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रविवार, 30 अगस्त 2009

गीतिका : आचार्य संजीव 'सलिल'

गीतिका :

आचार्य संजीव 'सलिल'

*

आदमी ही भला मेरा गर करेंगे.

बदी करने से तारे भी डरेंगे.

बिना मतलब मदद कर दे किसी की

दुआ के फूल तुझ पर तब झरेंगे.

कलम थामे, न जो कहते हकीकत

समय से पहले ही बेबस मरेंगे.

नरमदा नेह की जो नहाते हैं

बिना तारे किसी के खुद तरेंगे.

न रुकते जो 'सलिल' सम सतत बहते

सुनिश्चित मानिये वे जय वरेंगे.

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6 टिप्‍पणियां:

संगीता पुरी ... ने कहा…

बहुत सुंदर रचना !!

August 28, 2009 9:45 PM

वाणी गीत ... ने कहा…

कलम थामे, न जो कहते हकीकत ..समय से पहले ही बेबस मरेंगे...सही है.
न रुकते जो 'सलिल' सम सतत बहते..सुनिश्चित मानिये वे जय वरेंगे.
आप यूँ ही सतत बहते लिखते रहें..शुभकामनायें..!!

August 29, 2009 7:10 AM

anshumaan saxena, bangluru ने कहा…

prabhavpoorn rachna.

Dr.vivek saxena ने कहा…

दिव्य नर्मदा एक अभिनव प्रयास है. नेट पर हिंदी के प्रसार में इसकी भूमिका सराहनीय रहेगी. असीम शुभकामनायें.

डॉ. विवेक सक्सेना
नरसिंगपुर
9424762713

Divya Narmada ने कहा…

आप सबको धन्यवाद.

anchit nigam ने कहा…

man bhyee.