गीत
मीत तुम्हारी राह हेरता...
संजीव 'सलिल'
*
मीत तुम्हारी राह हेरता...
*
सुधियों के उपवन में तुमने
वासंती शत सुमन खिलाये.
विकल अकेले प्राण देखकर-
भ्रमर बने तुम, गीत सुनाये.
चाह जगा कर आह हुए गुम
मूँदे नयन दरश करते हम-
आँख खुली तो तुम्हें न पाकर
मन बौराये, तन भरमाये..
मुखर रहूँ या मौन रहूँ पर
मन ही मन में तुम्हें टेरता.
मीत तुम्हारी राह हेरता...
*
मन्दिर मस्जिद गिरिजाघर में
तुम्हें खोजकर हार गया हूँ.
बाहर खोजा, भीतर पाया-
खुद को तुम पर वार गया हूँ..
नेह नर्मदा के निनाद सा
अनहद नाद सुनाते हो तुम-
ओ रस-रसिया!, ओ मन बसिया!
पार न पाकर पार गया हूँ.
ताना-बाना बुने बुने कबीरा
किन्तु न घिरता, नहीं घेरता.
मीत तुम्हारी राह हेरता...
*****************
दिव्यनर्मदा.ब्लॉगस्पोट,कॉम
मीत तुम्हारी राह हेरता...
संजीव 'सलिल'
*
मीत तुम्हारी राह हेरता...
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सुधियों के उपवन में तुमने
वासंती शत सुमन खिलाये.
विकल अकेले प्राण देखकर-
भ्रमर बने तुम, गीत सुनाये.
चाह जगा कर आह हुए गुम
मूँदे नयन दरश करते हम-
आँख खुली तो तुम्हें न पाकर
मन बौराये, तन भरमाये..
मुखर रहूँ या मौन रहूँ पर
मन ही मन में तुम्हें टेरता.
मीत तुम्हारी राह हेरता...
*
मन्दिर मस्जिद गिरिजाघर में
तुम्हें खोजकर हार गया हूँ.
बाहर खोजा, भीतर पाया-
खुद को तुम पर वार गया हूँ..
नेह नर्मदा के निनाद सा
अनहद नाद सुनाते हो तुम-
ओ रस-रसिया!, ओ मन बसिया!
पार न पाकर पार गया हूँ.
ताना-बाना बुने बुने कबीरा
किन्तु न घिरता, नहीं घेरता.
मीत तुम्हारी राह हेरता...
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दिव्यनर्मदा.ब्लॉगस्पोट,कॉम
5 टिप्पणियां:
deepti gupta
drdeepti25@yahoo.co.in
मूँदे नयन दरश करते हम-
आँख खुली तो तुम्हें न पाकर
मन बौराये, तन भरमाये..
मुखर रहूँ या मौन रहूँ पर
मन ही मन में तुम्हें टेरता.
मीत तुम्हारी राह हेरता...
बाहर खोजा, भीतर पाया-
खुद को तुम पर वार गया हूँ..
संजीव जी,
अति सुंदर भाव, सुन्दर शब्द गुंथन .....!
बधाई !
दीप्ति
vijay2@comcast.net ✆ द्वारा yahoogroups.com
आ० संजीव ’सलिल’ जी,
आपकी कविता पढ़ कर आनन्द आया । विशेषकर....
आँख खुली तो तुम्हें न पाकर
मन बौराये, तन भरमाये..
मुखर रहूँ या मौन रहूँ पर
मन ही मन में तुम्हें टेरता.
मीत तुम्हारी राह हेरता...
विजय निकोर
sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com
आ० आचार्य जी ,
भारतीय दर्शन का सार निचोड़ता हुआ अत्यंत पभावी गीत के लिये
आपको साधुवाद
कमल
Pratap Singh ✆ pratapsingh1971@gmail.com द्वारा yahoogroups.com
pratapsingh1971@gmail.com
आदरणीय आचार्य जी
दिव्य गीत ! अति सुन्दर !
सादर
प्रताप
बहुत धन्यवाद.
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