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सोमवार, 5 मार्च 2012

मुक्तिका फितरत है यही फकीरों की --संजीव 'सलिल'

मुक्तिका
फितरत है यही फकीरों की
संजीव 'सलिल'
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फितरत है यही फकीरों की प्रभु नाम-पान को जाम करो.
खुद मुफलिस रहकर दुनिया के दर्दों का का तमाम करो..

अपनी मस्ती में मस्त रहो ले राम नाम आराम रहो.
उसको पाना है तो भूलो खुद को जग में गुमनाम करो..

जो किया पाप या पुण्य समर्पित प्रभु को कर निष्काम रहो.
फल की चिंता को भूल, सभी के हित में अर्पित काम करो..

माँगो तो रबसे ही माँगों, सब नामी तुम बेनाम रहो.
भू खटिया, नभ कंबल कर लो, चादर सूरज की घाम करो. 


जग वार और हथियार बने फिर भी तुम नम्र प्रणाम रहो.

वासना अगर वामांगी हो तो 'सलिल' न हारो वाम रहो..

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