जयति खेचर यक्ष किन्नर नित्य नव गुण गौरवम

जय प्रणति जन पूरण मनोरथ करत मन महि रंजने
अघ मूरि हारी धूरि जटि तुम त्रिपुर अरि-दल गंजने
जय शूल पाणि पिनाक धर कंदर्प दर्प विमोचने
'प्रीतम' परसि पद होइ पावन हरहु कष्ट त्रिलोचने
*
शिव भजन :
गिरिजा कर सोलह सिंगार
स्व. शान्ति देवी वर्मा
*
गिरिजा कर सोलह सिंगार
चलीं शिव शंकर हृदय लुभांय...
*
मांग में सेंदुर, भाल पे बिंदी,
नैनन कजरा लगाय.
वेणी गूंथी मोतियन के संग,
चंपा-चमेली महकाय.
गिरिजा कर सोलह सिंगार...
*
बांह बाजूबंद, हाथ में कंगन,
नौलखा हार सुहाय.
कानन झुमका, नाक नथनिया,
बेसर हीरा भाय.
गिरिजा कर सोलह सिंगार...
*
कमर करधनी, पाँव पैजनिया,
घुँघरू रतन जडाय.
बिछिया में मणि, मुंदरी मुक्ता,
चलीं ठुमुक बल खांय.
गिरिजा कर सोलह सिंगार...
*
लंहगा लाल, चुनरिया पीली,
गोटी-जरी लगाय.
ओढे चदरिया पञ्च रंग की ,
शोभा बरनि न जाय.
गिरिजा कर सोलह सिंगार...
*
गज गामिनी हौले पग धरती,
मन ही मन मुसकाय.
नत नैनों मधुरिम बैनों से
अनकहनी कह जांय.
गिरिजा कर सोलह सिंगार...
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शिव भजन
नमामि शंकर
-सतीश चन्द्र वर्मा, भोपाल
*
नमामि शंकर, नमामि शंकर...
बदन में भस्मी, गले में विषधर.
नमामि शंकर, नमामि शंकर...
*
जटा से गंगा की धार निकली.
विराजे मस्तक पे चाँद टिकली.
सदा विचरते बने दिगंबर,
नमामि शंकर, नमामि शंकर...
*
तुम्हारे मंदिर में नित्य आऊँ.
तुम्हारी महिमा के गीत गाऊँ.
चढ़ाऊँ चंदन तुम्हें मैं घिसकर,
नमामि शंकर,नमामि शंकर...
*
तुम्हीं हमारे हो एक स्वामी.
कहाँ हो आओ, हे विश्वगामी!
हरो हमारी व्यथा को आकर,
नमामि शंकर,नमामि शंकर...
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शिवस्तोत्रं
- उदयभानु तिवारी 'मधुकर'
*
शिव अनंत शक्ति विश्व दीप्ति सत्य सुंदरम्.
प्रसीद मे प्रभो अनादिदेव जीवितेश्वरम्.
*
नमो-नमो सदाशिवं पिनाकपाणि शंकरं.
केशमध्य जान्हवी झरर्झरति सुनिर्झरं.
भालचंद्र अद्भुतं भुजंगमाल शोभितं.
नमोस्तु ब्रह्मरूप ज्ञानगम्य भूतभावनं.१.
*
करालकालकंटकं कृपालु सुर मुनीन्द्रकं.
ललाटअक्षधारकं प्रभो! त्रिलोकनायकं.
परं तपं शिवं शुभं निरंक नित्य चिन्तनं.
नमोस्तु विश्वरूप ज्ञानगम्य भूतभावनं.२.
*
महाश्वनं मृड़ोनटं त्रिशूलधर अरिंदमं.
महायशं जलेश्वरं वसुश्रवा धनागमं.
निरामयं निरंजनं महाधनं सनातनं.
नमोस्तु वेदरूप ज्ञानगम्य भूतभावनं.३.
*
कनकप्रभं दुराधरं सुराधिदेव अव्ययं.
परावरं प्रभंजनं वरेण्यछिन्नसंशयं.
अमृतपं अजितप्रियं उन्नघ्रमद्रयालयं.
नमोस्तु नीलरूप ज्ञानगम्य भूतभावनं.४.
*
परात्परं प्रभाकरं तमोहरं त्र्यम्बकं.
महाधिपं निरान्तकं स्तव्य कीर्तिभूषणं.
अनामयं मनोजवं चतुर्भुजं त्रिलोचनं.
नमोस्तु सोमरूप ज्ञानगम्य भूतभावनं.५.
*
स्तुत्य आम्नाय शम्भु शम्बरं परंशुभं.
महाहदं पदाम्बुजं रति: प्रतिक्षणं  मम.
विद्वतं विरोचनं परावरज्ञ सिद्धिदं.
नमोस्तु सौम्यरूप ज्ञानगम्य भूतभावनं.६.
*
आत्मभू: शाश्वतं नमोगतिं जगद्गुरुं.
अलभ्य भक्ति देहि मे करोतु प्रभु परं सुखं.
सुरेश्वरं महेश्वरं गणेश्वरं धनेश्वरं.
नमोस्तु सूक्ष्मरूप ज्ञानगम्य भूतभावनं.७.
*
शिवस्य नाम अमृतं 'उदय' त्रितापनाशनं.
करोतु जाप मे मनं नमो नमः शिवः शिवं.
मोक्षदं महामहेश ओंकार त्वं स्वयं.
नमोस्तु रूद्ररूप ज्ञानगम्य भूतभावनं.७.
*
पूजनं न अर्चनं न शक्ति-भक्ति साधनं.
जपं न योग आसनं न वन्दनं उपासनं
मनगुनंत प्रतिक्षणं शिवं शिवं शिवं शिवं. 
नमोस्तु शांतिरूप ज्ञानगम्य भूतभावनं.९.

