उन्नीसवीं सदी में गद्य में एक नई विधा का विकास हुआ जिसे आधुनिक (नई) कहानी दिया गया। आधुनिक कहानी ने अंग्रेजी से हिंदी तक की यात्रा बंगला के माध्यम से की। पारंपरिक कहानी में मनोरंजकता तथा लोक कल्याण को प्रधानता दी गयी थी। इसका उद्देश्य दुराचार पर सदाचार की विजय दिखाकर, किसी असाधारण व्यक्ति के अवदान और चरित्र की चर्चा कर, उसके जीवन संघर्षों तथा जीवट को दिखाकर पाठक / श्रोता को प्रेरणा देना होता था।
आधुनिक कहानी में यथार्थ तथा विसंगति को केंद्र में रखा गया है। आधुनिक कहानी शिल्प प्रधान है। इसका उद्देश्य विडम्बनाओं को उद्घाटित करना है, उसका निराकरण करना नहीं।इसीलिए आधुनिक कहानी में प्राय: प्रेरणा का अभाव होता है। विसंगति और विडंबना मात्र का चित्रण समाज की आधी-अधूरी और नकारात्मक छवि प्रस्तुत करती है। आधुनिक कहानी आदर्श स्थापित नहीं करती अपितु आदर्श छवियों को ध्वस्त करती है।
कहानी की परिभाषा-
प्रेमचन्द - कहानी वह ध्रुपद की तान है, जिसमें गायक महफिल शुरू होते ही अपनी संपूर्ण प्रतिभा दिखा देता है, एक क्षण में चित्त को इतने माधुर्य से परिपूर्ण कर देता है, जितना रात भर गाना सुनने से भी नहीं हो सकता।
कहानी (गल्प) एक रचना है जिसमें जीवन के किसी एक अंग या किसी एक मनोभाव को प्रदर्शित करना ही लेखक का उद्देश्य रहता है। उसके चरित्र, उसकी शैली, उसका कथा-विन्यास, सब उसी एक भाव को पुष्ट करते हैं। उपन्यास की भाँति उसमें मानव-जीवन का संपूर्ण तथा बृहत रूप दिखाने का प्रयास नहीं किया जाता। वह ऐसा रमणीय उद्यान नहीं जिसमें भाँति-भाँति के फूल, बेल-बूटे सजे हुए हैं, बल्कि एक गमला है जिसमें एक ही पौधे का माधुर्य अपने समुन्नत रूप में दृष्टिगोचर होता है।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल - " कहानी साहित्य का वह रूप है, जिसमें कथा प्रवाह एवं कथोपकथन में अर्थ अपने प्रकृत रूप में अधिक विद्यमान रहता है।
एडगर एलिन पो - “कहानी वह छोटी आख्यानात्मक रचना है, जिसे एक बैठक में पढ़ा जा सके, जो पाठक पर एक समन्वित प्रभाव उत्पन्न करने के लिये लिखी गई हो, जिसमें उस प्रभाव को उत्पन्न करने में सहायक तत्वों के अतिरिक्त और कुछ न हो और जो अपने आप में पूर्ण हो।”
जान फास्टर - "असाधारण घटनाओं की वह श्रृंखला जो परस्पर सम्बद्ध होकर एक चरम परिणाम पर पहुँचाने वाली हो।"
विलियम हेनरी - "लघुकथा में केवल एक ही मूलभाव होना चाहिए. उस मूलभाव का विकास केवल एक ही उद्देश्य को ध्यान मे रखते हुए सरल ढंग से तर्कपूर्ण निस्कर्षो के साथ करना चाहिए."
