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शुक्रवार, 2 मार्च 2012

मुक्तिका क्या हुआ?? --संजीव 'सलिल'

मुक्तिका
क्या हुआ??
संजीव 'सलिल'
*
 होली भाँग ही गटकी नहीं तो क्या हुआ?
छान कर ठंडा जी भर पी नहीं तो क्या हुआ?? 

हो चुकी होगी हमेशा, मौसमी होली नहीं..
हर किसी से मिल गले, टोली नहीं तो क्या हुआ??

माँगकर गुझिया गटक, घर दोस्त के जा मत हिचक.
चौंक मत चौके में मेवा, घी नहीं तो क्या हुआ??

जो समाई आँख में उससे गले मिल खिलखिला.
दिल हुआ बागी मुनादी की नहीं तो क्या हुआ??

छूरियाँ भी हैं बगल में, राम भी मुँह में 'सलिल'
दूर रह नेता लिये गोली नहीं तो क्या हुआ??
बाग़ है दिल दाद सुनकर, हो रहा दिल बाग यूँ.

फूल-कलियाँ झूमतीं तितली नहीं तो क्या हुआ?? 

सौरभी मस्ती नशीली, ले प्रभाकर पहनता
केसरी बाना, हवा बागी नहीं तो क्या हुआ??

खूबसूरत कह रहे सीरत मगर परखी नहीं.
ब्याज प्यारा मूल गर बाकी नहीं तो क्या हुआ..

सँग हबीबों का मिले तो कौन चाहेगा नहीं
ख़ास खाते आम गो फसली नहीं तो क्या हुआ??

धूप-छाँवी ज़िंदगी में, शोक को सुख मान ले.
हो चुकी जो आज वह होली नहीं तो क्या हुआ??

केसरी बालम कहाँ है? खोजतीं पिचकारियाँ.
आँख में सपना धनी धानी नहीं तो क्या हुआ??

दुश्मनों से दोस्ती कर, दोस्त को दुश्मन न कर.
यार से की यार ने यारी नहीं तो क्या हुआ??

नाज़नीनें चेहरे पर प्यार से मलतीं गुलाल
अबके किस्मत आपकी चमकी नहीं तो क्या हुआ?

श्री लुटाये वास्तव में, जब बरसता अम्बरीश.
'सलिल' पाता बूँद भर पानी नहीं तो क्या हुआ??

***
बह्र: बहरे रमल मुसम्मन महजूफ
अब(२)/के(१)/किस्(२)/मत(२)     आ(२)/प(१)/की(२)/चम(२)      की(२)/न्(१)/ही(२)/तो(२)      क्या(२)/हू(१)/आ(२)

२१२२  २१२२  २१२२  २१२

फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन 
रदीफ: नहीं तो क्या हुआ 
काफिया: ई की मात्रा (चमकी, आई, बिजली, बाकी, तेरी, मेरी, थी आदि)

10 टिप्‍पणियां:

AVINASH S BAGDE ने कहा…

AVINASH S BAGDE
बेहतरीन सी इक ग़ज़ल लिखी है आपने सलील,
इसमे कही भी नाम मेरा है ही नहीं तो क्या हुआ???

Saurabh Pandey ने कहा…

Saurabh Pandey

वाह वाह, आदरणीय सलिलजी, क्या अंदाज़ है..!

यह भी एक प्रयोग ही है. वाह-वाह !



मतले के बाद वाले शेर (पहले शेर) को थोड़ा फिर से देख लें. ऐसा मुझे लगता है.

सादर

Ambarish Srivastava ने कहा…

Ambarish Srivastava

जय हो जय हो आदरणीय आचार्य जी , बहुत खूबसूरत क्विक ग़ज़ल कही है आपने ...कृपया हार्दिक बधाई स्वीकारें |

फागुनी मस्ती है छाई, मौज मन में आ रही.

दिलरुबा दिल की ग़ज़ल दिखती नहीं तो क्या हुआ ??

Arun Kumar Pandey 'Abhinav' ने कहा…

Arun Kumar Pandey 'Abhinav'
जो समाई आँख में उससे गले मिल खिलखिला.
दिल हुआ बागी मुनादी की नहीं तो क्या हुआ??

छूरियाँ भी हैं बगल में, राम भी मुँह में 'सलिल'
दूर रह नेता लिये गोली नहीं तो क्या हुआ??
वाह वाह आचार्यवर मन हुलसित हो गया इस ग़ज़ल को पढ़कर !!

Ganesh Jee "Bagi" ने कहा…

Ganesh Jee "Bagi"

क्या बात है आचार्य जी, केवल टिप्पणियों को गलिया(इकठ्ठा) दिए तो एक खुबसूरत ग़ज़ल , बहुत खूब , आपका यह अंदाज भी खुबसूरत है, मेरा नाम भी आपकी ग़ज़ल मे है, इस बात पर विशेष बधाई स्वीकार करें ।

dilbag virk ने कहा…

dilbag virk

सबको समेट लिया मान्यवर

जय हो.........

धर्मेन्द्र कुमार सिंह ने कहा…

धर्मेन्द्र कुमार सिंह

क्या बात है सलिल जी इस निराले अंदाज के लिए बधाई स्वीकार करें

satish mapatpuri ने कहा…

satish mapatpuri

केसरी बालम कहाँ है? खोजतीं पिचकारियाँ.
आँख में सपना धनी धानी नहीं तो क्या हुआ??
बेहतरीन ....... बहुत सुन्दर आचार्य जी ............. होली की अग्रिम बधाई

Rana Pratap Singh ने कहा…

Rana Pratap Singh

क्या बात है आचार्य जी|

PRAN SHARMA ने कहा…

MUKTIKA ( GAZAL ) KAA HAR SHER
MAIN TEEN BAAR PADH GAYAA HUN .
HAR BAR HAR SHER MEIN BAHUT KUCHH
HAASIL KIYAA HAI . QAAFIYA AUR
RADEEF KAA KHOOB NIBAAH HUAA HAI .