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4 टिप्‍पणियां:

amitasharma ने कहा…

- amitasharma2000@yahoo.com

अदभुत रचना

नतमस्तक हो गई हूँ.........

अमिता

achal verma ekavita ने कहा…

achal verma ekavita


माँ भवानी को भी श्रिगार की आवश्यकता होती है
तो साधारण माँ बहनो का तो कहना ही क्या।
वैसे उनका शृंगार तो नैसर्गिक ही होता होगा?

achal verma ekavita ने कहा…

achal verma

बन्दना के इन सुरों में एक सुर मेरा मिलालें :

हे महादेव , देव महेश्वर
नयन तीन , माथे पर चंदा
राख लगाए पूरे तन पर ।...हे महादेव
गौरी के पति , सिर पर गंगा
नील कंठ में लिपता विषधर ।...हे महादेव
गण्पति के तुम पुज्य पिता प्रभु
कर त्रिशूल पहने बाघम्बर ।...हे महादेव
त्रिपुरारी डमरू हाथों में
तांडव नृत्य दिखाते नटवर ।...हे महादेव
पाँचों मुख से राम ही निकले
काशी पति तुम ही परमेश्वर ।...हे महादेव
हे दयालु तुम औढर दानी
सब पर कृपा करो करुणाकर ।....हे महादेव

sanjiv verma 'salil' ने कहा…

भक्ति भाव से पूरित शिव भजन हेतु नमन.
मूलतः शिव-शिवा अमूर्त, निर्गुण आदि शक्तियां हैं जिन्हें लोक मानस सगुण रूप में कल्पित कर आराधता है. कल्पना निर्गुण को सगुण बना कर अनेक काठ-प्रसंगों की रचना करा देती है तो श्रृंगार करना सहज स्वाभाविक है.
इस भजन की भाव-भूमि प्रिय का प्रियतम को वरण करने की है. त्रिलोक की जननी को कुछ असाध्य तो है नहीं, फिर ऐसे अवसर पर वह सज्जित न हो या स्वजन सज्जित न करें यह स्वाभाविक नहीं लगता.
भजनीक अपनी मनोभावना अभिव्यक्त करता है, अन्य भक्त की मनोभावना भिन्न हो सकती है... मुंडे-मुंडे मतिर्भिन्ना ही हरि अनंत हरि कथा अनंता के रूप में सामने आता है.
स्व. माताश्री के भजन संकलन राम नाम सुखदाई से एक प्रसंगानुकूल गीत उनके मनोभाव को प्रस्तुतकर्ता है-मात्र यह निवेदन है.