गीत सलिला:
तुम
संजीव 'सलिल'
*
कौन हो तुम?
पूछता हूँ हो विकल
पर मौन हो तुम.
कभी परछाईं बने सँग-साथ आते.
कभी छलिया की तरह मुझको छकाते.
कभी सारी पीर पल में दूर करते-
कभी ठेंगा दिखाकर हँसते खिझाते.
कभी विपदा तुम्हीं लगते
कभी राई-नौन हो तुम.
कौन हो तुम?
*
आँख मूँदी तो लगे आकर गले.
आँख खोली गुम, कि ज्यों सूरज ढले.
विपद में हो विकल चाहा 'लग जा गले'-
खुशी में चाहा कि अब मिलना टले.
मिटा दो अंतर से अंतर
जब, जहाँ हो,जौन हो तुम.
कौन हो तुम?
*
.
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in
तुम
संजीव 'सलिल'
*
कौन हो तुम?
पूछता हूँ हो विकल
पर मौन हो तुम.
कभी परछाईं बने सँग-साथ आते.
कभी छलिया की तरह मुझको छकाते.
कभी सारी पीर पल में दूर करते-
कभी ठेंगा दिखाकर हँसते खिझाते.
कभी विपदा तुम्हीं लगते
कभी राई-नौन हो तुम.
कौन हो तुम?
*
आँख मूँदी तो लगे आकर गले.
आँख खोली गुम, कि ज्यों सूरज ढले.
विपद में हो विकल चाहा 'लग जा गले'-
खुशी में चाहा कि अब मिलना टले.
मिटा दो अंतर से अंतर
जब, जहाँ हो,जौन हो तुम.
कौन हो तुम?
*
.
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in
5 टिप्पणियां:
vijay2@comcast.net द्वारा yahoogroups.com ekavita
आ० ’सलिल’ जी,
आपकी इतनी सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति चिंतन के लिए बाधित करती है ।
आपको बधाई ।
सस्नेह और सादर ।
विजय
आ . सलिल जी ,
नमस्कार ,बहुत सुंदर अभिव्यक्ति |
आध्यात्म में खींचकर ले जाती है ,कौन हो तुम ?स्वयं का स्वयं से दर्शन |
बधाई स्वीकार करें |
प्रणव भारती
आदरणीय आचार्य जी
बहुत सुन्दर !
सादर
प्रताप
kusumsinha2000@yahoo.com
ekavita
kitni sundar kavita sajiv ji man ko bahut hi achhi lagi bhagwan kare aap aisi hi sundar sundar kavitayein hamesha likhte rahen
kusum
ahutee@gmail.com द्वारा yahoogroups.com ekavita
आ० आचार्य जी,
यह गीत पढ कर मुग्ध हूँ । विशेष -
मिटा दो अंतर से अंतर
जब, जहाँ हो,जौन हो तुम.
कौन हो तुम?
कमल
एक टिप्पणी भेजें