मुक्तिका
संजीव 'सलिल'
*
अपनी गलती ढांक रहे हैं.
गप बेपर की हांक रहे हैं.
हुई एकता नारंगी सी.
अन्दर से दो फांक रहे हैं.
नित आशा के आसमान में
कोशिश-तारे टांक रहे हैं.
खैनी घिसें चुनावों में फिर
संसद में जा फांक रहे हैं.
औरों को आंका कम करके.
खुद को ज्यादा आंक रहे हैं.
*******
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in
संजीव 'सलिल'
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अपनी गलती ढांक रहे हैं.
गप बेपर की हांक रहे हैं.
हुई एकता नारंगी सी.
अन्दर से दो फांक रहे हैं.
नित आशा के आसमान में
कोशिश-तारे टांक रहे हैं.
खैनी घिसें चुनावों में फिर
संसद में जा फांक रहे हैं.
औरों को आंका कम करके.
खुद को ज्यादा आंक रहे हैं.
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