दोहा सलिला:
गले मिले दोहा यमक
गले मिले दोहा यमक
संजीव 'सलिल'
*
दिलवर का दिल वर लिया, दिल ने साधा काम.
दिल ने दिल को कर दिया, है दिलवर के नाम..
*
जीवन जीने के लिये, जी वन कह इन्सान.
वन न अगर जी सका तो, भू होगी शमशान..
*
मंजिल सर कर मगर हो, ठंडा सर मत भूल.
कर को कर से मिला कर, बढ़ चल यही उसूल..
*
जिसके सर चढ़ बोलती, 'सलिल' सफलता एक.
वह केसर सा श्रेष्ठ हो, कैसे बिना विवेक..
*
टेक यही बिन टेक के, मंजिल पाऊँ आज.
बिना टेक अभिनय करूँ दर्शक-दिल पर राज..
*
दिल पर बिजली गिराकर, हुए लापता आप.
'सलिल' ला पता आपका, करे प्रेम का जाप..
*
पौधों में जल डाल- दें, काष्ठ हवा फल फूल.
बैठ डाल पर डाल को काट न- होगी भूल..
*
वाह न कर बिन काम के, चाह न कर बिन काज.
वाहन बन निर्माण का, हो उन्नति का राज..
*
काज-बटन के काज बिन, रहता वस्त्र अपूर्ण.
बिना धार तलवार कब. हो पाती है पूर्ण?.
*
मन भर खा भरता नहीं, मन- पर्याप्त छटाक.
बाटी-भरता खा रहे, गरमागरम फटाक..
*
संज्ञा के बदले हुए, सर्वनाम उपयोग.
सर्व नाम हरि के 'सलिल', है सुन्दर संयोग..
***
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दिलवर का दिल वर लिया, दिल ने साधा काम.
दिल ने दिल को कर दिया, है दिलवर के नाम..
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जीवन जीने के लिये, जी वन कह इन्सान.
वन न अगर जी सका तो, भू होगी शमशान..
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मंजिल सर कर मगर हो, ठंडा सर मत भूल.
कर को कर से मिला कर, बढ़ चल यही उसूल..
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जिसके सर चढ़ बोलती, 'सलिल' सफलता एक.
वह केसर सा श्रेष्ठ हो, कैसे बिना विवेक..
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टेक यही बिन टेक के, मंजिल पाऊँ आज.
बिना टेक अभिनय करूँ दर्शक-दिल पर राज..
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दिल पर बिजली गिराकर, हुए लापता आप.
'सलिल' ला पता आपका, करे प्रेम का जाप..
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पौधों में जल डाल- दें, काष्ठ हवा फल फूल.
बैठ डाल पर डाल को काट न- होगी भूल..
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वाह न कर बिन काम के, चाह न कर बिन काज.
वाहन बन निर्माण का, हो उन्नति का राज..
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काज-बटन के काज बिन, रहता वस्त्र अपूर्ण.
बिना धार तलवार कब. हो पाती है पूर्ण?.
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मन भर खा भरता नहीं, मन- पर्याप्त छटाक.
बाटी-भरता खा रहे, गरमागरम फटाक..
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संज्ञा के बदले हुए, सर्वनाम उपयोग.
सर्व नाम हरि के 'सलिल', है सुन्दर संयोग..
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6 टिप्पणियां:
आदरणीय सलिल जी,
यमक से चमकते हुए दोहों के लिए साधुवाद स्वीकार करें।
सादर
धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’
आ० आचार्य जी
सभी दोहे-यमक बहुत सुन्दर भाव लिए हैं। आपको बहुत-बहुत बधाई। इनमें से ये विशेष भाया -
दिलवर का दिल वर लिया, दिल ने साधा काम.
दिल ने दिल को कर दिया, है दिलवर के नाम..
सन्तोष कुमार सिंह
--- On Sun, 6/11/11
धर्मेन्द्र जी!
आभार. आप की कलम से यमकयुक्त दोहों की प्रतीक्षा है.
आपका आभार शत-शत.
सिंह को हो संतोष तो, सभी मनायें खैर.
'सलिल' कुमार कु-मार से, बचे भुलाये बैर..
दिल पर बिजली गिराकर, हुए लापता आप.
'सलिल' ला पता आपका, करे प्रेम का जाप..
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पौधों में जल डाल- दें, काष्ठ हवा फल फूल.
बैठ डाल पर डाल को काट न- होगी भूल..
....bahut sundar arthpurn rachna prastuti hetu aabhar!
school ke din yaad aa gaye..
आचार्य जी !
बहुत सुन्दर और अभिनव प्रयोग किया है आपने |
"जिसके सर चढ़ बोलती, 'सलिल' सफलता एक.
वह केसर सा श्रेष्ठ हो, कैसे बिना विवेक.."
"टेक यही बिन टेक के, मंजिल पाऊँ आज.
बिना टेक अभिनय करूँ दर्शक-दिल पर राज.."
"वाह न कर बिन काम के, चाह न कर बिन काज.
वाहन बन निर्माण का, हो उन्नति का राज.."
वाह ! वाह !! यमक भी समृद्ध हुआ है और हिंदी साहित्य भी |
बंधाई स्वीकारें !!!
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