कहानी के लक्षण -
इन परिभाषाओं के आधार पर कहानी के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित रूप से निर्धारित किए गए हैं :-
कहानी मानवीय संवेदनाओ की अभिव्यक्ति है।
कहानी में कथावस्तु का आकार लघु होता है।
कहानी का एक निश्चित उद्देश्य होता है।
मनोरंजन के साथ- साथ जीवन की समस्याओं का चित्रण करना भी कहानी का लक्ष्य होता है।
कहानी का आकार ऐसा हो कि उसे सरलता से एक बैठक मे पढ़ा जा सके।
कहानी में एक ही केंद्रीय संवेदना होती है तथा उसके सभी तत्व इसी संवेदना को उभारने में सहायता देते हैं।
कहानी मूलतः मानव जीवन से सम्बद्ध होती है. उसमें केवल कल्पनिकता न होकर यथार्थ का भी पुट रहता हैं।
आज कहानी में मानवीय संवेदना के साथ लेखक की प्रतिभा और कारीगरी का सामंजस्य है। आधुनिक कहानी साहित्य का सर्वाधिक स्वभाविक और स्वछंद रूप है।
कहानी के तत्व
कहानी के मुख्य तत्व १ कथावस्तु, २ पात्र अथवा चरित्र-चित्रण, ३ कथोपकथन अथवा संवाद, ४ देशकाल अथवा वातावरण, ५ भाषा-शैली तथा ६ उद्देश्य हैं।
कथावस्तु / कथानक
प्रत्येक कहानी के लिये कथावस्तु का होना अनिवार्य है क्योंकि इसके अभाव में कहानी की रचना की कल्पना भी नहीं की जा सकती। कथा को सुनते या पढ़ते समय श्रोता अथवा पाठक के मन में आगे आनेवाली घटनाओं को जानने की जिज्ञासा रहती है अर्थात् वह बार-बार यही पूछता या सोचता है कि फिर क्या हुआ, जबकि कथानक में वह ये प्रश्न भी उठाता है कि “ऐसा क्यों हुआ?’ “यह कैसे हुआ?’ आदि। अर्थात् आगे घटनेवाली घटनाओं को जानने की जिज्ञासा के साथ-साथ श्रोता अथवा पाठक घटनाओं के बीच कार्य-कारण-संबंध के प्रति भी सचेत रहता है।
कथानक के चार अंग १ आरम्भ, २ आरोह, ३ चरम स्थिति एवं ४ अवरोह हैं।
पात्र अथवा चरित्र-चित्रण
कहानी का संचालन उसके पात्रों के द्वारा ही होता है तथा पात्रों के गुण-दोष वर्णन को उनका ‘चरित्र चित्रण’ कहा जाता है। चरित्र चित्रण से विभिन्न चरित्रों में स्वाभाविकता उत्पन्न की जाती है। कहानी के पात्र वास्तविक, सजीव, स्वाभाविक तथा विश्वसनीय लगते हैं। पात्रों का चरित्र आकलन लेखक दो प्रकार से करता है -
१. प्रत्यक्ष या वर्णात्मक शैली द्वारा - इसमें लेखक स्वयं पात्र के चरित्र में प्रकाश डालता है।
२. परोक्ष या नाट्य शैली द्वारा - इसमें पात्र स्वयं अपने वार्तालाप और क्रियाकलापों द्वारा अपने गुण दोषों का संकेत देते चलते हैं।
कहानीकार कहानी के विषय तथा घटनाक्रम के अनुकूल शैली को अपनाए इससे कहानी में विश्वसनीयता एवं स्वाभाविकता आ जाती है।
कथोपकथन अथवा संवाद
संवाद कहानी का प्रमुख अंग होते हैं। इनके द्वारा पात्रों के मानसिक अन्तर्द्वन्द एवं अन्य मनोभावों को प्रकट किया जाता है। कहानी में स्थगित कथन लंबे चौड़े भाषण या तर्क-वितर्क पूर्ण संवादों के लिए कोई स्थान नहीं होता। नाटकीयता लाने के लिए छोटे-छोटे संवादों का प्रयोग किया जाता है। संवाद किसी भी किरदार के द्वारा बोली जाने वाली और न बोली जाने वाली बातों के जरिए काफी कुछ उजागर कर सकता है। आपको कुछ ऐसे संवाद की तलाश करना चाहिए, जो बनावटी लगने के बजाय, असल में लोगों के द्वारा बोले जाते हों। इन्हें असली दुनिया के लोगों के द्वारा बोला जाता है या नहीं, ये जानने के लिए अपने सारे डाइलॉग को ज़ोर-ज़ोर से पढ़ें।
देशकाल अथवा वातावरण
कहानी में वास्तविकता का पुट देने के लिये देशकाल अथवा वातावरण का प्रयोग किया जाता है।कहानी में भौतिक वातावरण के लिए विशेष स्थान नहीं होता फिर भी इनका संक्षिप्त वर्णन पात्र के जीवन को उसकी मनः स्थिति को समझने में सहायक होता है। मानसिक वातावरण कहानी का परम आवश्यक तत्व है।
भाषा-शैली
प्रस्तुतीकरण के ढंग में कलात्मकता लाने के लिए उसको अलग-अलग भाषा व शैली से सजाया जाता है। लेखक का भाषा पर पूर्ण अधिकार हो कहानी की भाषा सरल , स्पष्ट व विषय अनुरूप हो। उसमें दुरूहता ना होकर प्रभावी होना चाहिए , कहानीकार अपने विषय के अनुरूप ही शैली का चयन कर सकता है।
