दिव्य नर्मदा के पाठकों के लिए लावण्यम्`~अन्तर्मन्`के सौजन्य से प्रस्तुत है स्व पं. नरेन्द्र शर्मा की रचना श्री राधा मोहन
यदा यदा ही धर्मस्य,
ग्लानिर्भवति भारत..
अभ्युत्थानम अधर्मस्य
तदात्मानम सृजाम्यहम
परित्राणायाय साधुनाम,
विनाशायच दुष्कृताम
धर्म सँस्थापनार्थाय,
सँभावामि, युगे, युगे ! "
*********************
श्री राधा मोहन,
श्याम शोभन,
अँग कटि पीताँबरम
जयति जय जय,
जयति जय जय ,
जयति श्री राधा वरम्
आरती आनँदघन,
घनश्याम की अब कीजिये,
कीजिये विनीती ,
हमेँ, शुभ ~ लाभ,
श्री यश दीजिये
दीजिये निज भक्ति का वरदान
श्रीधर गिरिवरम् ..
जयति जय जय,
जयति जय जय ,
जयति श्री राधा वरम्
*********************************
रचनाकार [स्व. पँ. नरेन्द्र शर्मा ]
3 टिप्पणियां:
MAn bhav vibhor ho gaya.
जय राधा मोहन |
पंडितजी को नमन |
अवनीश तिवारी
saras
एक टिप्पणी भेजें