कुल पेज दृश्य

सोमवार, 14 नवंबर 2011

दोहा सलिला: गले मिले दोहा यमक -- संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
गले मिले दोहा यमक                                                 
संजीव 'सलिल'
*
सीना चीरें पवनसुत, दिखे राम का नाम.
सीना सी- ना जानता, जाने कौन अनाम..
*
रखा सिया ने मुँह सिया, मूढ़ रजक वाचाल.
जन-प्रतिनिधि के पाप से, अवध-ग्रस गया काल..
*
अवध अ-वध-पथ-च्युत हुआ, सच का वध अक्षम्य.
रम्य राम निन्दित हुए, रामा रमा प्रणम्य..
*
कर धन गह कर दिवाली, मना रहे हैं नित्य.
करधन-पायल ठुमकती, देखें विहँस अनित्य..
*
पी मत खा ले जाम तू, यह है नेक सलाह.
यातायात न जाम हो, नाहक सुबहो-शाम..
*
माँग न रम पी ले शहद, पायेगा नव शक्ति.
नरम जीभ टूटे नहीं, दाँत न जाने युक्ति..
*
जीना मुश्किल हो रहा, 'जी ना' कहें न आप.
जीना बनवायें 'सलिल', छत तक सीढ़ी नाप..
*
खान-पान के बाद लें, पान मान का आप.
मान-दान वर-दान कर, पायें कन्या-दान..
*
खो-खोकर ईमान-सच, खुद से खुद ही हार.
खो-खो खेले झूठ सँग, मानव-मति बलिहार..
*
मत ललचा आकाश यूँ, बाँहों में आ काश.
गले दामिनी के लगूँ, तोड़ मृदा का पाश..
*
कंठ कर रहे तर लिये, कर बोतल औ' आस.
तर जायें भव-पाश से, ले अधरों पर हास..
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'

http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in



2 टिप्‍पणियां:

sn Sharma ✆ ahutee@gmail.com ने कहा…

sn Sharma ✆ ahutee@gmail.com

आ० आचार्य जी,
अति सुन्दर यमक की चमक | विशेष

मत ललचा आकाश यूँ, बाँहों में आ काश.
गले दामिनी के लगूँ, तोड़ मृदा का पाश..
सादर ,
कमल

vijay2@comcast.net ने कहा…

vijay2@comcast.net ✆ द्वारा yahoogroups.com

१६ नवम्बर

ekavita


आ० संजीव ’सलिल’ जी,

सुन्दर दोहों के लिए बधाई ।

विजय निकोर