उद्देश्य
कहानी लेखन का उद्देश्य केवल मनोरंजन ही नहीं होता, अपितु उसका उद्देश्य समाज सुधर या लोक कल्याण भी होता। वर्तमान में विविध सामाजिक परिस्थितियों का विश्लेषण, जीवन के प्रति स्वस्थ्य दृष्टिकोण, किसी समस्या का समाधान, जीवन मूल्यों का उद्घाटन, विसंगतियों की ध्यानाकर्षण आदि भी कहानी के उद्देश्य हैं।
कहानी कैसे लिखें
कहानी लिखते समय हमें निम्न बातें ध्यान में रखनी होगी -
अध्ययन
लिखने से पहले पढ़ना अच्छा और आवश्यक होता है। पढ़ने से आप जान सकेंगे कि अन्य कहानीकार क्या लिख रहे हैं? उसमें खूबी और खामी क्या है? तब आप अपनी कहानी को पढ़कर उसकी कमजोरियों कर सकते हैं। अधिकाधिक अध्ययन से आपका शब्द भंडार बढ़ता है। शब्द प्रयोग सीखकर आप बेहतर भावाभिव्यक्ति कर सकते हैं।
लोकदृष्टि
हमेशा दुनिया की बातों को सुनें और प्रेरणा लें। आपकी कहानी आपके मस्तिष्क से बाहर निकलकर लोगों के बीच पहुँचनेवाली है, इसलिए अपनी कहानी को सिर्फ अपने खुद के विचारों से ही नहीं बल्कि दूसरे लोगों की दृष्टि से भी सोचकर लिखना चाहिए। लोक के नजरिए से लिखी गई कहानी अधिक लोगों को अपनी खुद की प्रतीत होंगे।
अंतर्दृष्टि
आप अपने और अन्यों के जीवन में घट रही घटनाओं के कारण, प्रभाव और परिणाम को ज़िंदगी के अंदर झाँककर देखने की कोशिश करें। घटनाओं के अंदर झाँकने से उसके अनछुए-अनकहे पहलू सामने आते हैं और एक सशक्त कहानी बन जाती है।
बाह्यदृष्टि
आप जब कहानी लिखना शुरू करते हैं, तब जरूरी नहीं है, कि आपको आपकी कहानी का अंत मालूम ही हो। कहानी लिखना शुरू करते वक़्त ही, कहानी के बारे में सब-कुछ नहीं मालूम होता, जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ती है आपको और रचनात्मक संभावना नज़र आती जाती है। आप सजग और सतर्क रहकर कहानी को बेहतर रूप दे सकते हैं।सामान्य मत है कि कि “आपको सिर्फ वही लिखना चाहिए, जिसके बारे में आपकोजानते हैं।”
चिंतन दृष्टि
सुनी अथवा पढ़ी हुई कहानियों पर जरूर गौर करें, इनसे आपको कल्पना के घोड़े दौड़ाने का अवसर ('फिक्शन') मिल सकता है। अगर आपकी माँ या दादी/नानी माँ हमेशा आपको उनके बचपन की कहानियाँ सुनाया करती हैं, तो उन्हें और उनके असर को याद करना शुरू कर दें। आप जो भी लिखें, आपके पाठक उसे समझ और स्मरण रख सकें यह आवश्यक है।
प्रतिबद्धता / जूनून
यदि आप लेखन के प्रति प्रतिबद्ध हैं या लिखना ही आपका जुनून है तो एक सच्चे कहानीकार की तरह आपको जो भी कुछ पसंद है, जिसे आप अपनी कहानी के लिए सही समझते हैं, उसे ही लिखें। दिमाग से सोचकर, दिल से लिखने का अभ्यास करें। आप जहाँ भी जाएँ, अपने साथ में हमेशा एक नोटबुक लेकर जाएँ, ताकि आप के मन में जब भी कोई 'विचार' (आइडिया) आए, तो आप उसे तुरंत लिख सकें।
आपने अपनी गलती को सुधारने के लिए जो भी लिखा है, उसे एक बार फिर से देखें। आप अपनी कहानी को दुनिया के सामने निकालने के पहले अपने साथी कहानीकारों के साथ बाँट सकते हैं। प्रतिक्रिया (फीडबैक) तभी उपयोगी होती है जब इसे स्वस्थ्य मन से लिखा और ग्रहण किया जाए।
अपनी कहानी लिखने से पहले, चरित्रों (किरदारों) के नाम, व्यक्तित्व (पर्सनालिटी), विचार, परिधान, भाषा, आदतों, व्यवहार आदि पर चिंतन कर लें।
मौलिकता
अपनी कहानी को रुचिकर बनाने के लिए स्वतंत्र प्रयास करें, किसी अन्य कहानी का अनुकरण न करें। याद रखें अच्छे से अच्छी नकल भी असल से अच्छी नहीं होती।
धीरज
एक अच्छी कहानी लिखने में समय लगता है, धैर्य रखकर प्रयास करते रहिए।
साहित्य की सभी विधाओ में कहानी सबसे पुरानी विधा है। जनजीवन में यह सबसे लोकप्रिय विधा है। आज के समय में कहानी सबसे अधिक प्रचलित है। साहित्य में कहानी का स्थान प्रमुख था, प्रमुख है और हमेशा प्रमुख रहेगा। कहानी का कल, आज और कल उसमें हो रहे प्रयोग थे, हैं और रहेंगे। इसलिए, किसी को आदर्श मत मानिए, अपनी रह खुद बनाइए।
६-१०-२०२१
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