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बुधवार, 29 जुलाई 2009

लघु कथा: विजय दिवस

लघु कथा

विजय दिवस

आचार्य संजीव 'सलिल'

करगिल विजय की वर्षगांठ को विजय दिवस के रूप में मनाये जाने की खबर पाकर एक मित्र बोले-

'क्या चोर या बदमाश को घर से निकाल बाहर करना विजय कहलाता है?'

''पड़ोसियों को अपने घर से निकल बाहर करने के लिए देश-हितों की उपेक्षा, सीमाओं की अनदेखी, राजनैतिक मतभेदों को राष्ट्रीयता पर वरीयता और पड़ोसियों की ज्यादतियों को सहन करने की बुरी आदत (कुटैव या लत) पर विजय पाने की वर्ष गांठ को विजय दिवस कहना ठीक ही तो है.'' मैंने कहा.

'इसमें गर्व करने जैसा क्या है? यह तो सैनिकों का फ़र्ज़ है, उन्हें इसकी तनखा मिलती है.' -मित्र बोले.

'''तनखा तो हर कर्मचारी को मिलती है लेकिन कितने हैं जो जान पर खेलकर भी फ़र्ज़ निभाते हैं. सैनिक सीमा से जान बचाकर भाग खड़े होते तो हम और आप कैसे बचते?''

'यह तो सेना में भरती होते समय उन्हें पता रहता है.'

पता तो नेताओं को भी रहता है कि उन्हें आम जनता-और देश के हित में काम करना है, वकील जानता है कि उसे मुवक्किल के हित को बचाना है, न्यायाधीश जानता है कि उसे निष्पक्ष रहना है, व्यापारी जानता है कि उसे शुद्ध माल कम से कम मुनाफे में बेचना है, अफसर जानता है कि उसे जनता कि सेवा करना है पर कोई करता है क्या? सेना ने अपने फ़र्ज़ को दिलो-जां से अंजाम दिया इसीलिये वे तारीफ और सलामी के हकदार हैं. विजय दिवस उनके बलिदानों की याद में हमारी श्रद्धांजलि है, इससे नयी पीढी को प्रेरणा मिलेगी.''

प्रगतिवादी मित्र भुनभुनाते हुए सर झुकाए आगे बढ़ गए..

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15 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

salil ji
vijay diwash laghukatha bahut acchi lagi.bahut kam log hai jo aisa likhane ka sahas kar pate hai.bahut bahut badhai.
ravindra khare akela
united bank,zone-2,m.p.nagar,bhopal.09893683285

दिव्य नर्मदा divya narmada ने कहा…

many many thankas. koyee to hai kadradaan zamane men

मोहिन्दर कुमार … ने कहा…

मोहिन्दर कुमार …
बहुत सही और सुन्दर लिखा आपने... शब्दों के हेर फ़ेर से सही को गलत करने वाले बहुत मिल जाते हैं. सच क्या है इसके लिये पैनी नजर और जानकारी का होना आवश्यक है

August 4, 2009 1:03 PM

निधि अग्रवाल … ने कहा…

अभार सलिल जी, गहरी सोच के साथ लिखी गयी लघुकथा है।

August 4, 2009 1:05 PM

बेनामी … ने कहा…

Great Short Story.

Alok Kataria

August 4, 2009 1:06 PM

PRAN SHARMA … ने कहा…

EK VICHARNIY LAGHUKATHA.BADHAAEE,

August 4, 2009 1:48 PM

Dr. Smt. ajit gupta … ने कहा…

आपने उन छिपे रुस्‍तम को सही जगह पर ही जवाब दे दिया था। मेरा भी मन हुआ कि उन्‍हें कुछ लिखा जाए फिर जब गुरुजी ने ही जवाब दे दिया हो तो हम शिष्‍यों को तो चुप रहना ही था, फिर वे छिपकर वार कर रहे थे। लघुकथा के रूप में आपने उस घटना को पिरोकर एक श्रेष्‍ठ लघुकथा का निर्माण किया इसके लिए हम आपके आभारी हैं।

August 4, 2009 5:41 PM

rachana ने कहा…

rachana ने कहा…
acharya ji kya sahi kaha malum to sabko hota hai apka farz par pura kaoun karta hai yadi sabhi pura karne lagen to desh svarg se bhi sunder hojayega
sunder kahani ke kiye badhai
saader
rachana

August 4, 2009 7:35 PM

KK Yadav … ने कहा…

Chhote men hi ghav kare gambhir...prabhavshali laghukatah !!

August 5, 2009 10:15 AM

अभिषेक सागर … ने कहा…

बहुत अच्छा आलेख, बधाई।

August 4, 2009 1:10 PM

Dr.Sadhana Verma ने कहा…

Herat touchjng short story.

M.M.Chatterji ने कहा…

bahut achchhee laghukatha jo vichar ke liye prerit karti hai.

डाकिया बाबू … ने कहा…

आइये हम सभी आजादी के इस जश्न में शामिल हों और भारत को एक समृद्ध राष्ट्र बनायें.
स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें !! जय हिंद !! जय भारत !!

August 14, 2009 10:16 PM

pramod jain. ने कहा…

nice one.

Divya Narmada ने कहा…

आप सभी को सादर धन्यवाद.